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“भूख” श्रीमती कल्पना शिवदयाल कुर्रे “कल्पना” साहित्यकार बेमेतरा(छ.ग.)

साहित्यकार परिचय
श्रीमती कल्पना कुर्रे  
माता /पिता – श्रीमती गीता घृतलहरे, श्री हेमचंद घृतलहरे 
पति – श्री शिवदयाल कुर्रे
संतत–्‍  पुत्र – 1. अभिनव 2. रिषभ
जन्मतिथि – 19 जून 1988
शिक्षा-
प्रकाशन-

पेशा – गृहणी

पता – ग्राम – कातलबोड़़
पोस्ट – देवरबीजा,
तहसील – साजा,
जिला – बेमेतरा (छ.ग.)
संपर्क- मो. – 8966810173

“भूख”
पुन्नी बहुत ही गरीब घर की बेटी थी उसके परिवार में मां-बाप दादा-दादी पांच भाई और पांच बहने कुल मिलाकर 14 सदस्य थे इतना बड़ा परिवार ऊपर से भूखमरी खाने तक के लाले पड़े थे कई दिन खाना मिलता भी था तो किसी दिन भूखा ही रहना पड़ता था उनके रहने के लिए घर भी नहीं था टुटा -फुटा एक कच्चा घर आधा परिवार झोपड़ी में रहते थे चावल तो जैसे उन्होंने देखा ही नहीं था ।

एक मुट्ठी अनाज में पांच गिलास पानी डालकर उसे पेज की तरह बनाकर पीते थे भूखमरी से बिलखते बच्चों का हाल बेहाल था दुख तकलीफ़ सहकर सभी बच्चे बड़े हो रहे थे पुन्नी भाई बहनों में सातवें नंबर की थी पुन्नी का भी उम्र हो गया था शादी करने का पर बहुत गरीबी स्थिति के कारण उसकी शादी नहीं हो पा रही थी ।

कुछ भाई बहनों की हुई थी वो भी पैसों के लेनदेन के बदले में पुन्नी अपने आप में ही खास व्यक्तित्व रखने वाली लड़की थी जो अपनों के लिए कुछ भी कर जाती सारा दुख सहन कर जाती थी कभी पेट भर खाना मिलता तो भी अपने भाई-बहनों को पहले खिला देती थी पुन्नी 19 साल की हो गई थी गांव में पहले जमाने में लड़कियों की शादी 13, 14 साल में ही कर दिया जाता था ।

उनके अनुसार शादी के लिए पुन्नी की उम्र ज्यादा हो गयी थी पुन्नी देखने में बहुत साधारण थी उसे ज्यादातर कोई पसंद नहीं करता था पुन्नी के माता-पिता को पुन्नी की चिंता होने लगी थी कुछ दिनों बाद एक बुजुर्ग आदमी पुन्नी के घर आया उसे देखने पुन्नी के माता-पिता ने उसका आदर सत्कार किया और उस बुजुर्ग आदमी से पूछा कि लड़का कौन है उस बुजुर्ग के साथ 2,4 आदमी भी आए थे पुन्नी जब उनके सामने आई तब उस बुजुर्ग आदमी ने बताया कि, मैं ही लड़का हूं सब चौंक गए पर पैसों के लेनदेन और सौदेबाजी से सबका मुंह बंद हो गया।

उस बूढ़े आदमी ने पुन्नी के बदले पैसा देने का सौदा किया उसके माता-पिता ने शादी के लिए तुरंत हां कर दी ताकि बाकी बच्चों का पेट कुछ दिनों के लिए भर सके। पुन्नी की शादी कर दी गई पुन्नी उस बूढ़े आदमी के घर चली तो आई पर वहां भी उसे पेट भर भोजन नहीं मिलता था वह बूढ़ा एक नंबर का ठरकी और जुवेबाज आदमी था पुन्नी के साथ उसका व्यवहार बहुत ही खराब था वह उसकी जरा -सा भी इज्जत नहीं करता था कई बार तो उसने पुन्नी को बेचने की कोशिश की थी पर पुन्नी कैसे भी करके बच गई थी।

पर वह अपने पति का ज्यादा विरोध नहीं करती थी क्योंकि मायके में तो खाना भी नसीब नहीं होता था यहां भी हालत में ज्यादा फर्क नहीं था बस रहने के लिए एक कच्चा मकान था पुन्नी उसी के लिए चुप थी कि कम-से-कम उसके सर पर एक छत तो है पर यह भी उसके नसीब में कुछ ही दिनों के लिए था पुन्नी का बुढ़ा पति बहुत शराबी था ऊपर से बहुत बूढ़ा हो गया था ।वह शादी के चार साल बाद ही मर गया पुन्नी विधवा हो गई उसके ससुराल वालों ने उसे घर से निकाल दिया ।

पुन्नी अपने मायके में ही जीने के लिए मजदूरी करने लगी वही उसकी मुलाकात छोटू नाम के आदमी से हुई छोटू एक प्रभावित करने वाला व्यक्ति था वह एक नेक दिल और अच्छा इंसान था वह पुन्नी का हाथ थामना और उसे जीवन की सारी खुशियां देना चाहता था पर पुन्नी अपने बीते हुए कल के कारण उसके साथ शादी नहीं करना चाहती थी पर सभी के दबाव के कारण वह मान गई क्योंकि पुन्नी के सामने उसकी पूरी जिंदगी पड़ी थी वह अपना जीवन अकेले कैसे काटती इसलिए उसने हां कर दी।

