(मनोज जायसवाल)
‘तलाक’ यानि ‘संबंध विच्छेद’ के त्वरित मामलों में जिस तरह लड़के एवं लड़की तथा परिवार के बीच भरी समाज में इस कटूता के साथ अलग होते हैं, कि उनका ये कुछ दिन का वैवाहिक संबंध महज एक ”ड्रामा” था। जिसे कभी ना याद किया जायेगा और ना जेहन में रहेगा। कभी बात हो तो हादसा के नाम याद किया जा सकता है। संबंध विच्छेद किसी दूसरों के लिए भले ही सरल लगे पर जो इस दंश से गुजर रहे होते हैं‚उन्हें ही पता है कि उन्हें स्वयं में हीनभावना के साथ ही के साथ–साथ किस प्रकार मानसिक अवसाद में समय गुजर रहा है।
किसी लड़की को उनके घर वाले आशीर्वाद स्वरूप दिए उपहार सामग्री जो उनके नव-दाम्पत्य जीवन प्रारंभ करने आधार बने प्रदान किए थे। संबंध विच्छेदित होने पर लड़की पक्ष सामानों की लिस्ट थमा देता है,जिसे उन्हें वापस किया जाना है।
लड़की पक्ष को सामान वापस किये जाने तक का समय जो कि इतना ‘भावनात्मक’ होता है,जैसे लड़की की ‘विदाई’ हो। लेकिन ‘तलाक’ के बाद उनके सामान वापस किए जाने का यह वक्त लड़के पक्ष के लिए लड़के की पत्नी जो अब पत्नी नहीं रही। ‘ससुर’ पिता तुल्य संबंध जो अब कड़वाहट में घुल गया।
हो सके तो माफ कर देना
इस इमोशनल वक्त में जीवन का वो क्षण है,जिसके बाद अब एक दूसरे से बात भी नहीं हो पाएगी। इस वक्त की कीमत सिर्फ और सिर्फ लड़के पक्ष को समझे जाने की जरूरत है।’ससुर’ के लिए लड़की अपने बेटी जैसे जो अब इस घर आंगन से जा रही है। लड़के‚ जिसकी पत्नी जिसे तुमने चाहा या नहीं चाहा। लड़की तुम्हें चाहे या ना चाहे। लेकिन लड़का जो उस लड़की का स्वामी बना! चाहे लड़की की गलती क्यों ना रहे। जीवन जो काफी लंबा भी है और छोटा भी। क्षमा याचना बनता है। इन शब्दों के साथ कि मैं तुम्हारी जिम्मेदारी,तुम्हारी हसरतों के मुताबिक सक्षम नहीं रहा। मेरे ”प्यार’ में वो कमियां थी,जिससे मैं अपने अंतस में नहीं बिठा सका। हो सके तो मुझे ”माफ” कर देना।यदि कोई लड़का घमंड में ना बोल पाए तो उनके पिता का भी लड़की के सामान वापसी पर प्यार के ये शब्द जरूर आना चाहिए। अपने धन संपदा की अकड़ और बेशर्मी त्याग कर यह संदेश देते कि-”बेटी आबाद रहना”….ईश्वर तुम्हें खुश रखे। लडकी पक्ष की शांति बनती है,वैसे भी उनका घर संसार जो अब यहां नहीं बस सका। फिर लडाई,गाली गलौच से क्या होना है।
‘शब्द’ याद कर सिसकती रहेगी
सच! वो लड़की इस ‘तलाक’ के बाद दुनियां में जहां जिस हाल में, जिस परिवार में रहती लड़के एवं उनके पिता का अंतिम वाक्य हमेशा याद कर कभी सिसकती….! लेकिन अपने को बुद्धीजीवी,साभ्रांत,शिक्षित,बड़े आदमी का तमगा लिए थोथी वाहवाही में गदगद रहने वालों को खुद के ऐसे दुःखद क्षणों में भी अक्ल कहां आयेगी? मंच पर बड़ी-बड़ी बातें करने वाले, सामाजिक लाईन में सियानी की बात करने वाले। खुद इनके मुंह पर दही जम जाता है। लानत है,तुम्हारी सियानी पर…चुल्लू भर पानी में डूब मरने की की बात अच्छी हो जब खुद की जुबां पर किसी बेटी के लिए प्यार के शब्द ना रहे….
कितनों की जिंदगी तबाह
यह तो वैवाहिक संबंध स्थापित होने के बाद विच्छेदित होने वाले त्वरित मामले हैं। न जाने कुटूम्ब न्यायालयों में ऐसे कितने प्रकरण चल रहे होते हैं। कितने अबोध वे बच्चे जिन्होंने इस दुनिया को ठीक से देखा नहीं वो समझते इसके पहले ही अपने माता-पिता की कटुता का शिकार हो गये। समाज में इनके नाम उनके बच्चे के नाम उंगली उठती रहती है। तलाक का दंश सबसे ज्यादा लड़की पक्ष को..! लड़के के लिए वो तकलीफ नहीं। उनके कुल को दाग जो लग चुका होता है। परिवार में इनके नाम उपेक्षित व्यवहार जो कि आने वाले जीवन में बढ़ेगा लेकिन कम नहीं होगा। ऐसे वक्त में कोई यदि खड़ा होता है तो वह ईश तुल्य ही होगा। क्योंकि ऐसे प्रकरणों में फटकने वाला कम ही होता है।