Stories कहानी

“कर्जदार”  श्रीमती कल्पना शिवदयाल कुर्रे “कल्पना” साहित्यकार बेमेतरा(छ.ग.)

साहित्यकार परिचय
श्रीमती कल्पना कुर्रे  
माता /पिता – श्रीमती गीता घृतलहरे, श्री हेमचंद घृतलहरे 
पति – श्री शिवदयाल कुर्रे
संतत–्‍  पुत्र – 1. अभिनव 2. रिषभ
जन्मतिथि – 19 जून 1988
शिक्षा-
प्रकाशन-

पेशा – गृहणी

पता – ग्राम – कातलबोड़़
पोस्ट – देवरबीजा,
तहसील – साजा,
जिला – बेमेतरा (छ.ग.)
संपर्क- मो. – 8966810173

” कर्जदार ” 

पिता अमीर हो चाहे गरीब पिता आखिर पिता ही होता है जो अपने बच्चों के लिए खुद बिखर कर बच्चों को निखारता सवारता है पर कई जगह वह पिता हार जाता है जहां बेटी नहीं बल्कि बेटियां पाली जाती है। यह कहानी एक ऐसे बाप की है जिसने अपने बेटियों को बोझ तो नहीं समझा मगर उन्हें ही कर्जदारी का नाम दिया।

“हरिश्चंद्र अपने गांव के साथ-साथ पांच गांव के जमींदार थे उनके नाम में ही उनकी पर्सनैलिटी झलकती थी गांव के आधी से अधिक जनसंख्या उनकी खेती में मजदूरी किया करते थे घर में भी बहुत से नौकर चाकर लगा रखे थे हरिश्चंद्र अपने मां- बाप की इकलौती संतान थी बहने भी थे पर दूसरे मां की थी घर परिवार और पुरी जमींदारी हरिश्चंद्र के हाथों में थी हरिश्चंद्र की शादी बचपन में ही कर दी गई थी उसकी पत्नी बहुत ही गुणवती और संस्कारी थी पर हरिश्चंद्र का व्यवहार उसके बिल्कुल विपरीत था दोनों की बाल विवाह हुई थी जो कि पहले जमाने में बड़े बुजुर्गों के मनपसंद से कर दिया जाता था ।

हरिश्चंद्र को अपनी पत्नी की तरह धार्मिक और गुणी पत्नी नहीं चाहिए थी उसे तो चटक मटक चंचल पत्नी ही चाहिए था पर उसे वैसा नहीं मिला इसके चलते हरिश्चंद्र ने अपनी पत्नी उमा का बिल्कुल भी सम्मान नहीं किया उमा काफी अच्छे परिवार की बेटी थी उसके माता-पिता ने हमेशा उसका साथ दिया शायद इसीलिए हरिश्चंद्र चुप था हरिश्चंद्र देखने में बहुत सुंदर था वह किसी राज्य के राजकुमार से कम नहीं था उसके विपरीत उमा बहुत ही साधारण सी लड़की थी।

हालांकि उमा भी बहुत सुंदर थी पर हरिश्चंद्र के ठाठ- बाट के सामने वह दब जाती थी हरिश्चंद्र उमा की विदाई करा के ले तो आया पर उसके साथ अच्छे से नहीं रहता था उसे बचपन से ही दुनिया की चकाचौंध पसंद थी इसके सामने सीधी सादी सुशील स्त्री उसे कहां भाता अपने इसी स्वभाव के चलते वह अपने गांव में ही बदनाम था पर कहते हैं कर्म की मार जब पड़ती है तो अच्छे अच्छो को होश ठिकाना लगा ही जाता है हरिश्चंद्र को 4 बेटियां हुई पर उसे कोई फर्क नहीं पड़ा वह सोचता था कि यह तो अपनी ससुराल चली जाएगी ।

मेरे पास इतना धन है दो चार और हुई वह भी आसानी से पल जाएंगी ।हरिश्चंद्र को बेटा देखते देखते दो और बेटियां हो गई फिर भी वह उदास नहीं था 6 बेटियों के बाद हरिश्चंद्र को एक बेटा हुआ उसकी खुशियां मानो आकाश छू रही थी वह बहुत खुश था उसके पिता तो उसकी दूसरी शादी करवाना चाहते थे उन्होंने पहले से ही कह रखा था कि इस बार लड़का नहीं हुआ तो हरिश्चंद्र की दूसरी शादी करवा देंगे पर किस्मत को उमा पर दया आई और उसका घर बच गया 7 बच्चों को जन्म देकर भी उमा को उस घर में राहत नहीं थी ।

उमा बहुत कमजोर हो गई थी पर हरिश्चंद्र को उसकी जरा भी चिंता नहीं थी ना उमा की और ना बच्चियों की दौलत शोहरत के बीच में बच्चे बड़े हो रहे थे पर पिता के प्यार के लिए तरसती बच्चियों के मन में बुरा छाप छोड़े जा रही थी हरिश्चंद्र और उमा का इकलौता बेटा बहुत बीमार था बचपन से ही लाखों रुपए लग गए थे पर उसका बेटा ठीक नहीं हो रहा था बहुत पूजा पाठ और दुआओं से बेटा मिल तो गया था पर उसका स्वास्थ्य दोनों को परेशान कर रखा था हरिश्चंद्र ने अपने बेटे का बहुत इलाज कराया उसे खेत भी बेचना पड़ा।

