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”सनातन हिंदू धर्म में गौ की महत्ता”श्री पवन नयन जायसवाल वरिष्ठ साहित्यकार अमरावती‚विदर्भ(महाराष्ट्र)

( पवन नयन जायसवाल)
सनातन हिंदू धर्म और भारतीय कृषि प्रधान संस्कृति में गौ को माता कहा गया है। समुद्र मंथन के समय प्राप्त चौदह रत्न में एक है गौमाता जिसमें तैंतीस कोटि (तैंतीस प्रकार के) देवताओं का निवास है इसलिए सनातन हिंदू धर्म में गौ को पवित्र प्राणी मानकर उसको पूजा जाता है। गौमाता के महत्व के कारण ही सनातन हिंदू धर्म के सबसे बड़े पर्व, त्यौहार पांच दिवसीय दीपावली के धन त्रयोदशी या धनतेरस से प्रारंभ होने से पहले, कार्तिक मास कृष्ण पक्ष (महाराष्ट्र और गुजरात अनुसार आश्विन मास) की द्वादशी तिथि या बारस को गौ पूजन किया जाता है।

गौमाता को सनातन हिन्दू धर्म में कितना महत्वपूर्ण स्थान है यह इस बात से भी जाना जा सकता है कि हमने हमारे भारत देश की और हिंदुओं के लिए सबसे पवित्र नदी गंगा को मां कहां है और हिमालय से निकलने वाले उसके पावन जल के उद्गम स्थल को गौमुख कहा है। हमने हमारे मंदिरों में भी जल क्षुधा शांति के स्थान पर गौ माता के मुख लगाए। आज भी पुरातन मंदिरों में ऐसे गौमुख देखें जा सकते हैं।

सनातन हिंदू धर्म के पूजन-हवन या कर्मकांड और मृतक के अंतिम संस्कार, गोबर, गोमूत्र, गौ के दूध से बना घी और गौमल (गोबर) से बने उपले का बिना अधूरे माने जाते हैं।

 

सुर्योदय और सूर्यास्त के समय की वेला को भी हमारे मनीषियों ने गोरज और गोधूलि वेला कहकर विशेष महत्व दिया गया है। आज भी सनातन हिंदू धर्मावलंबियों के विवाह निमंत्रण पत्रों में संध्या समय आयोजित कार्य के समय की जगह गोधूलि बेला में ऐसा विशेष उल्लेख किया जाता है।

सबसे विशेष यह है कि श्रीहरि विष्णु के दशावतार में से एक श्रीकृष्ण की लीलाओं में भगवान श्रीकृष्ण का गौपालक सह गौ चराने और गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठाने का वर्णन है। इसीलिए भगवान श्री कृष्ण का एक नाम गोपाल भी है। भगवान श्री दत्तात्रेय की कोई भी चित्र और प्रतिमा गौमाता के बिना नहीं होती। हमारे अन्य देवी-देवताओं के साथ भी चित्रों और प्रतिमाओं में भी गौमाता को दर्शाया गया है।

गौ से हम भारतीयों के जीवन का अटूट नाता है इसलिए गौ से बने शब्द गौमाता की महत्ता को दर्शाने हमारे समक्ष बार-बार आते है जैसे गोरक्षनाथ (गोरखनाथ), गोरक्षपीठ का गोरक्षपुर (गोरखपुर), गोमती और गोदावरी नदी, गोवर्धन पर्वत। गौ संवर्धन के लिए हमारे देश के सभी गांवों में गौमाता के चारे के लिए जमीन सुरक्षित रखी गई है और उसे गायरान (गौवन) कहा जाता है। सनातनी हिन्दू सुबह उठने के बाद सबसे पहले गौ को चारा डालता है। मंदिर में दर्शानार्थी मंदिर की गौशाला में गोग्रास के लिए हरी घास लाते हैं। हम सभी हिन्दू परिवारों के घर में भोजन बनाते समय हमारी मातृशक्ति पहली रोटी गाय के लिए ही बनाती है। सनातनी हिन्दू के जीवन में गौ यह प्राणी नहीं प्राण है। जानवर नहीं जान है इसलिए गौरक्षा हमारे लिए हमारी प्राण रक्षा के समान है।

आज भी दक्षिण भारत में नवनिर्मित मकान में गृहप्रवेश के समय गौपूजन कर संपूर्ण निवास में गौमाता को घुमाया जाता है जिससे गौमाता के चरण रज से घर पवित्र हो जाएं। गौमाता से गृह निवासियों के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की कामना की जाती है।