दोनों ने शादी कर ली दोनों अपनी जिंदगी बहुत खुशी- खुशी बिताने लगे थे पुन्नी और छोटू अपनी मेहनत से अच्छा जीवन जीने लगे थे पुन्नी की दो बेटियां भी हुई अभी दोनों बेटियां बहुत छोटी थी तभी गांव में” हैंजा” महामारी फैल गया इस महामारी से आधा गांव ऊजड़ गया इस महामारी ने पुन्नी के जीवन में भी कहर ढाना नहीं छोड़ा, हैजा से छोटू की मौत हो गई इस दुख से पुन्नी मानो जिंदा लाश बन गई पर दोनों बच्चियों के लिए उसे जीना ही पड़ा उसके मां-बाप भी नहीं रहे भाई बहन भी अपनी जिंदगी में व्यस्त थे ।

किसी ने उसे सहारा नहीं दिया अकेली दो बेटियों को कैसे पालती दोनों बेटियों के साथ दर- बदर की ठोकरे खाने लगी।2 साल बाद उसकी बड़ी बेटी 4 साल और छोटी बेटी 2 साल की हो गई बच्चियों के भूख मिटाने के लिए पुन्नी बररे की भाजी को उबालकर बच्चों को खिलाती और खुद भी खाती थी पुन्नी अकेली काम करती थी पर तीनों का पेट भरने के लिए वह पर्याप्त नहीं था पुन्नी इधर-उधर खाने के लिए भटकती रहती थी कि बच्चियों को किसी दिन भर पेट खाना मिल जाए वह बाजारों और मेलों में फैंका हुआं खाना इकट्ठा करके अपने बेटियों को खिलाती थी।

एक बार उसके गांव के आसपास मेला लगा था बच्चों को कुछ खाने को मिल जाए यह सोचकर पुन्नी भी मेले में गई पर वहां एक जमींदार की नजर पुन्नी पर पड़ गई जमींदार की कोई औलाद नहीं थी पुन्नी बच्चियों को सड़क के किनारे बैठा कर मेले में पड़े हुए खाने का सामान इकट्ठा कर रही थी यह सोचकर कि एक दो दिन भूख मिट जाएगी जमींदार को उस पर बहुत दया आई बच्चियों को सड़क किनारे भूख से रोते बिलखते देखकर जमींदार को बहुत दुख हुआ ।

कुछ दिनों बाद जमींदार पुन्नी का पता खोजते हुए उसके घर गया उसने पुन्नी के सामने अपना प्रस्ताव रखा पुन्नी ने एक बार भी नहीं सोचा और जमींदार के प्रस्ताव को हां कह दिया बस यही सोच कर कि उसके दोनों बच्चियों को पेट भर खाना मिलेगा मानो जैसे उसकी किस्मत चमक उठी हो वह जमींदार औलाद के सुख से वंचित था उसने पुन्नी के साथ -साथ बेटियों को भी ले जाने की बात कही थी इसलिए पुन्नी ने एतराज नहीं किया। पुन्नी दो बार विधवा हो चुकी थी ।

इसलिए चूड़ी पहनाने की रस्मों के साथ उसे पुरे सम्मान के साथ जमींदार अपने घर ले गया पुन्नी ने जब जमींदार के घर कदम रखा वह देखते ही रह गई इतना बड़ा घर भरा- पुरा परिवार अनाज के भंडार पुन्नी ने कभी पेट भर के चावल का भोजन नहीं खाया था वहां जाकर पुन्नी की किस्मत बदल गई पुन्नी अकेले ही आधा किलो से ज्यादा का खाना एक बार में ही खा जाया करती थी उसने अपने बेटियों के लिए रसोई संभाल ली वहां उसे और दो बेटियां हुई पर उसकी तकदीर का लिखा उसके पीछे-पीछे वहां तक भी आ गया बेटा ना होने के कारण जमींदार ने दूसरी शादी कर ली पुन्नी की हालत नौकरानी की तरह हो गई।।

बेटियां बड़ी हो गई बेटियों को अच्छे परिवारों में शादी करके भेज दिया। पुन्नी इसी बात से संतुष्ट थी कि उसकी बेटियां बड़े घरों की बहूएं है उन्हें उसकी तरह दुख नहीं झेलना पड़ेगा। पुन्नी ने बचपन से देखा और जाना था कि भूख क्या होती है भूख के कारण ही मां -बाप ने पुन्नी की शादी एक बूढ़े आदमी से करवाई थी भूख से बचने के लिए ही पुन्नी ने छोटू को अपनाया था अपने और अपनी बेटियों का भूख मिटाने के लिए ही वह जमींदार के घर आईं थीं उससे बेहतर भूख को कौन समझ पायेगा।

इसी भूख के कारण वह बड़े घर में आ तो गई पर वहां काम कर करके उसका शरीर आधा हो गया था जितना काम उतना खाना, उसकी बेटियों के बच्चे हो गए थे उसे देखने के लिए आते तो वह बहुत खुश हो जाती थी। बचपन से दुख सहते- सहते वह कमजोर हो गई थी पुन्नी अब इस दुनिया में नहीं है वह तो अपने उम्र से पहले ही इस दुनिया को छोड़कर जा चुकी है। उसने जीवन जीने के लिए जितना भी संघर्ष किया आज भी वह अपने बच्चों के लिए एक मिशाल है।

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