”जातिगत विषमताओं को नकारा-बाबा गुरू घासीदास” श्री मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर‚कांकेर (छ.ग.)
श्री मनोज जायसवाल
पिता-श्री अभय राम जायसवाल
माता-स्व.श्रीमती वीणा जायसवाल
जीवन संगिनी– श्रीमती धनेश्वरी जायसवाल
सन्तति- पुत्र 1. डीकेश जायसवाल 2. फलक जायसवाल
(साहित्य कला संगीत जगत को समर्पित)
”जातिगत विषमताओं को नकारा-बाबा गुरू घासीदास”
पूरे छत्तीसगढ़ राज्य में गुरु घासीदास की जयंती 18 दिसंबर से एक माह तक बड़े पैमाने पर उत्सव के रूप में पूरे श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाई जाती है। बाबा गुरु घासीदास का जन्म 1756 में रायपुर जिले के गिरौदपुरी में एक गरीब और साधारण परिवार में हुआ था।
गुरू घासीदास बाबा जी ने समाज में व्याप्त जातिगत विषमताओं को नकारा। उन्होंने ब्राम्हणों के प्रभुत्व को नकारा और कई वर्णों में बांटने वाली जाति व्यवस्था का विरोध किया। उनका मानना था कि समाज में प्रत्येक व्यक्ति सामाजिक रूप से समान हैसियत रखता है। गुरू घासीदास पशुओं से भी प्रेम करने की सीख देते थे। वे उन पर क्रूरता पूर्वक व्यवहार करने के खिलाफ थे।
सतनाम पंथ के अनुसार खेती के लिए गायों का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिये। गुरू घासीदास के संदेशों का समाज के पिछड़े समुदाय में गहरा असर पड़ा। सन् 1901 की जनगणना के अनुसार उस वक्त लगभग 4 लाख लोग सतनाम पंथ से जुड़ चुके थे और गुरू घासीदास के अनुयायी थे।
छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीर नारायण सिंह पर भी गुरू घासीदास के सिध्दांतों का गहरा प्रभाव था। गुरू घासीदास के संदेशों और उनकी जीवनी का प्रसार पंथी गीत व नृत्यों के जरिए भी व्यापक रूप से हुआ। यह छत्तीसगढ़ की प्रख्यात लोक विधा भी मानी जाती है।गुरु घासीदास विश्वविद्यालय भारत का एक केन्द्रीय विश्वविद्यालय है। इसकी स्थापना 16 जून 1983 को तत्कालीन मध्यप्रदेश के बिलासपुर में हुई थी।
मप्र के विभाजन के पश्चात बिलासपुर छत्तीसगढ़ में शामिल हो गया। जनवरी 2009 में केंद्र सरकार द्वारा संसद में पेश में केंद्रीय विश्वविद्यालय अधिनियम 2009 के माध्यम से इसे केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया। औपचारिक रूप से गुरु घासीदास विश्वविद्यालय , राज्य विधानसभा के अधिनियम द्वारा स्थापित किया गया था, औपचारिक रूप से 16 जून 1983 को उद्घाटन किया गया।
यह भारतीय विश्वविद्यालयों के संघ और राष्ट्र मंडल विश्वविद्यालय संघ का एक सक्रिय सदस्य है। राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद (छ।।ब्) से बी के रूप में मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय है। सामाजिक और आर्थिक रूप से चुनौती वाले क्षेत्र में स्थित विश्वविद्यालय को उचित नाम, महान संत गुरू घासीदास (जन्म 17 वीं सदी में) के सम्मान स्वरूप दिया गया जिन्होने दलितों, सभी सामाजिक बुराइयों और समाज में प्रचलित अन्याय के खिलाफ एक अनवरत संघर्ष छेड़ा था।
विश्वविद्यालय एक आवासीय सह सम्बद्ध संस्था है, इसका अधिकार क्षेत्र छत्तीसगढ़ राज्य के बिलासपुर राजस्व डिवीजन है। गुरु बाबा घासीदास की जन्मभूमि व तपोभूमि गिरौदपुरी में राज्य शासन द्वारा कुतुब मीनार से भी लगभग पांच मीटर ऊंचे जैतखाम का निर्माण करवाया गया है। यह जैतखाम वायुदाब और भूकम्परोधी है। इसमें आग और आसमानी बिजली से बचाव के लिए उच्च तकनीकी प्रावधान भी किए गए हैं।जैतखाम की बुनियाद का व्यास 60 मीटर है।
इसके आधार तल पर लगभग दो हजार श्रद्धालुओं के बैठने की व्यवस्था है और एक विशाल सभागृह का निर्माण भी किया गया है।पहली मंजिल से आखिरी मंजिल तक सात बालकनियां भी बनाई गई हैं, जिनमें प्रवेश करने वाले लोग आस-पास के सुंदर प्राकृतिक दृश्यों का अवलोकन कर सकेंगे और सबसे ऊंची मंजिल तक बढ़ते हुए कुछ देर के लिए विश्राम भी कर सकेंगे।जैतखाम में नीचे-ऊपर आने-जाने के लिए स्पायरल सीढ़ियों का भी निर्माण किया गया है।
इसके अलावा वृद्धजनों, नि: शक्तजनों, बच्चों और महिलाओं की सुविधा के लिए विशेष रूप से लिफ्ट भी बनाए गए हैं।