देश लघुकथा

”कन्या पूजन” श्री पवन नयन जायसवाल वरिष्ठ साहित्यकार अमरावती‚विदर्भ(महाराष्ट्र)

(पवन नयन जायसवाल)
”कन्या पूजन”
सुबह का समय। जानकीदेवी हॉल के कोने में बने मंदिर में पूजा कर रही है। द्वारकानाथ समाचार पत्र पढ़ते हुए नाश्ता कर रहे, बहू अनुपमा रसोई की तैयारी और बेटी आस्था सोफे पर बैठी पढ़ाई कर रही है। श्यामा अपनी स्कूल और प्राध्यापक बेटा सुबह ही कॉलेज गए है। पूजन के बाद जानकीदेवी ने बहू को बुलाकर पूछा “सारी तैयारी हो गयी बहू?”

“कैसी तैयारी माँ जी?” अनुपमा ने कहा।

“अरे कैसी क्या? नवरात्री है, हर साल की तरह कन्या पूजन की तैयारी। अब क्या हर बार तुम्हें बताना पडे़गा?”

“नहीं माँ जी!” अनुपमा ने सकुचाते हुए कहा।

“क्यों, दो दिन बाद ही तो नवमीं तिथि है!”

“हाँ माँ जी! लेकिन….”

“लेकिन क्या?”

 

“हम दोनों ने फैसला किया है कि इस साल से हमारे घर कन्या पूजन नहीं किया जाएगा।” बहू की बात सुनकर, घर में आनेवाले भूकंप की आशंका से पानी पीने के लिए उठाया गिलास द्वारकानाथ के हाथ से गिरते-गिरते बचा, आस्था भी अपनी भाभी को पहलीबार इस तरह बोलते देख, पुस्तक बंदकर उनकी बाते सुनने लगी।

“क्यों नहीं किया जाएगा पूजन? मेरी सासूजी, बहू बनकर आई थी इस घर में तब से किया जा रहा है कन्या पूजन और फिर मेरे होते हुए, मुझसे बिना पूछे तुम दोनों ने कैसे फैसला कर लिया?” जानकीदेवी का चेहरा गुस्से से तमतमाने लगा।

 

“सागर कह रहे थे कि जब माँ को लड़कियाँ पसंद नहीं है तब क्यों करे कन्या पूजन? श्यामा के जन्म के बाद आप लड़का चाहती थी लेकिन गौरी का जन्म लेना आपको पसंद नहीं आया। दस महिने की हो गयी लेकिन आज भी आपके लाड-दुलार से वंचित है वह, इसलिए…।” अनुपमा का जवाब सुनकर घर में सन्नाटा छा गया। कुछ देर बाद पछतावे के स्वर में जानकीदेवी ने कहा- “तो क्या मेरी गलती के कारण इस घर की परंपरा को छोड़ दिया जाएगा और घर में अब धार्मिक कार्य नहीं होगे? आने दे सागर को, तुम सबके सामने कान न खिंचे उसके तो कहना। अपनी पत्नी के साथ चुपचाप फैसले करने लगा है आजकल? अरी आस्था, ला तो बेटा गौरी को दे जा मेरे पास।”

जानकी देवी की बात सुनकर आस्था, अनुपमा और द्वारकानाथ के चेहरे खुशी से चमकने लगे। ताजा हवा के झोंकेे के साथ चंदन अगरबत्ती की खुशबू से कमरा महकने लगा।

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