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”बहन पर स्नेह बनाए रखने की चाह” मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर कांकेर(छ.ग.)

तीज विशेष….
(मनोज जायसवाल)

अर्थ,भौतिक चकाचौंध ने भी रिश्तों की डोर को कमजोर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। भाई बहन के असीम प्यार को समेटे राखी से लेकर सदियों से मनायी जा रही तीज हरितालिका पर भी स्नेह में अंतर आया है।

तीज वैसे तो एक मुख्य पर्व है,जिसकी परंपराएं निर्वहन की जा रही है। भारतीय संस्कृति में शुभ अवसरों पर खासकर तीज पर साड़ी प्रदान करने की परंपराएं आपसी स्नेह को बनाए रखने का सशक्त माध्यम है। हिंदु धर्म में देखा जाय तो 14 वर्ष के वनवास अवधि में मॉं अहिल्या द्वारा दी गई साड़ी के बाद से ही संभवतया समाज में वह साड़ी महज सिर्फ साड़ी नहीं अपितु शक्ति का प्रतीक भी है, जो आज भी महत्ता बनाये हुए  है।

बहन,बेटी के मान सम्मान का पर्व भी है। सम्मान के रूप में साड़ी एक अहम माध्यम बना हुआ है। आज से ज्यादा नहीं कुछ वर्ष पूर्व साड़ी की महत्ता पहने जाने वाले परिधान के रूप में थी, जो आज भी है। लेकिन मानव जीवन के हर पर्व पर अब इसकी महत्ता न सिर्फ परिधान आवश्यकता की वस्तु अपितु मान सम्मान की मुख्य वस्तु के नाम पर दर्ज है।

आज भी महिलाओं में कोई अवसर पर शिरकत करे तो साड़ी ही सर्वप्रथम बातचीत का माध्यम बनता आ रहा है कि अमूक जगह से,मायके से यह साड़ी दी गयी है।
बहन भाई के बीच रिश्ता सिर्फ साड़ी तक नहीं अपितु स्नेह की अमूल्य भावनाओं और सम्मान का होता है।

लेकिन कई दफा कई परिवारों में भाई बहनों में भी आंतरिक कटूता देखने मिलता है। बहन जिनके एक नहीं अन्य दो या चार भाई हैं, तो प्रति वर्ष तीज पर उन्हें लाने पारी बांध दिया जाता है। इस वर्ष इनका तो आने वाले वर्ष उनका पारी है। एक साड़ी की खातिर किस तरह बहनों के स्नेह प्यार को बांट दिया जाता है, यह आप पूरी गंभीरतापूर्वक और यदि आप भाई हैं तो पूरी बेशर्मी से स्वीकार करें। बहन का स्नेह कोई बांटने की चीज नहीं है।

साड़ी रूपी सम्मान सिर्फ तीज पर नहीं राखी से लेकर अन्य अवसरों पर भी आप निभा सकते हैं। इस तरह पारी बांधकर अपनी कर्तव्यश्री निभाने की घटिया वैचारिक सोच किसी तरह साड़ी देकर पीछा छुडाने की नहीं है,आंतरिक स्नेह को बनाये रखना साड़ी देने से कहीं ज्यादा अच्छा है।

वैसे भी कोई बहन साडी की भूखी नहीं रहती। कई बहनों को चाहिए जो समाज में देखने मिलता है कि किसी के अधिक भाई होने पर आर्थिक रूप से निर्बल भाई को महत्ता कम देती है। कई जगह तो सबल भाई के यहां जाने में ही ज्यादा रूचि दिखाती है। प्रत्येक की बात हालांकि नहीं है।

समाज में कई बार परिवारों में यह होता है कि कोई बहन पिता की संपत्ति पर बंटवारा ले लेती है जो कि संवैधानिक अधिकार दिया गया है लेकिन अमूमन देखने आता है कि उस दिन से व्यावहारिक रिश्ता टूट सा ही जाता है। भाई बहन तो ऐसे दुश्मन जैसे व्यवहार में देखे जाते हैं कि जैसे भाई बहन नहीं है। कुल मिलाकर अर्थ पर रिश्ता टिकने से दूर रहें। भाई बहन का प्यार अर्थ पर नहीं रूहों का वह बंधन हमे हमेशा सलामत रहे जहां बहन भी चाहे कि उन्हें उन पर स्नेह बनाए रखने की चाह होना चाहिए।

किसी भाई की औकात को पैसे से न तौलें, आज भी ऐसे भाई है,  जिनके खुद के बनियान फटे हों लेकिन बहन के सम्मान की खातिर लोक प्रचलित रूप से बहन को ससम्मान साड़ी प्रदान करने कभी पीछे नहीं रहते।

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