”गृहस्थ’ में रहकर धर्म के रास्ते चलने का संदेश”श्री मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर कांकेर छ.ग.
श्री मनोज जायसवाल
पिता-श्री अभय राम जायसवाल
माता-स्व.श्रीमती वीणा जायसवाल
जीवन संगिनी– श्रीमती धनेश्वरी जायसवाल
सन्तति- पुत्र 1. डीकेश जायसवाल 2. फलक जायसवाल
(साहित्य कला संगीत जगत को समर्पित)

”गृहस्थ’ में रहकर धर्म के रास्ते चलने का संदेश”
गृहस्थ जीवन के रूप में भी अपने धर्म में रह कर अच्छा जीवन जीया जा सकता है। ऐसा ही संदेश को आत्मसात करते एवं दूसरों के लिए प्रेरणा का काम करते अमर हो गये अखिल विश्व गायत्री परिवार के संस्थापक, समाजसेवक, दार्शनिक,युग दृष्टा मनीषी पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जिसे पंडित मदन मोहन मालवीय ने यज्ञोपवीत संस्कार कर गायत्री की दीक्षा दी थी।
1971 में हरिद्वार में शांतिकुंज की स्थापना की। आंवलखेडा में जन्मे श्रीराम शर्मा आचार्य के पिता पं. रूपकिशोर शर्मा माता दंकुनवारी की संतान थे। धर्म पत्नी वंदनीया भगवती देवी शर्मा ने धर्म के कार्य को आगे बढ़ाया। पं.श्रीराम शर्मा आचार्य मानवता देश की सेवा के लिए जेल भी गये पर वहां से भी आध्यात्म की शिक्षा प्रवाहित करते रहे। राजनीति में महात्मा गांधी से निकटता हुई। महात्मा गांधी के नहीं रहने पर लेखन जगत में मुखर रहे। अंतिम समय तक जब नेत्र ज्योति नहीं रही तब भी वे पांच पुस्तकें बोलकर लिखी। उनके जीवन संघर्ष की कहानी लिख पाना इस पेज में संभव नहीं है। गृहस्थ जीवन में रहकर अपने धर्म के लिए अपना सर्वस्व लुटाते योगदान दिया।
ऐसा बात नहीं कि पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी अपितु उनकी संतान भी सनातन धर्म का पालन करते गृहस्थ जीवन के आभा के साथ पूरे विश्व को अनुपम सौगात दे रहे हैं। यही नहीं अंतर्राष्ट्रीय कथावाचक अनिरूद्धाचार्य जी भी गृहस्थी के साथ ज्ञान की कीर्ति पूरे विश्व में प्रसारित कर रहे हैं। इसके साथ ऐसे कई नाम हैं,जो हिंदु धर्म के अनुसार विवाह कर गृहस्थ जीवन के साथ कथावाचन के रूप में लोगों के बीच मशहूर हैं।
कुल मिलाकर देखा जाय तो जो गृहस्थ जीवन जी रहे हैं उसके साथ भी अपने ही धर्म की रक्षा करते हुए जीया जा सकता है और दुनिया में अपना नाम अमर किया जा सकता है। आईये अपने धर्म की रक्षा के साथ गृहस्थी जीवन के साथ-साथ सद्कार्य के साथ जीवन जीयें।