दिखावे को करते हैं, सलाम! श्री मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर कांकेर(छ.ग.)

श्री मनोज जायसवाल
पिता-श्री अभय राम जायसवाल
माता-स्व.श्रीमती वीणा जायसवाल
जीवन संगिनी– श्रीमती धनेश्वरी जायसवाल
सन्तति- पुत्र 1. डीकेश जायसवाल 2. फलक जायसवाल
(साहित्य कला संगीत जगत को समर्पित)

दिखावे को करते हैं, सलाम!
सचमुच कभी-कभी ऐसा लगता है, कि दिखावा भी आज जरूरी हो गया है।लेकिन दिखावे के नाम जीरो रहकर हीरो बनना भी एक दिन खुलने वाली पोल से सारा सम्मान का खात्मा कर देता है। वैसे आज देखें तो रोजमर्रा में आप अच्छे भले क्यों न हो लक्जरी बसों में यात्रा कर रहे हों तो एक अदद सा कंडक्टर भी आपके शालीन शांत प्रोफेशन पर आपसे मुंहजबानी लगाना नहीं चुकता। शांत एवं चुपचाप नीचे सामान्य से जुते दिखायी दें तो उसकी नजर में शायद कमजोर से आंकता है।
हालांकि ऐसा कुछ नहीं होता और एक नहीं कई दफा तो ऐसे कंडक्टरों को गाली तो क्या थप्पड़ भी पड जाते हैं। अपनी औकात से बढ़कर अनर्गल व्यवहार करें तो उनको और क्या सजा मिलेगी? ऐसा ही सरकारी आफिसों का भी है! जहां काम कराने जाओ तो परिधान से ही अधिकारी अंदाजा लगा कर दबावपूर्ण व्यवहार करने लगता है। इस गलतफहमी की सजा उन्हें भी कई दफा मिली है। सबसे महत्वपूर्ण बात यहां यह बता दें कि इसमें से जो भी हो उन्हें भी सजा मिली है और किसी को नहीं मिली होगी तो गलत व्यवहार की सजा आगे के सफर में कहीं न कहीं मिल जाती है।
परिधान के साथ कई लोग नीचे जुते से लेकर सामने वाले के आज कल तो मोबाईल सेट तक को ध्यान दिया जाता है। पहले के सामान्य मोबाईल सेट रखे हों उसे आज के एंड्राइड के जमाने में पिछड़ा समझा जाने लगा है। शायद यही कारण है कि सामान्य मोबाईल सेट में सुविधा के बाद भी जमाने के साथ चलना है करके एंड्राइड सेट रखा जाने लगा है। शायद इसलिए जेब से सेट के पीछे लिखे एप्पल नजर आने पर लोगो की संभवतया कद्र बढ जाती है।
यही हाल अब सोशल मीडिया का भी हो गया है मित्रों के बीच कभी बात निकलने पर फेस बुक,टवीटर,वाट्स एप एवं एक्स एकाउंट की बात खुलती है और जिस मित्रों के पास ये सब नहीं उन्हें पिछड़ा समझा जाने लगा है। इन्हें भी सजा मिली है जब सामान्य ज्ञान के पर्चे या डिबेट होती है तब सोशल मीडिया वाला जवाब नहीं दे पाता जबकि सामान्य व्यक्ति जवाब दे जाता है तब आगे होने की पोल खुल जाती है।
प्रशासनिक स्तर पर कभी सिविल ड्रेस में अधिकारी शापिंग के लिए या मार्निंग वाक से जब लोगों से चाय के ठेले या पान ठेले के पास सरोकार होते हैं तो पता चलता कि धरातल में आम बेबस इंसान किस तरह तंत्र के कमियों के चलते त्रस्त चल रहे हैं। आज के रोजमर्रा और व्यस्ततम जीवनचर्या में भला कौन अधिकारियों को अपना वेश बदलकर आम लोगों के सरोकार की खातिर इतना सब कुछ करने की सुझे। उन्हें अपने से फुर्सत मिले तब ना!
दिखावे की दूनियां में कभी यह नहीं सोचना चाहिए कि उनकी क्या औकात है? क्या कर लेगा? एक आम आदमी के पास जितना अधिकार है वह अन्य के पास नहीं! बर्शतें वह पूरी तरह जागरूक हो और अंतिम समय तक दम न तोड़ते हुए किसी भी विषय पर अपनी लड़ाई जारी रखे।
अतीत के साथ वर्तमान गवाह है कि ऊॅंची सोच भावनाओं वाले दिखावे में नहीं जाते। उनका व्यवहार,उनकी कलम सब कुछ बयां करती है।