
-देश के 52 शक्तिपीठों में एक जो देवी मॉं को समर्पित है
(मनोज जायसवाल)
देश के उत्तरोतर प्रगतिशील छत्तीसगढ़ राज्य की राजधानी रायपुर से 140 किमी पर दूर उत्तर बस्तर कांकेर जो बस्तर का प्रवेश द्वार माना जाता है,और यहां से 160 किमी पर स्थित है बस्तर संभागीय मुख्यालय नगर जगदलपूर। बस्तर से तकरीबन 100 किमी दूरी पर स्थित है,जिला मुख्यालय दंतेवाड़ा।
देश की राष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियां भले ही उन नक्सली घटनाओं के चलते रंगती रही हो पर इसका दूसरा पक्ष वो शांति सुकून भी है, जो यहां के सहज,सरल भोले जनमानस जो प्राकृतिक अथाह संपदाओं के बीच स्वर्ग की धरा में वास कर रहे है। वो अटूट श्रद्वा एवं विश्वास कि उनकी रक्षा के लिए मां दंतेश्वरी का आर्शीवाद ही काफी है।दंतेवाड़ा नगर शखनी एवं डंकनी नदी के तट पर बसा है,इन वो नदियों के जिनके संगम पर पानी के जहां अलग-अलग रंग है,स्थित है यह शक्तिपीठ। मंदिर का निर्माण 14 वीं सदी में बताया जाता है।
शंखनी डंकनी संगम तट पर माता के पद चिन्ह भी मौजूद हैं,जो माता की साक्षात उपस्थिती बताने काफी है। मुख्य मंदिर के निकट ही भुनेश्वरी का भी मंदिर है जो मॉं दंतेश्वरी की छोटी बहन है। समृद्व वास्तुकाल के साथ यहां की सामाजिक,धार्मिक,सांस्कृतिक संस्कृतियों की दर्शन कराती यह जगह ऐसा केंद्र है,जहां जो आए यहां विभोर हो जाता है। दंतेवाड़ा का नाम ही मां दंतेश्वरी के नाम पर पड़ा है। काकतीय राजाओं के साथ ही बस्तर की कुलदेवी माना जाता है। अन्य मंदिरों की तरह इस मंदिर के पीछे भी कई किवदंतियां हैं।
बस्तर संभाग की इस सम्मानीय आराध्य देवी पर माना जाता है कि यहां सती का दांत गिरा था। उस युग में कई शक्तिपीठ का निर्माण हुआ इसलिए यह दंतेश्वरी कहलाया और इसलिए नगर का नाम भी दंतेवाड़ा पड़ा। यह 52 वां शक्तिपीठ कहा जाता है,जबकि कई ग्रंथों में संख्या अधिक बतायी गयी है। मंदिर में प्रवेश के भी विधान हैं,जिसके मुताबिक यहां सीले हुए कपडे पहने लोगो को का प्रवेश नहीं दिया जाता। अतएव सभी लोग लुंगी,धोती पहन कर ही दर्शन करते हैं। ले जाने की जरूरत नहीं है,वहां उपलब्ध होता है।शारदीय एवं चैत्र नवरात्रि पर्व में यहां ज्योति प्रज्जवलित किए जाते हैं।
यही नहीं इन दोनों नवरात्रि के साथ फागुन में 10 दिनों की आखेट नवरात्रि भी मनायी जाती है,जिसमें लोग शामिल होते हैं। अतीत के इस मंदिर का बीच में जीर्णाेधार भी कराया गया। दूसरा जीर्णाेधार जो तकरीबन 1932-33 में तब तात्कालीन महारानी प्रफुल्ल कुमारी देवी द्वारा कराये जाने की बातें हैं। यदि आप दंतेवाड़ा आना चाहें तो बिल्कुल अपना स्वप्न साकार कीजिए और सिर्फ दंतेवाड़ा ही नहीं अपितु इसी जिले मे बचेली,बैलाडिला जाकर एशिया के जानेमाने लौह अयस्क खदान जो अयस्क विशाखापट्नम से जापान देश को ले जायी जाती है देखें। एशिया का जानामाना चित्रकोट जलप्रपात जिसे भारत का नियाग्रा कहा जाता है।
इस जलप्रपात का देश मे सबसे चौड़ा जलप्रपात भी बताया जाता है,जहां वाटरफाल 90 फीट ऊंचा है। कांगेरघाटी राष्ट्रीय उद्यान,दंडक गुफा,कुटूमसर गुफा,तीरथगढ़ जलप्रपात प्राकृतिक सौंदर्यता से लदे विभीन्न वनस्पतियों, ऊंचे घने जंगलों के साथ बस्तर की संस्कृति सभ्यता से रूबरू हो लीजिए। यदि आप आना चाह रहे हैं तो विशाखापट्टनम से ट्रेन रूट से जुड़ाव है,जहां रेलवे की सुविधाएं हैं। वहीं वर्तमान में अभी जगदलपूर में हवाई सेवा की शुरूआत हुई। यहां से सड़क मार्ग से जो तकरीबन 100 किमी है,आ सकते हैं।
अभी नवरात्रि का पांचवा दिन है,और अंत में दशहरा पर्व जो कि बस्तर में ऐसा पर्व होता है,जिसके देश हीं नहीं काफी संख्या में विदेशी सैलानी भी इसके साक्षी बनते हैं।छत्तीसगढ़ कला जगत में मां दंतेश्वरी देवी पर कई सेवा जस गीतों का निर्माण हुआ है जो काफी लोकप्रिय हुए हैं। बस्तर में दंतेवाड़ा के दर्शन को आ रहे हैं तो इसके साथ ही नैसर्गिक छटा से लदी यहां की धरती और यहां मिलने वाली कई स्थानीय खाद्व चीजों का आनंद भी ले सकते हैं। बस्तर के संभागीय मुख्यालय जगदलपूर के अतिरिक्त स्वयं दंतेवाड़ा में बेहतर लाजिंग एवं रेस्टारेंट की सुविधा उपलब्ध है। जय माता दी…