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’’बदलाव के लिए शिक्षा जरूरी”श्री अनिल कुमार मौर्य ‘अनल’ शिक्षक साहित्यकार‚कांकेर (छ.ग.)

-साहित्यकार परिचय-

अनिल कुमार मौर्य ‘अनल’

जन्म- 22  मई 1980 जन्म स्थान,संजय नगर,कांकेर छत्तीसगढ

माता/पिता – सेवती मौर्य,फूलचंद माैर्य   पत्नी-श्रीमती दीप्ति मौर्य

संतति –  पुत्र-संस्कार मौर्य,पुत्री-जिज्ञासा मौर्य ।

शिक्षा- एमए(हिंदी) इतिहास एवं सन! 2019 में विश्व विद्यालय जगदलपुर द्वारा मास्टर आफ आर्ट की संस्कृत विषय में उपाधि, डी.एड.

सम्मान- 1.साहित्य रत्न अवार्ड 2017,
2.साहित्य श्री समता अवार्ड 2018,
3.मौलाना आजाद  शिक्षा रत्न आवार्ड 2018,
4.प्राइड आफ छत्तीसगढ़ आवार्ड 2018
5.छत्तीसगढ़ युवा आयोग द्वारा प्रशस्ति पत्र 2018
6.कांकेर साहित्यश्री सम्मान 2021
7.श्रीमान् कलेक्टर कांकेर द्वारा   प्रशस्ति  पत्र 2021
8.सतनाम साहित्य सृजन सम्मान 2022,
9/.राष्ट्रीय  कवि संगम संभागीय अधिवेशन, बस्तर संभाग 25/02/2023

प्रकाशन-01.कोलाहल काव्य संग्रह 2019, प्रथम संस्करण प्रकाशन नई (दिल्ली)
02.साझा काव्य संकलन काव्य धरोहर जिला उ.ब. कांकेर
03.सागर की लहरे साहित्य कलष पब्लिकेशन पटियाला पंजाब
04.सतनाम हमर पहिचान छत्तीसगढ़ साझा काव्य संग्रह
05. लघु पुस्तिका  ”शब्दकोष” प्रथम संस्करण 2023

सम्प्रति- कांकेर जिले में शिक्षक के रूप में कार्यरत

सम्पर्क  – कांकेर माे. 8349439969

”बदलाव के लिए शिक्षा जरूरी”

छत्तीसगढ़ की आम जनता के पिछड़ने पन के कई कारण हो सकते है। छत्तीसगढ़ में वन संपदा,लौह अयस्क, हीरे की खदान (देवभोग) लोह इस्पात संयंत्र भिलाई,कोरबा का विद्युत केन्द्र, कच्चे आर्रीडोंगरी भानुप्रतापपुर लोह अयस्क खदान इतना सब कुछ होते हुए भी हमारा छत्तीसगढ़ आखिर पीछे क्यों है?

सबसे मुख्य बात तो शिक्षा है। यदि हम बिहार (पटना) के साथ इसकी तुलना करें तो छत्तीसगढ़ में प्राचीन शिक्षा के केन्द्र बहुत कम ही मिलते हैं पटना के नालंदा प्राचीन भारत में उच्च शिक्षा का  सर्वाधिक   महत्वपूर्ण और विख्यात केन्द्र था।

”महायान” बौद्ध धर्म के इस शिक्षा केन्द्र जो हीनयान बौद्धधर्म के साथ ही अन्य धर्मो के तथा  अनेक  देशों के छात्र पढ़ते थे वर्तमान बिहार राज्य में पटना से महज 88 कि.मी.दक्षिण पूर्व में नालंदा विश्वविद्यालय है।

छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिला के गुरूघांसीदास  विश्वविद्यालय जिसकी स्थापना 6 जून 1983 में हुआ जहां विभिन्न विषयों  का अध्यापन विशय विशेषज्ञों द्वारा कराया जाता है। यदि हम इतिहास का अध्ययन करें तो ज्ञात होगा कि’’मनुवादियों ने लोगों में यह ’’भ्रम जाल’’ फैलाकर रखा कि ब्राम्हण, क्षत्रीय, वैश्य, एवं शुद्र की उत्पत्ति ब्रम्हा के विभिन्न अंगो से हुए ब्राम्हण शिक्षा देने का कार्य करते थे, क्षत्रीय रक्षा, वैश्य व्यापार, सूद्र-सेवा कार्य करते थे, शुद्रों के शिक्षा ग्रहण करने पर पूर्णतः प्रतिबंध लगा दिया गया।

यदि कोई शुद्र वेद मंत्रों को सुन भी लेता था तो उसके कानों में ”गरम पारा” डाल दिया जाता था अभी हाल ही में मुझे टी.वी. पर एक समाचार देखने व सुनने को मिला कि यदि कोई निम्न जाति का आदमी अगर उच्च वर्ग के दरवाजें से होकर गुजरता है तो उसे अपने सर पर ”चप्पल” रखकर चलना पड़ता है। ऐसे में  शिक्षा का पुन्ज फैलाने वाले ज्योतिबा फूले जिन्होंने दलीतों को  शिक्षित  करने का बीड़ा उठाया । यहां की लोगों के पिछड़ेपन का एक अन्य कारण प्राचीन  शिक्षा  केन्द्रो की कमी कहा जाता सकता है।

