कविता काव्य

”कहॉं गई कागज की कश्ती”श्रीमती पद्माक्षी उपाध्याय साहित्यकार जगदलपुर (छत्तीसगढ)

साहित्यकार-परिचय

श्रीमती पद्माक्षी उपाध्याय

माता– पिता –  श्रीमती अर्चना उपाध्याय‚श्री भैरवदत्त उपाध्याय

पति – श्री सतीश अवस्थी।  संतानअक्षत(पुत्र) आद्या(पुत्री)

जन्म – 22 जून 1969 डौंडी‚छत्तीसगढ

शिक्षा – एम.ए.(हिंदी साहित्य‚समाज शास्त्र) कत्थक–विद् बीएड

 प्रकाशन– 1. आकाशवाणी जगदलपुर से विगत 30 वर्षों से चिंतन,वार्ता का नियमित प्रसारण।
2. विभीन्न समाचार पत्र पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन।

पुरस्कार / सम्मान –

संप्रति – गृहणी |

सम्पर्क –  प्रतापदेव वार्ड‚जगदलपुर

 

”कहॉं गई कागज की कश्ती”

ठहरे हुए पानी में जो
तैरा करती थी, वो
कहॉं गई कागज की कश्ती?
उम्र–जाति के बंधन तोड़

मिल कर सब बनाते थे
रंगे, उल्टे, लिखे कागजों से
भूख-प्यास भूल जाते थे।
इंतजार रहता था, कब

रूत सुहानी आएगी
भीगेंगे,करेंगे छप-छप
धमा-चौकडी मच जाएगी।
अब न कागज की कश्ती

न भीगने,खेलने का जुनून
मोबाइल,टेब से फुर्सत नहीं
बंद कमरे,एसी में मिलता सुकून।
न डर था एलर्जी,इम्युनिटी का

न किसी और संक्रमण का
एक रहती प्रतीक्षा आम, अमरूद की
एक पागलपन दोस्त के आगमन का।
ना वो नादानी, अल्हडपन रहा

ना रही वो मासूमियत
उम्र से पहले बडे हो गए सब
यही आज की खासियत।

error: Content is protected !!