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‘दोना पत्तल में खाने का मजा लीजिए’ मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर कांकेर(छ.ग.)

-बस्तर में साल के पत्तों  से बनाये दोना पत्तल में खानपान का अपना मजा।

(मनोज जायसवाल)
इस बार की गर्मी की तपिश सबको परेशान कर रखी है। नगरों में एसी.कूलर तक काम नहीं कर रहे हैं। तापमान ही उच्च डिग्री पर है तो पंखे हवा कैसे ठंडी दे। भौतिक सुख में बसर कर रहे लोग एक तरफ परेशान हैं। गर्मी में बस्तर में दोना पत्तल में खानपान का अपना मजा है। अतीत ही नहीं यहां आज भी कई जगह दावतें पत्तलों पर देखी जा सकती है। जिस स्नेह भावों के साथ स्वागत की परंपरा उसी स्नेह अपनत्व भाव के साथ दोना पत्तलों पर खानपान  बस्तर की यह भी एक पहचान  है। बस्तर में पत्तों का उपयोग दोना पत्तल के रूप में उपयोग में लाने की अपितु यहां के हाट बाजारों में कई खादृय वस्तुएं इसी में दी जाती है। यहां के कई खादृय वनोत्पाद भी पत्ते में बेचे जाते हैं। वैसे तो आज दोना पत्तल का व्यावसायिक निर्माण हो रहा है‚लेकिन बस्तर के गावों में अपने उपयोग के लिए तत्काल बनाये जाते हैं‚उसमें  खानपान का ज्यादा आनंद है।

गर्मी के तारतम्य ऐसा भी हमने देखा कि  जो भरी गर्मी में पंखे तक नहीं चलाते! और वो भी कई वृदृध लोग! कई लोग तो गावों में ऐसा कि चप्पल तक नहीं पहनते। मध्य बस्तर कोण्डागांव क्षेत्र आएं तो पता चलेगा कि कैसे वनवासी बिना चप्पल के भरी गर्मी में चलते नजर आएंगे।ऐसे कई लोगों को मैं जानता हूं, देखा हूं और महसूस किया है कि उन्हें बावजूद इसके किसी भी प्रकार की परेशानी भी नही। गर्मी के मौसम की तरह कई लोग तो ठंडी के मौसम में खुले बदन घुमते देखे जा सकते हैं,तो रात्रि तीन बजे नहाते भी है।

देश के छत्तीसगढ़ राज्य के उत्तर से  मध्य एवं दक्षिण बस्तर की तरफ यदि रूख करें तो गावों में लोग किसी पेंड के नीचे बैठकर समय व्यतीत करते देखे जा सकते हैं। बर और पीपल ऐसे वृक्ष हैं,जिसके नीचे बैठ कर आराम करें तो असीम सुख की प्राप्ति होती है। इतनी ठंडकता लिए होती है कि यदि सो जाएं तो भरपूर नींद भी आ जाता है। तापमान का नियंत्रण किस प्रकार से नियंत्रित रहता है यह तो यहां से ही पूछिये।

कैसे महुए,पलाश और मुख्यतः शाल के पत्तों से खाने के लिए पत्तल दोने बनाये जाते हैं,जिसमें आप भोजन करें तो असीम आनंद की प्राप्ति होती है।साल के पत्तों के बनाये गये दोना पत्तल से खानपान में जितना आनंद है‚उतना यह पर्यावरण की दृष्टि से भी बेहद उचित है। किस प्रकार प्लास्टिक पर्यावरण के लिए खतरा बना हुआ है‚बताने की जरूरत नहीं है।  खानपान के बाद उक्त पत्ते खाद के गढ्ढे में डाल दिया जाता है‚जो बाद में खाद बनता है।

एक बारगी पिछडापन का तमगा देते मिनट नहीं लगाने वाले खुद कितने पिछडे हैं, यह तो खुद आंकलित कीजिए कि खुद इनवायरमेंट में अपने को ढाल नहीं पा रहे। वातावरण सह नहीं पाने की वजह कि धरती के सबसे बड़े जीव डायनासोरस का अस्तित्व ही खत्म हो गया। इसी कुल का रंग बदलने वाला गिरगिट आज भी इस बाड़ दे उस बाड़ सीमित दूरी तक दौड़ लगाता आज भी जिंदा होते इस कहानी को बतला रहा है कि प्रतिकूल वातावरण में अपने को सहन करने,अपने में ढाल सकने पर ही आप जी सकते हैं।

जितनी चीजें आयुर्वेद के औषधी के नाम आप सेवन करते हैं,उतने तो हर मौसम में मिलने वाले सीजनी फलों से लोगों को स्वास्थ्य लाभ मिलता है। वर्तमान कोरोना काल में जिस तरह खाने पीने की चीजों के जरीये संक्रमण का खतरा मंडराने के चलते खान पान में फूंक फूंक कर कदम रखा जा रहा है,ये प्राकृतिक दोना पत्तल बेहतर आप्शन बना। वैसे भी यहां कई जगह लोग अधिकाधिक लोगों की आवाजाही पर बड़े वजनी बर्तन धाने मांजने जैसी अनावश्यक मेहनत से दूर पत्तल दोने पर खानपान सरल के साथ अनावश्यक मेहनत से दूर रखता है।

दक्षिण भारत में जिस तरह केले के पत्तों पर आज भी भोजन की परंपराएं हैं,बस्तर में भी साल के पत्तों के दोना पत्ते पर भोजन का अपना अलग ही आनंद है। तापमान नियंत्रण की कड़ी में भी इसकी महती भूमिका रही है।

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