”माता सेवा के प्रतीक जस जोत जवांरा नवरात्रि परब” श्री अशोक पटेल “आशु” साहित्यकार मेघा‚धमतरी(छ.ग.)
(अशोक पटेल “आशु”)
हमर छत्तीसगढ़ म नवरात के विशेष महत्व होथे। ए परब के आय म हमर राज के जम्मों देवी मंदिर म उछाह आ जाथे। हमर छत्तीसगढ म देवी माता मन के अलग–अलग नाम अउ उनकर दिन के अलग–अलग पीठ हावय।जेमन सुग्घर मजा के ऊंचा–ऊंचा पहड़िया म बिराजित हावय।
जईसे की रायगढ़ के डोकरी दाई, चंदरपुर के चंद्रासैनी,रतनपुर के महामाई, धमतरी के बिलाई माता, गंगरेल के अंगार मोती, डोंगरगढ़ के बमलाई, बिलासपुर के कालीमाई, रायपुर के बंजारी माता, महासमुंद के खल्लारी माता, दंतेवाड़ा के दंतेश्वरी दाई, प्रमुख माने जाथे।
ए देवी मन के विशेष पूजा अराधना ल हमर राज म, राज करईया सामंती राजा-महराजा,जमींदार मन करीन।काबर की इही देवी मन ओमन के कुलदेवी के रूप म प्रतिष्ठित रहय। इही मन के एमन पूजा करय।ए परंपरा हर आज भी हमर छत्तीसगढ म जीवंत बने हावय। अउ जब भी ए नवरात के परब हर आथे। हमर राज के जम्मो शक्तिपीठ मन म ज्योति ह जगमगात कलश के स्थापना हो जाथे, जवा बोंवा जाथे।ज्योति कलश अउ जवा ल माता के स्वरूप ही माने जाथे।
एकरे पाए के तो जम्मो भक्त मन पूरा नौ दिन ले माता सेवा,जस जवांरा के गीत ल गा–गा के माता के सेवा ल करथें।नवरात्रि के पहली दिन ही ज्योति जलाए जाथे, इही दिन जवारा ल भी बोंए जाथे। ए बेरा म माता सेवा के जस गीत गाए जाथे।जेमा देवी माता के महिमा म मांदर, झांज,मंजीरा के माध्यम से सुग्घर राग म प्रस्तुत करे जाथे।जेला सुनके दर्शक मन झूम जाथें। अउ झूम–झूम के नाचना शुरू कर देथें। ए नवरात्रि म जवांरा के विशेष महत्व होथे,जेला हमर गाँव अंचल म बहुत ही श्रद्धा, विस्वास के साथ मनाए जाथे। ए जवांरा के पाछु म जन-मानस मन अपन घर–परिवार पुरखा के परंपरा के पालन करथें।
ए परंपरा म देवी माता ल अपन कुल देवी के रूप म जानथें।जे देवी हर उनकर घर–परिवार ल सुख, शांति, समृद्धि, अउ जन–धन के आशीर्वाद देथे। ए जवांरा दु तरह ले मनाए जाथे।पहिली जवांरा ल “सेत जवांरा” कहे जाथे। दूसर ल “मारन जवांरा” कहे जाथे।”सेत जवांरा” ह सात्विक होथे जेमा फूल पान,नारियल,निबू ले पूजा करे जाथे।अउ “मारन जवांरा” ल तामसिक कहे जाथे।जेमा जीव–जंतु के बलि दिए जाथे। एकर बाद आथे “अठवाही” अर्थात अष्टमी तिथि म यज-हवन करे जाथे।जेमा भूल–चूक के लिए अनुनय–विनय करे जाथे। “अठवाही” के दिन विशेष महत्व होथे।
ए दिन नौ झन कुवांरी कन्या मन ल नवदुर्गा जान के पूजन अर्चन के पश्चात भोजन कराए जाथे। तभे तो नवरात्रि के यज्ञ ल पुरा माने जाथे। ए विशेष दिन के कारण घर मंदिर म विशेष उछाह होथे।आस–पास के हित–प्रीत मन ला न्यौता दिए जाथे।सब जवांरा माता के फुलवारी म नरियर चढ़ाथें। अउ उनकर प्रसाद ,आशीर्वाद प्राप्त करके अपन घर जाथें।नवमी के दिन जवांरा विसर्जन होथे। ए विसर्जन के बेरा म अब्बड़ माता सेवा के गीत गाए जाथे।कई झन मनखे मन ल माता भी चढ़ जाथे।तब ए मन सांट लेथें। एमा नरियर या फेर काशी के डोरी होथे जेकर से ए मन ल मारे जाथे।कई झन तो बाना-बरछी घलो ल लेके अपन जीभ हाथ मन ल छेदवाथें।जेमा ओमन के आस्था-विस्वास हर झलकथे।
अउ ए प्रकार से माता सेवा जस गीत गावत जवांरा माता के विसर्जन करथें।नवरात्रि के ये परब हर हमर छत्तीसगढ के सबले बड़े परब के रूप म माने जाथे।जेमा जन-समुदाय के मन म आस्था के भक्ति हर फरी–फरी झलकथे।ए परब हर नारी शक्ति देवी के आराधना आय।जेमा हमन ल चिंतन करे के आवश्यकता हे,नारी के सम्मान उनकर मर्यादा के बात ल भी ध्यान करे के आवश्यकता हे।बिना नारी शक्ति के हमर जीवन अधूरा हे।नारी हमन के शक्ति अउ प्रेरणा आय।नारी सृष्टि के आधार आय। तभे तो कहे गय हावय– “जहाँ नारी के सम्मान होथे वहीँ देवता मन के भी वास होथे।”