हमारे आंखों में लगाया जानेवाला काजल भी गौमाता के घी के प्रकाशित दीप से ही उतारकर और गाय के घी में मिलाकर बनाया जाता है। गौ की पवित्रता के कारण हमारे देश में राह चलते बहुत से लोगों को गौमाता को देख उसको छू कर हाथ मस्तक पर लगाते हुए देखा जा सकता है। हिंदू मंदिरों और हमारे घर के मंदिर में भी देवताओं की प्रतिमाओं के साथ गौमाता की मूर्ति भी होती है। हमारे पवित्र धर्म ग्रंथों में सुयोग्य गौसेवक ब्राह्मण को या गौशाला में गोदान करना पुण्य कार्य माना गया है और यह भी बताया गया है कि कि गौमाता ही आपको भवसागर पार करवाती है।

गौमाता के हमारे जीवन में ऐसे ही महत्वपूर्ण योगदान के कारण गौवत्स द्वादशी यह पूर्ण रूप से गौमाता को समर्पित सनातन हिन्दू धर्म का त्यौहार है। सनातन हिंदू धर्मावलंबी बहुत बड़ी संख्या में शाकाहारी और अन्नहारी होते हैं इसलिए उनका जीवन बागवानी और कृषि उपज पर निर्भर करता हैं। गौमाता से हमें दूध के साथ कृषि की उपज क्षमता बढ़ाने के लिए गोबर और कृषि फसल पर लगने वाले कीड़ों और रोगों को नष्ट करने हेतु छिड़काव करने के लिए गौ मूत्र और कृषि कार्यों में मदद करने के लिए हमारे सहयोगी बैलों की प्राप्ति होती है।

गोवत्स द्वादशी एक सनातन हिंदू धर्म का त्योहार है, जो कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि पर यानी धनतेरस से एक दिन पहले मनाया जाता है। इसे वसु बारस भी कहा जाता है। यह एक अनोखा उत्सव है क्योंकि इस दिन हम मानवों का अपने दुग्ध से पोषण करने वाली गौ माता और उनके बछड़ों की पूजा की जाती है।

गाय को सनातन हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति में बहुत ही पवित्र प्राणी माना जाता है। इस दिन महिलाएं अपने बच्चों की खुशी और लंबे जीवन के लिए व्रत रखती हैं। इस व्रत को नंदिनी व्रत के रूप में भी जाना जाता है। कहते हैं जो भी संतान विहीन जोड़े इस दिन उपवास रख गाय की श्रद्धा से पूजा करते हैं, उन्हें जल्दी ही संतान सुख प्राप्त होता है। गोवत्स द्वादशी गायों की पूजा के लिए सबसे विशेष पर्व माना जाता है।

इस दिन प्रसूता, दूध देने वाली गाय को उसके बछड़े सहित स्नान कराकर, पुष्प माला पहनाकर चन्दन का तिलक लगाना चाहिए। तांबे के कलश में सुगन्ध, अक्षत, पुष्प, तिल से मिश्रित जल से गौचरणों का प्रक्षालन कर गाय और उसके बछड़े को नव वस्त्र ओढ़ाकर, धूप, दीप से आरती कर मनोकामना के साथ यह कहते हुए नमस्कार करना चाहिए:-

 

” क्षीरोदार्णवसम्भूते सुरासुरनमस्कृते।
सर्वदेवमये मातर्गृहाणार्घ्य नमो नमः॥ “

अर्थात- देव-दानवों के समुद्र मंथन के समय क्षीरसागर से उत्पन्न और देवता और दानवों दोनों के द्वारा नमस्कृत सर्वदेवस्वरूपिनी माता तुमको मेरा बार-बार नमस्कार है।

इसबार यह विशेष व्रत 09 नवंबर 23, दिन गुरुवार को रखा जाएगा। गौपूजा गोधूलि बेला में यानी शाम के समय सूर्यास्त होने से पहले ही कर लेना चाहिए।

 

गौवत्स द्वादशी के पर्व के अवसर पर हमने गौपूजन के साथ ही गौ-पालन, गौसेवा, गौ वंश की सुरक्षा और विधर्मियों से गौहत्या रोकने के कार्य में अपना योगदान देने की शपथ लेनी चाहिए तभी हमारी गोपूजा सार्थक होंगी।

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