सवाल धरा से लगाव का…श्री मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर‚कांकेर (छ.ग.)
श्री मनोज जायसवाल
पिता-श्री अभय राम जायसवाल
माता-स्व.श्रीमती वीणा जायसवाल
जीवन संगिनी– श्रीमती धनेश्वरी जायसवाल
सन्तति- पुत्र 1. डीकेश जायसवाल 2. फलक जायसवाल
(साहित्य कला संगीत जगत को समर्पित)

सवाल धरा से लगाव का…
छत्तीसगढ़ी से दूर जाने वाले भी जब सम्मान की बात आती है, तो तल्ख मिनट के लिए लगाव करते देखे जाते हैं। कितने लोग कितने छत्तीसगढ़ी फिल्में देखें हैं। कितने लोक कला मंचों पर होने वाली प्रस्तुतियों का आनंद लेते हैं? कितने लोग ऐसे हैं कि छत्तीसगढ़ी बोली का अपने घरों के साथ अन्य जगह सम्मान के साथ वार्तालाप करना पसंद करते हैं।
यह सब वे प्रश्न और बातें है जिससे हम अपनी अस्मिता के संरक्षण के लिए कितने सजग,जागरूक एवं गंभीर हैं इससे पता चलता है। जब कार में चल रहे हों और भूल से कोई छत्तीसगढ़ी गीत बजने लगे तो तत्काल तीसरा सदस्य हिंदी गीतों पर फारवर्ड कर देता है। आज भी कई जगह छत्तीसगढ़ी बोली में बात करना अपने स्वाभिमान के खिलाफ समझा जाता है तभी तो आम बोलचाल की जीवनचर्या में हिंदी को प्रमुखता दी जाती है।
अन्य प्रदेशाें से यहां आने वाले लोग बखुबी अपनी मातृभाषा का प्रयोग करते देखे जा सकते हैं,लेकिन ऐसा भी क्या स्वाभिमान है कि कुछ लोग अपनी मातृभाषा बोलने में हिचक पैदा करते हिंदी इंग्लिश में बात करना ही अपना गर्व समझते है। क्यों हमें अपनी लोक कला और संस्कृति से समाहित मंचों में अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं कराते। जिसका ही कारण रहा है कि छत्तीसगढ़ की धरा में ही गांव गांव में होने वाले नाचा जैसे आयोजनों में भींड़ के टोटे पड़ने के चलते बड़े बड़े लोक सांस्कृतिक मंचों के आयोजन रख कर ही हम अपने को गौरवान्वित समझते है।
रिकार्डिंग डांस पर बच्चों को अत्याधुनिक वादय यंत्रों के डीजे साउंड पर डांस करना अच्छा लगता है और छत्तीसगढ़ी गीतों पर नृत्य पर हम जोर नहीं देते हैं। जिसका दूरगामी नुकसान हमें यह हो रहा है कि छत्तीसगढ़ की कई विद्याएं विलुप्ती की कगार पर है। आज की युथ पीढ़ी को यदि हम छत्तीसगढ़ की उन विद्याओं को पूछें तो कई यहां के कला जगत में होते हुए भी अनभिज्ञता जाहिर कर रहे होते हैं और तो और इतना सामान्य ज्ञान भी नहीं रखते कि हमारी धरा के उन रचियताओं के नाम तक बता पाने में असमर्थ होते हैं। इससे बड़ी चिंतनीय बात और क्या हो सकती है और यदि ऐसा ही हाल रहा तो आगे और आने वाली पीढ़ी यहां के उन विद्याओं के वाद्य यंत्रों को भी पहचानने से इंकार कर दे