”कार्ड देकर कर्तव्य की इतिश्री” श्री मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर कांकेर(छ.ग.)

श्री मनोज जायसवाल
पिता-श्री अभय राम जायसवाल
माता-स्व.श्रीमती वीणा जायसवाल
जीवन संगिनी– श्रीमती धनेश्वरी जायसवाल
सन्तति- पुत्र 1. डीकेश जायसवाल 2. फलक जायसवाल
(साहित्य कला संगीत जगत को समर्पित)
”कार्ड देकर कर्तव्य की इतिश्री”
-कीमत आपके ऊंचे कार्ड का नहीं, अपनत्व के भाव का है।
जीवन एक रंगमंच है और हम इसके कठपुतली मात्र हैं। इसी मंच पर हमारा परिवार एवं समाज के बीच रिश्तों भावनाओं का आदान प्रदान होता है। एक परिवार में एक व्यक्ति के जन्म से लेकर अंतिम समयों तक विभीन्न संस्कार परंपराओं का निर्वहन किया जाता है।
अतीत में जहां संयुक्त परिवार में हर खुशी के मौके पर एकमात्र माध्यम बात कर ही कोई भी संदेश दिया जाता था। जो आज आयोजनों के आमंत्रण कार्ड से दिए जाते हैं। वर्तमान में सोशल मीडिया वाट्सएप फेसबुक से भी संबंधों को बनाए रखने का जरीया समझा जाने लगा है।
व्यक्ति के जीवन में एक प्रमुख विवाह उत्सव को ही लें जहां आज कई दफा तो नौकरों या दूसरे व्यक्तियों से अपनी रस्मअदायगी कार्ड बंटवाया जाता है,जहां वह कार्ड छोड़कर आ जाता है। कई दफा तो समय रहते हुए भी पड़ोसी को जहां स्वयं घर के अभिभावकों को देकर आमंत्रित किया जाना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं किया जाता।
कोई कार्ड दे भी तो आने की बात नहीं कहतां कि यह हमारे यहां का कार्ड है और आपको निश्चित रूप से आना है। यदि निकटस्थ हो तो उसे यह भी बोलना है कि आपको भी आयोजन में सम्हालना है। इन शब्दों से अपनत्व का भाव झलकता है और जवाबदारी भी आती है। ऐसे में ना आने वाला आगंतुक या रिश्तेदार भी ना चाहते हुए भी आता है।
व्यक्ति भाव का भूखा होता है,किसी के यहां जाकर खानेपीने का नहीं। लेकिन आज स्थिति इतना खराब है कि एक ही परिवार के यहां दूसरे अनजाने व्यक्ति कार्ड पहूंचा रहा होता है। ऐसे में कैसे अपनत्व और जवाबदारी की भावना आ पाएगी यह सोचने की बात है। पूरी लापरवाही पूर्वक इस प्रकार के आमंत्रण से कभी अपनत्व नहीं बढ़ सकता। आप कार्ड ना भी दीजिए लेकिन अपने मीठे बोल से दो शब्द बिल्कुल कहिए कि आपको आना हैं। कीमत आपके ऊंचे कार्ड का नहीं, अपनत्व के भाव का है।
अब कार्ड देने की बात पर कोई सदस्य आयोजन में शरीक नहीं हो पाया तो यही अभिभावक गर्व से यह कहते नहीं थकते कि हमने तो कार्ड दिया था नहीं आया तो क्या करें। याद रखें कोई किसी के यहां खाने पीने का भूखा नहीं है, ना किसी के कार्ड मिलने का। बुद्विजीवी कहला रहे होते हैं यदि इन बातों को नहीं समझ सकते तो ऐसे बुद्विजीवी होना कुछ काम का नहीं है। आमंत्रित सदस्य के आने पर अहोभाग्य मानें ǃ आगंतुक भगवान से बढकर है।
आयोजन पर यदि किसी को इतना ही अहं है तो दिखावे का कार्ड मत बांटिये। क्योंकि कई व्यक्तियों के बीच कार्ड में अंतर आपके भावों को खुद लोगों के बीच बताने काफी है कि आपमें लोगों के प्रति कितना भेदभाव है।