”करवा चौथ”
ना कोई चिन्ह
ना कोई अलंकार
धारण किया मैंने
तुम्हारे नाम से।
ना तुम्हारा नाम
मेरे नाम के साथ जोड़ा,
ना कोई व्रत-उपवास
तुम्हारे लिए रखा मैंने।
यह सब जानकार भी
मेरे लिए,
मेरी लंबी उम्र की
कामना के लिए
कैसे रह लेती तुम
दिनभर निर्जल?
मैंने नहीं रखा
ना ही आज तक
किसी पुरुष ने रखा
किसी नारी के लिए,
लेकिन तुम तो
रख सकती हो
खुद अपनी ही
लंबी उम्र के लिए
कोई व्रत उपवास?
अपना
सारा त्याग
अपनी
सारी तपस्या के
फल की प्राप्ति की
मनोकामना तो
साधु-संत, जप-तप,
ध्यान-साधना करनेवाले
ज्ञानी-महात्मा भी
अपने लिए ही करते है
फिर तुम ही क्यों
पति, संतान और परिवार को
न्यौछावर कर देती हो
समर्पित भाव से
अपने सारे धर्म-कर्म,
पुण्य और आशीर्वाद?
सच बताना
क्या तुम्हारे पास
मन नहीं है
या नहीं है
तुम्हारी कोई कामना?
मैं जानता हूँ
तुम्हारे पास
मेरी ऐसी बातों का
कोई जवाब नहीं होता
सच पूछो तो
मेरे लिए तुम्हारा
हमेशा ही
यही जवाब होता है
तुम्हारा मौन,
तुम्हारी मुस्कान।