साहित्यकार परिचय-
डॉ. मीरा आर्ची चौहान
जन्मतिथि-07/05/1972 बरदेभाटा,कांकेर
माता-पिता- श्री दरबारी राम आर्ची,श्रीमती मंगल आर्ची‚ पति – संतोष चौहान
शिक्षा-एम.एस-सी(रसायन शास्त्र),एम. ए.(हिन्दी,अंग्रेजी,लोकप्रशासन),बी.एड.,आयुर्वेद रत्न|
प्रकाशन- 1-अंशु (कविता संग्रह) 2-रेत पर लिखा दर्द (कविता संग्रह) साझा संकलन- 1- सरस्वती 2- छत्तीसगढ़ के छत्तीस रत्न
3-नव्या 4-प्रकृति 5-नव लोकांचल गीत 6-काव्य धरोहर 7- आरण्य- (भाग 6) 8-कलम को चलने दो 9-कलम से पन्नों तक 10- अभिव्यक्ति 11- माँ 12-सरगम के मेले 13-रेखांकित काव्य 14-काव्य की पंखुड़ियां 15-अग्निपथ के राही 16-लहराया हिन्दी का परचम
17-नाव कागज की।
छत्तीसगढ़ी साझा संकलन- 1- माटी मोर मितान संपादक- 1-काव्य की पगडंडियों से गुजरते हुए(साझा कविता संग्रह) 2-सृजन से शिखर तक ( साझा कविता संग्रह)
सांझा संकलन-1.नव्या 2.छग के छत्तीस रत्न, 3.सरस्वती, 4.प्रकृति, 5.नव लोकांचल गीत, 6.काव्य धरोहर।
1. आकाशवाणी जगदलपुर से कविताओं का प्रसारण।
2-1998 से 2008 तक लगभग200 राज्य स्तरीय मानस मंचों में नारी जागरण व समाज सुधार पर व्याख्यान
3- बेटी बढ़ाओ ,बेटी बचाओ के तहत अब 8 बच्चियों को स्वयं के व्यय से पढाया।
सम्मान-
1-राज्य शिक्षक सम्मान-2018. राज्यपाल छग सुश्री अनुसुइया उयके द्वारा ।
2- गजानन माधव मुक्ति बोध स्मृति सम्मान-2022राज्यपाल छग,सुश्री अनुसुइया उयके द्वारा
4-नारी शक्ति सम्मान-2018.
5– छग महिला रत्न सम्मान -2022
6- कलमवीर सम्मान-2022
7- साहित्य रत्न सम्मान-2022
8-साहित्य साधना सम्मान-2022
9- कलमकार वंदेमातरम् सम्मान-2022
10- कलमकार छत्तीसगढ सम्मान-2022
11-सरगम साहित्य सम्मान2023
12-कलमकार साहित्य सम्मान2023
13-सृजन शिखर साहित्य सम्मान 2023 अंतर्राष्ट्रीय सम्मान
1-लोक साहित्य रत्न सम्मान-2021,इन्दौर।
2-भारतमाता अभिनंदन सम्मान-2022, हरियाणा।
3- मधुशाला कलमवीर सम्मान-2022,उदयपुर,राजस्थान।
4-काव्यश्री हिन्दुस्तान सम्मान,मुजफ्फरपुर,बिहार।
5- महिला गौरव सम्मान2022,इन्दौर।
6-काव्य साधक सम्मान-2022,जबलपुर।
7-कबीर कोहिनूर सम्मान 2023,नई दिल्ली।
8-समता साहित्य अकादमी द्वारा डॉ एपीजे अब्दुल कलाम अवॉर्ड 2023.
9. कैलिफोर्निया पब्लिक यूनिवर्सिटी यूएसए द्वारा पीएचडी की मानद उपाधि.
