दृष्टि है तो सृष्टि है ’’नेत्रदान – महादान‘‘ अनिल कुमार मौर्य ‘अनल’ शिक्षक साहित्यकार कांकेर छ.ग.
साहित्यकार परिचय-अनिल कुमार मौर्य ‘अनल’
जन्म- 22 मई 1980 जन्म स्थान,संजय नगर,कांकेर छत्तीसगढ
माता/पिता – फूलचंद माैर्य श्रीमती राेवती मौर्य, पत्नी-श्रीमती दीप्ति मौर्य, पुत्र-संस्कार,पुत्री-जिज्ञासा मौर्य ।
शिक्षा- एमए(हिंदी) इतिहास एवं सन! 2019 में विश्व विद्यालय जगदलपुर द्वारा मास्टर आफ आर्ट की संस्कृत विषय में उपाधि, डी.एड. ।
सम्मान- साहित्य रत्न समता अवार्ड 2017, साहित्य श्री समता अवार्ड 2018 मौलाना आजाद शिक्षा रत्न अवार्ड 2018, प्राइड आफ छत्तीसगढ अवार्ड 2018, प्राइड आफ छत्तीसगढ अवार्ड, सहभागिता सम्मान।
प्रकाशन-कोलाहल काव्य संग्रह।
सम्प्रति- कांकेर जिले में शिक्षक के रूप में कार्यरत।
सम्पर्क – कांकेर माे. 8349439969
दृष्टि है तो सृष्टि है ’’नेत्रदान – महादान‘‘
मैं अपनी धर्मपत्नी की थायराइड बढ़ा होने के कारण उसे लेकर कोमलदेव अस्पताल लगभग 12ः30 बजे पहुंचा तब डॉं.मनीष जैन से अपना-अपना उपचार कराने लोगों की लंबी-लंबी कतारे लगी हुई थी। अतः मैं मुख्य मार्ग में नीम के छांव तले खड़े होकर उसके लौटने का इंतजार करने लगा तभी मेरी दृष्टि बाई हाथ वाले गेट पर पडी जहां पर एक विज्ञापन लिखा हुआ है। ‘‘दृष्टि है तो सृष्टि है’’
इसे पढ़कर मैनें यह अनुभव किया कि जो बात मुझे देखने व पढ़ने को मिला वह शत प्रतिशत सत्य है। यदि हम किसी ऐसे व्यक्ति से मिले जिसकी आंखे नहीं है, तब हम आंख की ज्योति का महत्व बखूबी समझ सकते है। मैं ऐसे ही एक व्यक्ति से मिल चुका हूं जो अपने दृष्टि बाधिता से कभी दुखी व निराश नहीं हुआ,बल्कि उसका सामना करते हुए नाक से बांसुरी बजाने का हुनर बखूबी जानता है।
मुझे कई-कई बार मड़ई, मेला, हाट, बाजार में उसकी बांसुरी की मधुर धुन सुनने को मिला जब कभी वह मुझे मिलता मैं उसे कुछ न कुछ अवश्य ही देता। ऐसे ही मेरे रिश्ते के एक व्यक्ति को आकाशवाणी (सल्फी), बस्तर का बीयर एवं छिन्दरस पीने की आदत थी, जिसके परिणामस्वरूप उसके मस्तिष्क का नस सूख गया जिसके कारण उसकी आंखे चली गई।
मैनें अपनी एक ‘‘नशा’’ शीर्षक कविता में नशे का दुष्परिणाम को बताने का प्रयास किया है ‘‘नशा-नाश की जड़ है अमृत नहीं वह विष इस बात को गांठ तू बांध ले और छोड़ दे शराब, छोड़ दे शराब वरना होगा तेरा जीवन खराब-खराब’’ उक्त वाक्य में कितनी सत्यता है इसे पाठकवृंद ही समझ सकते है निश्चित ही उक्त कथन में थोडा ही सही मगर कुछ तो दम है।
सारांशतः हम कह सकते है कि ईश्वर ने हमे जो वस्तु दिये है उनमें से आंखे सबसे अनमोल है यदि हम अपनी आंखों को दान करे तो इससे किसी को नया – जीवन और दुनिया की रंगीनी देखने को मिल सकता है कहा भी गया है नेत्रदान महादान
हम यह कह सकते है कि जब हम शिक्षित होगें तभी नेत्रदान के महत्व को समझ सकते है भारतीय संस्कृति में भी सत्यम शिवम सुन्दरम की परिकल्पना की गई है और शिक्षा को मानव का तीसरा नेत्र कहा गया है। अतः हम स्कूल चले खूब पढ़े।