आलेख देश

‘धोखा उन्हें दिए‚टीसें पास रूक गयी’ मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर कांकेर(छ.ग.)

 (मनोज जायसवाल)
यह तो देने वाले की हैसियत पर निर्भर करता है, आदरणीय! कोई वफा दे जाता है,कोई उपेक्षा दे जाता है तो कोई धोखा दे जाता है। कोई उपेक्षा का दंश दे जाता है। तमाम वो चीजें अपने हैसियत के चलते दे जाता है,खुद के खुश रहने के लिए। लेकिन देने के बाद टीसें  उनके अपने पास रह जाती है ।
यह जिंदगी भर की टीसें उन्हें जब कठिन वक्त पर मारती  है, तब पुनः उन्हें याद आता है कि उन्हें धोखा  नहीं दिया अपितु खुद धोखा खाये है।
तब पैसे थे, ना भी थे तो किसी बड़े पैसे वाले का आश्रय था। जिनके बडे औकात में खुद भूला बैठे थे, कि दुनियां में कुछ और भी चीजें है। इसलिए भी कि अकस्मात मिला पैसा,शौहरत,प्रतिष्ठा जो दूसरों के प्रदत्त थे, के चलते लगने लगा था कि हम अब आसमान पर पहूंच चुके हैं। उनकी खुद औकात का तो अब पता चला कि वे हमारी भावनाओं से अलग रास्ते  अख्तियार कर लिये।
अब पुराने दिलों पर जब आये तो देर हो चुका था। हमारी  हैसियत का परिणाम तो जमीनी धरातल में मिल गया जहां धोखे,उपेक्षा का परिणाम दुनियां की नजरों में अनजान पथ पर किसी पहाडी के पत्थरों सदृश्य हो गये जिसके ऊपर लोग चढ कर मजे लेना चाहते हैं, इन पत्थरों से प्रकृति का नजारा लेना चाहते हैं।

1 COMMENTS

  1. सही बात
    धोखा उन्हें दिए, टीसें पास रह गई

LEAVE A RESPONSE

error: Content is protected !!