दामाद कैसे माने ससुराल को घर! श्री मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर कांकेर(छ.ग.)

श्री मनोज जायसवाल
पिता-श्री अभय राम जायसवाल
माता-स्व.श्रीमती वीणा जायसवाल
जीवन संगिनी– श्रीमती धनेश्वरी जायसवाल
सन्तति- पुत्र 1. डीकेश जायसवाल 2. फलक जायसवाल
(साहित्य कला संगीत जगत को समर्पित)

”दामाद कैसे माने ससुराल को घर”
अलग अनजाने परिवार से संबंद्व, अपने परिवार की संस्कारों से निहीत कन्या जब विवाहोपरांत अपने पति के घर आती है,तो महज दो दिनों में उस घर को अपना मान निभायी जाने वाली रिश्तों को सर पर रख कर संजोने का काम करती है। पति का घर वह दूसरा अहम घर है,जहां उन्हें जिंदगी भर बसर करना है।
दूसरी ओर पति रूपी पुरूष अंतिम समयों तक अपने ससुराल को अपना नहीं मान पाता। ससुराल का दामाद जरूर उस घर से लगाव रखता है,लेकिन अंतस तक उसे अपना मानने से मन दूर जाने लगता है।
जरूर किसी दामाद के साथ वो बात हो कि उनके अतिरिक्त उनके ससुराल में आने वाले समय में कोई नहीं है, यानि उनकी पत्नी का भाई या बहन नहीं है। ऐसे स्थितियों में जरूर एक दिन दामाद का होता है,तब उसे भी अपना मानता है। लेकिन संयुक्त परिवार में ऐसा कम ही कि वो ससुराल को अपना घर माने।
कैसे भी मान ले? जहां वो अपना मान ले तो तमाम तरह की लडाई,झगडे उत्पन्न हो जाते हैं। वैसे भी किसी दामाद का सम्मान और स्वाभिमान तो उनके अपने घर तक सीमित है,उसे पत्नी के मायके यानि उनके ससुराल में वो सम्मान कहां मिलेगा। सभी दामाद की अपनी–अपनी किस्मतǃ
संयुक्त परिवार होते हुए भी आज कानूनन पिता की की संपत्ति में अधिकार रूपी कानून के चलते जहां कोई पत्नी अपने भाईयों से हिस्सा ले लेती है,तभी से भाईयों के साथ मधुर संबंध भी हमेशा-हमेशा के लिए बिखर जाता है। दो ही बातें सामने होती है,या फिर बंटवारे में हिस्सा ना लेकर भाईयों से सबंध निभाए या हिस्सा लें तो जिंदगी भर के लिए अवसाद को जन्म देकर संबंध खत्म करें।