(मनोज जायसवाल)
पहले भी कलार समाज समृद्ध रहा है,पर आज कालान्तर से ज्यादा समृद्ध सुखी एवं खुशहाल है। अतीत से ही कलार समाज में एकता की मिसाल रही है,पूर्व समाज सेवकों की भावनाएं आज भी अक्षुण्ण रह पाई है। सच कहें तो कलार ‘कल्चुरी समाज’ का गौरवशाली इतिहास रहा है। भगवान राज राजेश्वर सहस्त्रार्जुन के वंशज कहे जाते हैं। देश ही नहीं विश्व के कई देशों में समाज के लोग निवासरत हैं।
”गौटिया” की उपाधि उनके सम्मान में दी जाती रही है। आज भी छत्तीसगढ़ के गावों में ‘कलार’ सिन्हा ‘गौटिया’ के नाम से लोगों में जाने जाते हैं। यह सही है कि अतीत में समाज के लोग शराब बनाने का काम करते थे,जो आमदानी का आधार स्तंभ हुआ करता था, लेकिन धीरे-धीरे यह पाया कि शराब पतन का कारण बन रहा है, जहां इसके अतिरिक्त और हम कई क्षेत्र ऐसे हैं जो काम करते हुए प्रगति पथ पर प्रशस्त हो सकते हैं ऐसे कई विचारों को लेते हुए अन्य व्यवसाय की ओर उन्मुख होने लगे।
संभवतया यही कारण रहा कि वर्तमान में शराब से दूर हर जगह व्यवसाय,उद्धोग जगत,पत्रकारिता सहित सरकारी सेवाओं सहित हर क्षेत्र में अग्रणी है, व अपनी दमदारी से सेवा करते अपना नाम स्थापित किए हैं। छत्तीसगढ़ में एक समाज विशेष के बाद कलार समाज का ही नाम आता है। वर्तमान में कलार समाज छोटे बड़े अलग अलग रूप से संगठन है। एकीकरण का प्रयास किया जा रहा है,अनुमान लगाया जा सकता है कि जिस दिन समूचे कलार समाज एकीकरण के दायरे में आ जाएंगे तब कलार समाज की जनसंख्या कितनी होगी।
राजनीति में छत्तीसगढ़ जैसे प्रदेश में हालांकि वर्तमान में उतना प्रतिनिधित्व नहीं मिल सका है,जिसका वह हकदार है, लेकिन देर सही आने वाला समय इस समाज का है। भगवान सहस्त्रार्जुन के साथ ही स्थानीय स्तर पर छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के सोरर गांव तथा भानुप्रतापपुर के गढ़बांसला जंगल स्थित बहादुर कलारीन की गौरव गाथाओं से भरी पड़ी है। पर्यटन संस्कृति विभाग का भी दायित्व है कि इन पुरातात्विक संपदाओं को सुरक्षाा दे। कला जगत में बहादुर कलारीन पर फिल्म का निर्माण भी किया गया है,जिसका बेहतर प्रतिसाद देखने मिला है।
पहले सहस्त्रार्जुन भगवान की विश्व में एक ही मंदिर मध्यपद्रेश में हुआ करता था,जो जीवंत प्रमाण है। उत्तरप्रदेश अंतर्गत रायबरेली जिले एवं कई जगहों पर भगवान सहस्रबाहूअर्जुन की ऐतिहासिक प्रतिमाएं आज भी अपनी सुक्ष्म उपस्थिति का एहसास करा रही है। आज स्थानीय स्तर पर छत्तीसगढ़ के गावों में मंदिर का निर्माण हो रहा है।
विगत वर्ष कांकेर अलबेलापारा स्थित सामाजिक भवन में भगवान सहस्त्रार्जुन की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा किया गया है। यह सब कलार समाज के विकास का सुचक ही है। आज भी गांव में सीधे किसी को कलार के नाम से ना लेते हुए आदरपूर्वक छत्तीसगढ़ी में कईसे जी कलार गौटिया, गौटिया सिन्हा जी के नाम से आदर देते हैं जो गर्व का विषय है। छत्तीसगढ़ में जिस तरह कलार समाज के लोगों को कलार गौटिया का नाम दिया जाता है,समाज के काफी संख्या में बसे उत्तरप्रदेश में भी इसी समाज के वाशिंदों जो अपना सरनेम मुख्यतः जायसवाल लिखते हैं,जीवन के हर क्षेत्र में सशक्त रूप से प्रशस्त हैं।
यह समाज में एकता का ही परिचायक है कि छत्तीसगढ़ जैसे प्रांत में भी अन्य प्रदेशों से बेटियां ब्याही जा रही है,तो यहां से भी रोटी बेटी लेन देन का संबंध साम्य हो रहा है।