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तीज पर क्यों खाते हैं! ‘करू भात’ मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर छत्तीसगढ

देश में मुख्यतः छत्तीसगढ़ के हर तीज त्यौहारों में व्रत के साथ खानपान का भी विशिष्ट परंपराएं हैं। यह परंपराएं संभवतया स्वास्थ्य को दृष्टिगत रखते बनायी गयी है।
हरियाली से प्रारंभ तीज त्यौहार की कड़ी में महिलाओं का प्रमुख तीज पर्व भी इनमें से मुख्य है। वैसे तो हरितालिका तीज कल है,लेकिन छत्तीसगढ़ में एक दिन पूर्व ही करेले की सब्जी के साथ यानि करू भात के साथ आज से ही शुरू हो जाएंगी।
क्या है? करू भात
दो दिन पूर्व सस्ते में मिलने वाले करेले की कीमत तीजा के एक दिन पूर्व ही मंहगी हो जाती है। यानि अन्य दिन की अपेक्षा मंहगे दरों पर मिलती है। इसका मुख्य कारण आज का दिन ही है। खासकर छत्तीसगढ में आज के दिन करू भात (चांवल) ग्रहण किया जाता है।
करेले की सब्जी के साथ महिलाएं करू भात खाती है। देखें तो हिन्दी के कड़ुवा को छत्तीसगढ़ी में करू बोला जाता है,और चांवल को भात। इस तरह से करू भात कहा जाता है। एक दिन बाद यानि कल निर्जला उपवास रखती है। रात्रि में जागरण का भी विधान है। चूंकि दूसरे दिन निर्जला उपवास रखती है।
एक दिन पूर्व करू भात खाने के पीछे यही कारण है कि उपवास के दौरान प्यास नहीं लगती। साथ ही इसे खाने से उपवास के दिन अन्न का डकार नहीं आता। करेले में स्वास्थ्यवर्धक गुण के चलते भी इसे प्रधानता दी जाती है।
व्रत के अवसर पर महिलाएं नये वस्त्र प्रमुख रूप से लाल साडी पहन कर सोलह श्रृंगार करते हुए भगवान शिव पार्वती की पूजा करती है।
पावन त्यौहार का न बनायें मजाक
माता पार्वती को सारा सुहाग का सामान चढाने का विधान है। विधि पूर्वक पूजा अर्चना किये जाने पर भगवान शंकर स्वयं उनके सुहाग की रक्षा किये जाने की बात प्रचलित है।आज के समय में कुछ पुरूष अपने मित्रों के साथ जब मिलते हैं तो एक दूसरे से करू भात खाने का मजाक कर रहे होते हैं। कई तो सोशल मीडिया पर भी करू भात और जीजा के दर्द को इंगित करते चित्र पोस्ट कर रहे होते हैं। जबकि करू भात खाने की परंपरा अतीत से चली आ रही है। धार्मिक महत्व है। इसे मजाक की विषय वस्तु ना बनाएं।

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