‘बच्चों को संस्कार देनें में परिजनों का श्रेष्ठ स्थान होता है’ मणिशंकर दिवाकर अधिवक्ता,साहित्यकार बेमेतरा(छ.ग.)
(मणिशंकर दिवाकर)
अपने जीवन काल में हम कुछ ना कुछ सिखते और सिखाते रहते हैं, यह सत्य है दुनिया में लोग अपने अपने धर्म नीति नियम वेशभूषा और अपने रहन सहन के परिवेश में रहते है। और अपने अनुकूल रोजी मजूरी काम धंधा व्यवसाय अपनी अपनी हैसियत और आर्थिक व्यवस्था के रूप में काम करते हैं। अपने तथा अपने परिवार को लालन पालन करते हैं एक ओर वहीं अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा दीक्षा करने के लिए अपनी औकात क्षमता के अनुसार हम सभी कार्य करते हैं जो कि वास्तविक सत्य जिसे आप और हम नकार नहीं सकते हैं।
अपने बच्चों को पढाई लिखाई के साथ उनको नये नये ज्ञान की बाते और संस्कार और अपनी संस्कृति के बारे में ज्ञान देते और सिखाते रहते है हम सभी उक्त बातों को अपने जिंदगी में आत्मसात करते है ।
अधिकार, चरित्र या सम्मान की हो। अपने ही अनुभव से सीखनें को आपकी हमारी आयु कम पड़ जाएँगी। अगर आप भी अपने जीवन में सफलता का आनंद लेना चाहतें है तो अपने जीवन में कठिनाइयों का आगमन कर संघर्ष करना सिखो और तन्मयता के साथ । सोच का ही फर्क होता है नहीं तो समस्याएं आपको कमजोर नहीं बल्कि मजबूत बनाने आती है।
सदैव अपने बच्चों कों पढ़ाई के लिए प्रेरित करें, अभी वर्तमान समय में देख रहें है कि बच्चों के मन में चंचलता होती है साथ ही साथ मोबाइल से लगे रहते हैं जो हमारे दैनिक में अधिकतम उपयोगी तो है मगर हमें बहुत ही ज्यादा नुकसान पहुचाते है जो हमारे लिए तो नुकसान देह है कि मगर हमारे बच्चों के मष्तिष्क में विपरीत प्रभाव डालती है द्य तो बेहतर होगा कि आप सभी अपने बच्चों को बड़ो को सम्मान और आदर करना सिखायें और अच्छी – अच्छी संस्कार देते हैं यही आप सभी पालको और परिजनों से प्रार्थना है।