साहित्यकार परिचय
श्रीमती कल्पना कुर्रे
माता /पिता – श्रीमती गीता घृतलहरे, श्री हेमचंद घृतलहरे
पति – श्री शिवदयाल कुर्रे
संतत–् पुत्र – 1. अभिनव 2. रिषभ
जन्मतिथि – 19 जून 1988
शिक्षा-
प्रकाशन-
पेशा – गृहणी
पता – ग्राम – कातलबोड़़
पोस्ट – देवरबीजा,
तहसील – साजा,
जिला – बेमेतरा (छ.ग.)
संपर्क- मो. – 8966810173
” दीपांजलि “
(यथार्थवादी कहानी)
“दीया एक अच्छी बेटी के साथ -साथ एक अच्छी बहू, पत्नी और मां भी है। दीया घर का सारा काम अकेली ही करती है, घर का काम निपटा कर खेत जाती है, खेत से आते ही घर के कामों में लग जाती है। देवरानी और जेठानी को कुछ भी नहीं कहती है जब कि दोनों कुछ भी काम नहीं करती है। सास ससुर भी दोनों बहुओं को कुछ भी नहीं बोलते थे क्योंकि दोनों सरकारी नौकरी में है इसलिए परिवार में उनका औदा बड़ा है। दीया और उसके बच्चों के लिए कपड़े मीन ही लेते थे।
दीया और बच्चे जो भी पहनते थे सब उसके मायके से ही आता था। कभी खरीद भी देते तो पैसे का बड़ा भेदभाव होता था।घर के सभी बच्चों के लिए महंगें कपड़े तो दीया के बच्चों के लिए सस्ते कपड़े, फिर भी दीया उतने मे ही खुश हो जाती थी। घर में पकवान बनता भी तो दीया को नहीं देते थे। बच्चों को कभी -कभी कुछ दे देते तो दीया उतने मे ही खुश हो जाती,कि बच्चों ने खा लिया तो मैंने भी खा लिया।मायके भी नहीं जाने देते। चली गई तो घर का काम कौन करेगा सोचते।बस साल में एक या दो बार ही मायके जाती थी।
वहां भी ससुराल की बढ़ाई ही करती थी, मायके वालों को भी कभी अपने ससुराल नही बुलाया करती।कभी अचानक जाना पड़ जाता तो, सभी हालात समझ जाते थे। बहनों से हमेशा झूठ ही बोलती कि मैं बहुत खुश हूं। बहनों को सब पता थी,वे कुछ बोलती तो दीया बात टाल जाती। ऐसे ही चलता रहा, दीवाली में बच्चों के लिए सस्ते कपड़े और कुछ फुलझड़ियां ही दिला देते। दीया उतने मे ही खुश हो जाती और दिन-भर घर का काम करती।घर में दीया की नौकरानी जैसी हालत थी। पति सब जानता समझता था, फिर भी कुछ नहीं बोलता था क्योंकि दोनों भाई और भाभीयां सरकारी नौकरी में थी।
सारी खेती का काम दीया और उसके पति करते थे, उसके बावजूद उन्हें खर्च के लिए पैसा भी नहीं देते थे । दीया अपने खर्चे चलाने के लिए दुसरो के खेतो मे काम भी कर लेती थी, उसमें से कुछ पैसे आते वो भी उसका पति शराब पी लेता । दीया का मन अच्छा नहीं लगता तो बहनों से फोन में बात कर लेती, और उन्हें बताया करती कि आज घर में ये पकवान बनाए हैं,कल वो पकवान बनायेंगे। खुद को मिलता कुछ भी नहीं था ।
दीया को पकवान बनाने नहीं देते थे, पकवान बनाने की बारी आती तो दोनों बहुएं और सास लग जाती और सारा खा जाते । ऐसे ही एक दिन दीया अपने मायके में बहनों से फोन पर बात कर रही थी और उन्हें बता रही थी कि आज तो मैं पेट भर के पकवान खाऊंगी आज मेरी पसंद का जो बना है। तभी सासु-मां दीया को बुलाने लगी , “दीया वो दीया जल्दी आओ कहा रह गई, दीया बहुत खुश होकर बोली, ‘ आती हूं मां जी ‘ दीया फोन में ‘ देखो खाने के लिए जल्दी बुला रहे हैं कहीं ठंडी ना हो जाए, मैं फोन रखती हूं , बोलकर दीया ने फोन रखा और जल्दी – जल्दी सासु मां के सामने जा खड़ी हुई, सास- ससुर बोले, कहा रह जाती हो जाओ जल्दी से ये सारा बर्तन साफ करके ले आओ , रात के खाने की तैयारी भी करनी है , जल्दी से रात का खाना बना लेना ।
दीया को धक्का -सा लगा क्यों कि बर्तन में एक भी निवाला नहीं बचा था। सभी लोग खां करके दीया के लिए जुठा बर्तन छोड़ गये थे , फिर भी दीया सिर झुकाए , जी मां जी , बोलकर बर्तन साफ करने चली गई। परिवार के किसी भी सदस्य को उसका ख्याल तक नहीं आया कि दीया ने कुछ खाया भी की नहीं ।
‘ दीया फिर भी अपने परिवार के लिए सब कुछ करती है । सभी का सम्मान और इज्ज़त करती है इसी आश में कि कभी तो ये लोग मेरा भी सम्मान करेंगे और एक दिन मुझे भी प्यार और सम्मान देंगे !