10-विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय मंचों द्वारा लगभग 300 सम्मान पत्र।
विशेष- 1- 200 राज्य स्तरीय मानस मंचों में नारी जागरण और समाज सुधार पर व्याख्यान।
2- विभिन्न राज्य स्तरीय मंचों में मंच संचालन ।
सम्प्रति-व्याख्याता(रसायन),शा.उ. मा. वि. डुमाली,कांकेर,छग
सम्पर्क- बरदेभाटा,कांकेर मोबाइल-9406108146
”छेरछेरा,पौष पूर्णिमा”
छेरछेरा पर्व पौष पूर्णिमा के दिन छत्तीसगढ़ में बड़े ही धूमधाम, हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। इसे छेरछेरा पुन्नी या छेरछेरा तिहार भी कहते हैं। इसे दान लेने-देने का पर्व माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन दान करने से घरों में धन धान्य की कोई कमी नहीं रहती। इस दिन छत्तीसगढ़ में बच्चे और बड़े, सभी घर-घर जाकर अन्न का दान ग्रहण करते हैं। युवा डंडा नृत्य करते हैं।
छेरछेरा को मां शाकंभरी जयंती तिहार भी कहते हैः। इस दिन सार्वजनिक अवकाश दिए जाता है। हरेली, तीजा, मां कर्मा जयंती, विश्व आदिवासी दिवस और छठ पर भी अवकाश देते हैं।अब राज्य में इन तीज-त्यौहारों को व्यापक स्तर पर मनाया जाता है, जिसमें शासन की भी भागीदारी होती है। इन पर्वों के दौरान महत्वपूर्ण शासकीय आयोजन होते है तथा महत्वपूर्ण शासकीय घोषणाएं भी की जाती है। छेरछेरा पुन्नी के दिन पूर्व मुख्यमंत्री स्वयं श्री भूपेश बघेल भी परम्परा का निर्वाह करते हुए छेरछेरा मांगते थे।
छेरछेरा पर्व
छत्तीसगढ़ का लोक जीवन प्राचीन काल से ही दान परम्परा का पोषक रहा है। कृषि यहाँ का जीवनाधार है और धान मुख्य फसल। किसान धान की बोनी से लेकर कटाई और मिंजाई के बाद कोठी में रखते तक दान परम्परा का निर्वाह करता है। छेर छेरा के दिन शाकंभरी देवी की जयंती मनाई जाती है। ऐसी लोक मान्यता है कि प्राचीन काल में छत्तीसगढ़ में सर्वत्र घोर अकाल पड़ने के कारण हाकाकार मच गया। लोग भूख और प्यास से अकाल मौत के मुँह में समाने लगे। काले बादल छाते जरूर पर बरसते नहीं। तब दुखी जनों की पूजा-प्रार्थना से प्रसन्न होकर अन्न, फूल-फल व औषधि की देवी शाकम्भरी प्रकट हुई और अकाल को सुकाल में बदल दिया। सर्वत्र खुशी का माहौल निर्मित हो गया। छेरछेरा पुन्नी के दिन इन्हीं शाकंभरी देवी की पूजा-अर्चना की जाती है। यह भी लोक मान्यता है कि भगवान शंकर ने इसी दिन नट का रूप धारण कर पार्वती (अन्नपूर्णा) से अन्नदान प्राप्त किया था। छेरछेरा पर्व इतिहास की ओर भी इंगित करता है।
माई कोठी के धान ला हेर हेरा
छेरछेरा पर बच्चे गली-मोहल्लों, घरों में जाकर छेरछेरा (दान) मांगते हैं। दान लेते समय बच्चे ‘छेर छेरा माई कोठी के धान ला हेर हेरा’ कहते हैं और जब तक गृहस्वामिनी अन्न दान नहीं देंगी तब तक वे कहते रहेंगे- ‘अरन बरन कोदो दरन, जब्भे देबे तब्भे टरन’। इसका मतलब ये होता है कि बच्चे कह रहे हैं, मां दान दो, जब तक दान नहीं दोगे तब तक हम नहीं जाएंगे।
छेरछेरा पर्व में अमीर गरीब के बीच दूरी कम करने और आर्थिक विषमता को दूर करने का संदेश छिपा है। इस पर्व में अहंकार के त्याग की भावना है, जो हमारी परम्परा से जुड़ी है। सामाजिक समरसता सुदृढ़ करने में भी इस लोक पर्व को छत्तीसगढ़ के गांव और शहर के लोग मनाते है।