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“छुआछूत” श्रीमती कल्पना शिवदयाल कुर्रे “कल्पना” साहित्यकार बेमेतरा(छ.ग.)

साहित्यकार परिचय
श्रीमती कल्पना कुर्रे  
माता /पिता – श्रीमती गीता घृतलहरे, श्री हेमचंद घृतलहरे 
पति – श्री शिवदयाल कुर्रे
संतत–्‍  पुत्र – 1. अभिनव 2. रिषभ
जन्मतिथि – 19 जून 1988
शिक्षा-
प्रकाशन-

पेशा – गृहणी

पता – ग्राम – कातलबोड़़
पोस्ट – देवरबीजा,
तहसील – साजा,
जिला – बेमेतरा (छ.ग.)
संपर्क- मो. – 8966810173

” छुआछूत “
देश को आजाद हुए कितने साल हो गए फिर भी छुआछूत ही है जो आज भी अपनी जगह पैर जमाएं खड़ा है ।आज भी छुआ छूत का बोलबाला है आज भी एक समुदाय दूसरे समुदाय के साथ अलग व्यवहार करता है उसे अछूत मानकर सार्वजनिक स्थलों में उसका प्रवेश वर्जित करता है । इंसान प्यास से मर ही क्यों न जाए पर वह किसी के हाथ से पानी पीना जरूरी नहीं समझता आज भी गांव में कुछ धार्मिक कार्य संपन्न होता है तो एक दूसरे के देवताओं को छूना तो दूर की बात है पूजा करने की इजाजत भी नहीं देते यहां के गांव में जब भी दुर्गा पूजा होती है कई लोग वहां पूजा में भाग नहीं ले सकते अगर कोई चला भी जाए तो उसकी पूजा की थाली को गंगाजल से चिड़कर ही स्वीकार किया जाता है ।
शीतला माता के मंदिर में दूसरे समुदाय के लोगों को जोत दर्शन करने की मनाही है मंदिर के दरवाजे पर पर्दा लगा दिया जाता है पूजा करने गए हुए लोग उस पर्दे की पूजा करके ही वापस आ जाते हैं भगवान के आशीर्वाद के लिए जाकर भी उन्हें दर्शन भी नहीं हो पता इसी भेदभाव से समाज में अहम् की भावना का जन्म होता है लोगों में बदले की भावना का जन्म होता है यही बदले की भावना समाज को अंदर से विरोधी बनता है लोगों में एक दूसरे के लिए खिन्नता उत्पन्न हो जाती है हमारे समाज में छुआ छूत इस कदर फैला हुआ है की इंसान इंसान ना होकर जानवर प्रवृत्ति को अपनाता है।
यह समाज के लिए बहुत ही शर्म की बात है कि आज के युग में ऐसी घटनाएं होती हैं इंसान जितना ही शिक्षित हो रहा है समाज उतना ही अज्ञानता के अंधेरे में डूबता जा रहा है।
आज भी कई ऐसे गांव समुदाय हैं जहां दूसरे समुदाय के लोगों को मंदिरों, जल संसाधनों के स्थानों में जाना एक पाप के समान समझा जाता है यह बहुत दुख की बात है कि आज भी जातिवाद के कारण भाईचारा खत्म होता जा रहा है हमारा देश आजाद होते हुए भी गुलाम ही है।
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