आलेख देश

”कपडे सफेद रहे पर स्याह ना रहे” मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर कांकेर(छ.ग.)

-साहित्य हस्ती के नाम अपनी पहचान भी बनाने अमादा हैं, तो आधुनिक वस्त्रों पर फिल्मी गानों पर ठुमके भी
(मनोज जायसवाल)

कपडों का असर तो निश्चित रूप से पडता है,तभी धार्मिक,आध्यात्मिक के साथ ही प्रशासनिक अधिकारियों के साथ ही अंतिम सिरे के कर्मचारियों में पहनावा उन्हें बताने काफी होता है। आयोजन किस प्रकार का है,यह भी मायने रखता है। पुरूषों में सफेद ड्रेस का अपना महत्व है। सफेद कपडों के पहनावे से ही उनका व्यक्तित्व झलकता है। जिन्होंने भी एक बार सफेद कपडे पहन लिए वो दूसरे रंगों का महत्व कम ही है। अन्य रंग तो बहुत जल्द स्वमेव नकारात्मकता का अहसास स्वयं करा देते हैं।

आध्यात्मिक के साथ खासकर साहित्य के आयोजन हों वहां पुरूषों को सफेद पहनावा खुब जंचता भी है,सामाजिक आयोजन में भी उतना ही महत्व है। याद रखने वाली बात यह है कि सफेद कपडों के अंदर की भावनाएं स्याह ना रहे। अच्छे कपडे पहनने पर आपका मूड भी सही रहता है।

सिर्फ पुरूष ही नहीं आयोजनों के मुताबिक स्त्रियों का पहनावा भी काफी महत्व रखता है। साहित्य आयोजन में सलीकेदार साडी का पहनावा भी ना स्वयं को अपितु दूसरों को भी अच्छी लगती है। भारतीय शालीन परिधान में कभी असहज महसूस तक नहीं होती बल्कि इसकी भी प्रशंसा सबके बीच हो रही होती है।

आधुनिकता की चकाचौंध में कला संगीत जगत में पहनावे को साहित्य जगत में आधुनिकता के नाम धारण करने में भी लोग पीछे नहीं है। कई तो साहित्य हस्ती के नाम अपनी पहचान भी बनाने अमादा हैं, तो आधुनिक वस्त्रों पर फिल्मी गानों पर ठुमके भी लगा रहे होते हैं, महज मिनटों में कोई पसंद करे पर इसका अच्छा प्रभाव बिल्कुल नहीं जाता जो बात इन्हें कौन बताये। सनद रहे जो साहित्य जगत में एक-एक शब्दों के कभी गलत मात्रा लग जाये तो उसे सार्वजनिक मंचों पर बयां कर रहे होते हैं,लेकिन इनके लिए द्विअर्थी गीतों पर ठुमके लगाना शायद अच्छा है।

आप यह भी सोचते हैं कि आपकी कलम को दुनिया के एक भी व्यक्ति पढ कर पालन करे तो आप अपना यज्ञ सफल मानेंगे। अपने को दूसरों के लिए प्रेरणा मानेंगे लेकिन ….किंतु…. परंतु….. आपके पहनावे रूपी आधुनिक दिखावे के नाम कैसेॽ क्योंकि आपसे प्रेरणा ग्रहण करने वाले अपने विचारों में आधुनिकता देखना चाहेंगे पहनावे में नहीं।

 

LEAVE A RESPONSE

error: Content is protected !!