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” हमसफ़र” श्रीमती कल्पना शिवदयाल कुर्रे “कल्पना” साहित्यकार बेमेतरा(छ.ग.)

साहित्यकार परिचय
श्रीमती कल्पना कुर्रे  
माता /पिता – श्रीमती गीता घृतलहरे, श्री हेमचंद घृतलहरे 
पति – श्री शिवदयाल कुर्रे
संतत–्‍  पुत्र – 1. अभिनव 2. रिषभ
जन्मतिथि – 19 जून 1988
शिक्षा-
प्रकाशन-

पेशा – गृहणी

पता – ग्राम – कातलबोड़़
पोस्ट – देवरबीजा,
तहसील – साजा,
जिला – बेमेतरा (छ.ग.)
संपर्क- मो. – 8966810173

” हमसफ़र”
हमसफर जिंदगी का एक अहम हिस्सा जिसके होने भर से जीवन परिपूर्ण लगता है हमसफर वह हैं जो हमारी गुणो और अवगुणों दोनों को साथ लेकर हमें सहारा देता है हमारी कमियों को अपने कामयाबी की सीढ़ी बनता है । जिंदगी में जब यह मुकाम आता है जब हमें एक सच्चा हमसफ़र चुनने का मौका मिलता है हम इसी उम्मीद से उसके साथ हो चलते हैं की यही हमारी उम्र भर हिफाजत करेगा और बेपनाह प्यार मोहब्बत से हमारी कमियों को सुधार सकेगा पर जब किसी औरत का यह विश्वास टूटता है।
ऐसा लगता है मानो उसकी पूरी दुनिया ही बदल गई है मां-बाप और भाई बहन के बाद एक यही रिश्ता होता है जो दुनिया से एक औरत को बचाती और संभालती हैं और जब यही रिश्ता गलत साबित हो जाता है तो उसे अंदर से तोड़ देता है हमसफ़र शब्द सुनकर ही जिंदगी मुकम्मल लगने लगती हैं सारी हदों से पार सारी तकलीफों से निजात जिंदगी पर यही शख्स ऐसा मोड़ पैदा कर देता है ‚जो पूरी जिंदगी को तहस नहस करके रख देता है इंसान की सोच ही बदल कर रख देता है कभी-कभी एक ऐसा मोड़ भी आ जाता है ।
जब किसी एक रिश्ते को चुना पड़ जाता है मायका या ससुराल,मजबूरी में ही सही इंसान अपना मन मार कर उस हमसफर को ही चुनता है जो अपनी ही नजरों में खुद को सही इंसान साबित करने पर तुला होता है फिर जिंदगी उसी इंसान को चुनता है इसी उम्मीद में की एक न एक दिन वह इंसान उसकी भी कद्र करेगा और वही इज्जत और सम्मान देगा जो एक हमसफर एक दूसरे को देता है या देना चाहिए हमसफर वह है जो एक दूसरे का ख्याल रखता है सहारा देता है ।
एक दूसरे का गुरुर होता है जो कभी एक दूसरे को नीचा नहीं दिखाते हैं और न हीं कभी बीच रास्ते में उसका साथ नहीं छोड़ता हैं वही तो एक सच्चा हमसफ़र होता है बहू सास ससुर के लिए बेटी बन सकती हैं लेकिन सास ससुर यह कभी मानते ही नहीं पर दामाद अपने सास ससुर के लिए कभी बेटा नहीं बन सकता लेकिन सास ससुर अपने दामाद को बेटे से ज्यादा मानते हैं तो दामादों का फर्ज नहीं है कि 365 दिन में एक दिन बेटा बन सके या बेटी का फर्ज नहीं है कि बहू से बेटी बन सके एक दूसरे के परिवार को अपना कर ही वह एक सच्चा हमसफ़र बन सकता है

 

 

 

 

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