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” जनवादी लेखक संघ” की गरियाबंद‚ धमतरी जिला इकाई द्वारा रचनापाठ शिविर

राजिम(सशक्त हस्ताक्षर)। जनवादी लेखक संघ गरियाबंद एवं धमतरी जिला इकाई द्वारा साहू छात्रावास राजिम में रचनापाठ शिविर का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में प्रसिद्ध कहानीकार परदेशी राम वर्मा ने अध्यक्षता की। मुख्य अतिथि जी.एस. राणा सेवा निवृत्त आईएएस थे, विशेष अतिथि गरियाबंद जिला इकाई के अध्यक्ष काशीपुरी कुंदन, पी.सी.रथ महासचिव, छत्तीसगढ़ जनवादी लेखक संघ, डा. सुखनंदन धूर्वे, उपस्थित रहे। बद्रीप्रसाद पारकर

रचनाकारों के परिचय के साथ कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। इस अवसर पर जलेस के प्रदेश अध्यक्ष परदेशीराम वर्मा नें संत पवन दीवान को याद करते हुए कहा, दीवान लाल किला में कविता सुनाने वाले छत्तीसगढ़ के पहले कवि थे। दुर्भाग्य की बात है उनकी राजिम में आज भी मूर्ति नहीं है। जुगाड़ू लोगों को बड़े-बड़े सम्मान मिलते हैं।

तुलसी, प्रेमचंद, मस्तुरिया को नहीं। साहित्यकार सिर्फ सम्मान के भूखे नहीं होते वे जमीनी स्तर पर जागरूकता का कार्य करते हैं।मुख्य अतिथि जी आर राणा ने संवेदनशील अधिकारी के रूप में गरियाबंद तथा धमतरी जिले के अनुभवों को रखते हुए पहले के कद्दावर साहित्यकारों के बारे में बताया।

 

लेखनी हृदय को परिवर्तित कर दे
वो है‚साहित्यकार
डॉ. सुखनंदन ने जनवादी लेखक संघ का उद्देश्य बताते हुई कहा, यह हिंदी, उर्दू गजलकार, कहानीकार, लेखकों, चित्रकारों का बड़ा समूह है। जनवादी लेखक संघ का उद्देश्य जहां सत्ता असफल है वहां खड़े होना अर्थात अपनी लेखनी के माध्यम से ही गलत के विरुद्ध आवाज उठाना और अव्यवस्था को दूर करने के लिये लोगो में सकारात्मक विचारधारा उत्पन्न करना है। जहां राम का गुणगान हो, भजन कीर्तन हो वहां झूम जाइए।

भक्ति के गीत हृदय में प्रेम, करुणा, क्षमा, दया-भाव भरते हैं। लेकिन आज एक तरफ ऐसी विचारधारा के लोग भी है जो देश समाज को खंडित कर रहे है‌। जो किसी धर्म विशेष को महत्त्व देते हैं। जनवाद का अर्थ है जनता के हितों का समर्थक होना। सिर्फ गाने, छपने, पुरुस्कृत होने के लिए लिखने वाले साहित्यकार नहीं होते। जिनकी लेखनी से लोगों के हृदय में परिवर्तन हो सकें जो अपराधी को भी सुधरने के लिए प्रेरित का सकें वहीं असल साहित्यकार हैं।

मौलिकता से जवाब दें
कार्यक्रम में विशेष अतिथि कवि काशीपुरी कुंदन ने मंचीय कवि सम्मेलनों की विसंगतियों पर अपने विचार रखे। महासचिव पी.सी. रथ ने रचनाओं पर समीक्षात्मक टिप्पणी देते हुए कहा, नए साहित्य सर्जकों को जोड़ना हम सभी का प्रयास होना चाहिए। वातावरण में विषाक्तता उत्पन्न हो रही उससे बचकर अच्छे रचनाकारों को तैयार करना चाहिए। आज का डिजिटलीकरण और ए आई यानी आर्टिफिशियल इंटेजीजेन्ट का युग हावी होता जा रहा है ऐसे में जब अक्षर को ब्रम्ह मानते हैं तो रचनाकारों को बदलते समय में अपनी सृजनात्मक से , मौलिकता से उसका जवाब देना चाहिए ।

रचनाकार हमेशा पीड़ित के पक्ष में खड़े होते हैं। नई कोपलों को अब उगाना है। साहित्यकारों ने समकालीन विषय, परिवारिक पृष्ठ भूमि, ट्रैफिक जाम, परवरिश का असर, लोकतांत्रिक सभ्यता, देशभक्ति, संस्कार, संस्कृतिक परंपरा और विभिन्न विषयों पर गीत कहानी, गजल, लेख और कविताओं का पाठ किया।

ये थे‚ उपस्थित
आयोजन में प्रमुख रूप से मोहनलाल मानिकपुरी, दिनेश चौहान मुन्नालाल देवदास, जितेंद्र सुकुमार, सुश्री सरोज कंसारी, भुवन लाल श्रीवास, राधेश्याम सेन, बद्रीप्रसाद पारकर, अरुणिमा शर्मा, संतोष कुमार शर्मा, हीरालाल साहू, अमोलदास टंडन, वीरेंद्र सरल, तुकाराम कंसारी, प्रह्लाद राघव, संतोष सोनकर मंडल, नूतनलाल साहू, रमेश सोनायटी, कल्याणी कंसारी ने अपनी अभिव्यक्ति दी। चित्रानंद जी ने पवन दीवान जी की रचनाओं का सस्वर पाठ उन्ही के अंदाज में किया और बताया कि किस तरह उनके जीवन मे पवन दीवान जी से जुड़ने के बाद बदलाव आया।

अंत मे रचनापाठ शिविर के कार्यक्रम प्रभारी दिनेश चौहान ने कार्यक्रम की सफलता के लिए अतिथियों और रचनाकारों का आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का संचालन नूतन लाल साहू ने किया।

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