नशाखोरी व शराबखोरी भी एक कारण हो सकता है स्वयं मेरी कहानी है, जब मैं बड़े पापा के साथ ’’ऋतुतराज’’ बस से रायपुर जाते हुए मेरी दृष्टि  एक मदिरा दुकान पर पड़ी, जहां सायकल, बस, ट्रक, मैजिक एवं मोटर सायकलों को किनारे लगाकर लोग शराब लेने के लिए लंबी-लंबी कतारे में लगे हुए थे तब मैंने अपने बड़े पापा से कहा कि इतनी भीड़ तो ”मंदिरों ”में भी नहीं होती तब उन्होंने मुझसे छत्तीसगढ़ी बोली में कहा ‘ बने कथस बाबू ‘और बच चल पड़ी । मेरा एैसा मानना है कि जिस दिन छत्तीसगढ़ के लोगों के दिलो दिमाग से षराब और कवाब का भूत भागेगा उस दिन एक नया सबेरा होगा और यहां चहुमुंखी विकास के मार्ग प्रषस्त होगा ।

छत्तीसगढ़ के लोगों को  शिक्षित  करने हेतु सर्वप्रथम राजकुमार कॉलेज रायपुर, स्वामी विवेकानंद आश्रम, कांकेर जिला स्थित षासकीय नरहरदेव उ.मा.विद्यालय (1932) एवं मैं जिस स्कूल में जाता हूं प्राथमिक शाला बागोडार विकासखण्ड जिला उत्तर बस्तर कांकेर की स्थापना 07 सितम्बर 1890 में जनपदीय शाला के रूप में हुआ । यदि ये उक्त संस्थाएं न होती तो आज भी दलितों को  शिक्षित  करने का महती कार्य संभव न होता।

इसी तारतम्य में डॉ. भीमराव आम्बेडकर जिनका प्यारा नाम ”बाबा- साहब” भी है । जिन्होंने मॉ  शारदे की असीम कृपा से एक नहीं, दो नहीं,तीन नहीं, चार नहीं, पांच नहीं बल्कि पूरे 26 अलग-अलग विशयों का डिग्री लिया । जिसका ’’लोहा’’ क्रैम्ब्रीज  विश्व विद्यालय ने भी माना और उनका स्टेच्यू (मुर्ति)  अपने  विश्वविद्‍यालय  के प्रवेश द्वार पर स्थापित किया ।

यहां पर मैं अपना एक संस्मरण अवश्य ही साझा करना चाहूंगा जिसका  स्मरण मुझे बार बार आता है कि जब मैं शासकीय भानुप्रतापदेव उपाधि महाविद्यालय कांकेर के कक्ष क्र. 25 में ’’संस्कृत’’ विषय की पर्चा दे रहा था तभी पर्यवेक्षक ”रामनारायण जैन” की निवासी अलबेलापारा कांकेर ने मुझसे कहा मौर्य आप तो बहुत थोड़ा लिखते हो तब मेरा यह उत्तर रहा सर मैं ऐसे लिखता हूूं जैसे ’’बिहारी के दोहे’’ और अप्रैल 2019 में जब परीक्षा परिणाम निकला तो फोन पर मुझे नवीन मेश्राम द्वारा बतया गया कि सर आपने द्वितीय श्रेणी में परीक्षा पास किया है उसके कुछ ही दिनों बाद जब कांकेर गोल बाजार में मेरी भेंट जैन जी से हुई तब उन्होंने पूछा रिजल्ट का क्या हुआ? मैंने कहा सर जी 57 प्रतिशत के साथ मैंने परीक्षा पास की है।

सुनकर उन्हें आश्चर्य हुआ मेरी इस सफलता का एक ही कारण हो सकता है लेखन शैली और शब्द भंडार, मैं यहां एक बात अवश्य कहना चाहूंगा कि मैंने एक ही किताब से पांचो प्रश्न पत्र हल किया था इसमें मुझे 500 में से 322 अंक मिले । एक शिक्षक साहित्यकार एवं लेखक होने के नाते मेरा सदा से ही यही प्रयास रहा है कि मैं अपनी बतों को लोगों से सरलता से कर सकूं ।

सराशतः हम कह सकते है कि छत्तीसगढ़ में संभावनाएं तो बहुत है जरूरत है तो बस इस बात की उन्हें पहचान सकें । यहां के प्राकृतिक संपदा में लाख, चिरोैंजी, महुआ, टोरी सरई, आदि-आदि प्राकृतिक संसाधन होते हुए भी  बिचौलिये द्वारा उसे कम कीमत पर खरीद कर अधिक मूल्य पर बेचते हैं और लाभ कमाते हैं इस प्रकार से बस्तर के भोले भाले लोगों का  शोषण  होता जा रहा है ।

जगदलपुर में  विश्व  की सबसे बड़ी ’’इमली मंडी’’ है यदि हम देखे कि छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद यहां सामाजिक,आर्थिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक , औद्योगिक जीवन के हर क्षेत्र में विकास की गंगा बही है यदि हमें अपने राज्य को आगे लाना है तो हमे सबसे पहले   शिक्षित  होना पडेगा। क्योंकि  शिक्षा उस ‘‘शेरनी”  का दूध है जो कि पीता है दहाड़ता है क्योंकि पढ़ेगा इंडिया तो बढ़ेगा इंडिया ।

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