कविता काव्य

”दर्पण क्या होता है” स्व. श्री नारायण लाल परमार अखिल भारतीय साहित्यकार धमतरी छ.ग.

साहित्यकार-परिचय –

स्व. श्री नारायण लाल परमार

माता-पिता

जन्म – 01 जनवरी 1927

शिक्षा – एम.ए. साहित्यरत्न

प्रकाशन – उपन्यास छलना/प्यार की लाज/पूजामयी। कहानी संग्रह अमर नर्तकी काव्य संकलन- खोखले शब्दों के खिलाफ, सब कुछ निस्पन्द है। कांवर भर धूप, रोशनी का घोषणा पत्र,कस्तुरी यादें, बाल साहित्य- वाणी ऐसी बोलिये, मोनू भैया, अक्ल बड़ी या भैंस,चतुर बगुला(कथा संग्रह) ज्योति से ज्योति जगाते चलो(प्रेरक प्रसंग)आओ नमन करें(प्रेरक गीत) पन्द्रह अगस्त(एकांकी संग्रह) गद्दार कौन(लोक कथाएं) चार मित्र(पंचतंत्र की पद्यात्मक कथाएं),चलो गीत गाएं(बालगीत) बचपन की बांसुरी,ईश्वर की तलाश,सोने का सांप,हीरे से अनमोल। छत्तीसगढ़ी साहित्य सुरूज नई भरे(काव्य संकलन) कतवार अऊ दूसर एकांकी, सोने के माली।

पुरस्कार / सम्मान –  मध्यप्रदेश शासन की साहित्य परिषद द्वारा पुरस्कृत।

सम्पर्क – पीटर कालोनी,टिकरापारा धमतरी(छ.ग.)

 

”दर्पण क्या होता है”

अपने को बिन जाने परखे जिया,ढेर सी उमर गुजारी,
पहिली बार तुम्हें देखा तो जाना,दरपन क्या होता है?

मैंने इतनी धरती नापी, चन्दा-वूरज सभी सराहे।
पॉंव नहीं थकते थे अलबत्,अर्थहीन लगती थी राहें।
चारों ओर लगी रहती थी भीड कि जिसका अन्त नहीं था,
दिखी न लेकिन मुझे बॉंध लें, ऐसी दो चिर-परिचित बॉंहे।

तुमने अपने सरस परस से, ज्योही आशिष की बरखा की,
जलते मेरे रोम रोम ने चीन्हा, चन्दन क्या होता है?

यादन नहीं आता क्ष्ज्ञण भर भी, हठी दिशाएॅं मुझसे बोली।
मेरे खातिर इन्द्रधनुष की खुल न सकी सतरंगी झोली।
पर मैं तो बस तुम्हें ढूॅंढने निकला था, फिर क्यों भरमाता?
था विश्वास, तुम्हें पाकर यह हो जाएगी साध अमोली।

सोच रहा था जिसे अजन्मा, वह सौंदर्य तुम्हीं में प्रकटा,
सीखा मेरी इस मिट्टी ने पूजन-वंदन क्या होता है?

 

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