पर उसने हिम्मत ना हार कर अपने बेटे का स्वास्थ्य ठीक किया सभी बच्चे बड़े हो गए बेटा भी मिडिल स्कूल में था हरिश्चंद्र ने बेटियों की शादी करना शुरू किया धीरे-धीरे से एक-एक बेटियों की शादी करके भेजता गया शादी तो उसके बड़ी धूमधाम से किया पर अपनी किसी भी बेटी की पसंद से नहीं किया जब भी बेटियों को लड़के वाले देखने आते थे ‚तो सर झुकाए वह सामने तो आ जाया करती थी पर आंख उठाकर होने वाले दुल्हो को कभी नहीं देखा बस चाय देकर चली जाती थी ।

उस घर में रिवाज था कि बड़ों के सामने कोई जबान ना खोले यहां तक कि उन्हें हंसने की आजादी नहीं थी अगर कोई ग़लती से हंस पड़ी तो उनकी खैर ना थी।लड़के उन्हें पसंद करते तो उनके घर परिवार को देख लेते और बिना बेटियों की मर्जी जाने और लड़के को ठीक से बिना देखें ही उन्हें जिंदगी भर के लिए सौंप देते बेटियां अपना फर्ज समझ कर उनके आशीर्वाद के साथ विदा हो जाती फिर भी हरिश्चंद्र को कोई फर्क नहीं पड़ता ।

वह सोचता कि जल्दी-जल्दी सभी को ऐसे ही विदा करके इनसे मुक्त हो जाऊंगा पर कुदरत नहीं बदल सकता जैसे वह वैसा ही मिलता है बेटी के विदाई के साथ-साथ हरिश्चंद्र की संपत्ति भी कम होने लगी एक बेटी भेजता तो फिर कोई संपत्ति में कमी आ जाती फिर भी उसे इस बात का हसास एहसास तक नहीं था वह अभी भी सोचता था इतना संपत्ति पर्याप्त है ।यही सोचकर उसने जीवन भर कुछ कार्य नहीं किया अपने और अपने परिवार के भविष्य के लिए कुछ भी बचा कर या जमा कर के नहीं रखा उसकी सौतेली बहनों ने बंटवारा ले लिया उसका सब कुछ आधा हो गया हरिश्चंद्र को चिंता होने लगी बेटियां भी कुछ दुख तकलीफों के चलते वहीं आकर अपना इलाज करवाती थी क्योंकि उन्हें सहारा देने वाला कोई भी नहीं था।

हरिश्चंद्र ने बेटियों की शादी करते समय ना उसके खानदान का पता किया था और ना किसी के व्यवहार की, बेटा बड़ा हो गया वह पढ़ाई करने दूसरे शहर चला गया हरिश्चंद्र को चिंताओं ने घेर लिया अब उसका स्वास्थ्य खराब होने लगा धीरे-धीरे उसका सब कुछ बिकने लगा उसने घर से निकलना बंद कर दिया बेटा भी वापस आ गया उसकी बाकी पढ़ाई के लिए उसके पास पैसे भी नहीं थे वह कर्ज में डूबता चला गया। एक वक्त ऐसा आया कि उसे अपनी सभी जमीन बेचनी पड़ी वह और ज्यादा बीमार हो गया ।

उमा ने जिंदगी भर उसका साथ दिया पर उसने उसकी कभी कद्र नहीं की उसके सब रिश्तेदार उनसे दूर होते चले गए जब तक संपत्ति थी रिश्ते नाते थे धन के साथ-साथ संबंध भी खत्म हो गए हो गए पर बेटियों ने अपने पिता को नहीं छोड़ा सर झुकाए हमेशा अपने पिता की बात मानी उमा ने दिन-रात अपने पति की सेवा की बेटे और बेटियों ने मिलकर अपने पिता को सहारा दिया वही बेटियां जिसे हरिश्चंद्र ने हमेशा बोझ समझा अब वही बेटियां उसे संभालने के लिए आगे आई अब हरिश्चंद्र बहुत बीमार है।

वह अपनी बेटियों को देखकर सोचता है कि जिन बेटियों को मैंने हमेशा बोझ समझा आज वही मेरे लिए क्या नहीं कर रही है, अपनी पत्नी उमा को इस घर की दासी के अलावा कुछ नहीं माना वही आज मेरे लिए कितना कुछ करती है पूरी जिंदगी उमा ने हरिश्चंद्र की सेवा की पत्नी होने का फर्ज निभाया उमा हरिश्चंद्र की मनपसंद पत्नी नहीं थी फिर भी उमा ने अपने कर्तव्यों से हरिश्चंद्र का मन जीत लिया और बेटियों ने अपने संस्कारों से पिता को जीत लिया।

आज हरिश्चंद्र सोचता है मैं कर्जदार हूं उस जमीन जायदाद के लिए नहीं बल्कि उन बेटियों के लिए जिन्हें कर्ज समझ कर मैंने कहीं भी भेज दिया उन बेटियों को सम्मान भी नहीं दे पाया, मैं कर्जदार हूं उन बेटियों के लिए जिनके भविष्य के साथ मैंने खिलवाड़ किया मैं कर्जदार हूं उन बेटियों की जिन्होंने मेरे लिए खुद कर्जदार बन गई ।

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