डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति : व्यक्तित्व एवं कृतित्व ” एक समीक्षा “
समीक्षक : डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
प्रशासनिक अधिकारी
‘डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति : व्यक्तित्व एवं कृतित्व’ एक समीक्षात्मक ग्रंथ है। इसके लेखक श्री सुरजीत है। यह कृति अप्रैल 2022 में प्रथम संस्करण के रूप में साहित्यपीडिया पब्लिशिंग नोएडा, इण्डिया-201301 से प्रकाशित हुई थी। इस पुस्तक का आई.एस.बी.एन. 978-93-91470-71-5 है। कुल 111 पृष्ठ की इस कृति का मूल्य है ₹ 210 है। यह कॉपीराइट के अन्तर्गत है। सर्वाधिकार लेखकाधीन है। यह पुस्तक जनक-जननी, जन्मभूमि एवं श्री गुरु-चरणों में समर्पित की गई है। इस पुस्तक की भूमिका छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति रायपुर के प्रांताध्यक्ष डॉ. जे.आर. सोनी द्वारा लिखी गई है।
इस पुस्तक में डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के अन्तर्गत उनके उस समय तक के जीवन-वृत्त और उनकी प्रकाशित 25 पुस्तकों की परिचयात्मक समीक्षा शामिल है। इन पुस्तकों में- 9 हिन्दी काव्य- संग्रह, 2 छत्तीसगढ़ी कविता- संग्रह, 2 हास्य व्यंग्य- संग्रह, 1 बाल कविता- संग्रह, 1 ग़ज़ल- संग्रह, 3 लघुकथा-संग्रह, 5 कहानी-संग्रह और 2 उपन्यास शामिल हैं।
इस कृति की भूमिका लेखक डॉ. जे.आर. सोनी ने इस पुस्तक के लेखक श्री सुरजीत को हार्दिक बधाई देते हुए लिखते हैं- “श्री सुरजीत द्वारा रचित कृति- डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति : व्यक्तित्व एवं कृतित्व एक परिचयात्मक दस्तावेज है। इसमें लेखक ने किशन जी के व्यक्तित्व के अनेक अस्पर्शित पहलुओं पर भी प्रकाश डाला है, जो भावी पीढ़ी का मार्गदर्शन करेगा। उनके द्वारा रचित 25 पुस्तकों की सारगर्भित समीक्षा शानदार एवं प्रशंसनीय हैं। भाषा – सरल एवं सरस है। शैली – मुख्यतः बोधगम्य है। शब्द चयन एवं वाक्य विन्यास लाजवाब हैं।”
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति अपने आशीर्वचन में लिखते हैं- “मेरे व्यक्तित्व एवं कृतित्व के बारे में सुरजीत जी ने काफी कुछ लिखा है। वैसे भी वह मेरी सारी रचनाओं के प्रतिलिपिकार एवं संकलनकर्ता हैं। इस वजह से मेरी समस्त रचनाएँ उनकी नजरों से गुजरकर ही प्रकाशन तक का सफर तय करती है। ….लेखन मानव का श्रेष्ठ गुण है, जो लिखने की कला जान लेता है, वो दुनिया में अमर हो जाता है। इस कृति के माध्यम से पाठकों को मेरे बारे में प्रमाणिक और उपयोगी जानकारियाँ प्राप्त होंगी, इसमें कोई दो मत नहीं है।”
कृति के रचनाकार श्री सुरजीत ने डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति के व्यक्तित्व के अन्तर्गत ‘परिस्थितियों की अनुभूति’ में लिखा है- “शिक्षा, अक्ल और समझ अलग-अलग चीजें हैं। शिक्षित व्यक्ति अक्लमन्द भी हों, यह जरूरी नहीं। ऐसे ही बड़े-बड़े अक्लमन्द लोग समझदार भी हों, यह आवश्यक नहीं। वैसे तो तीनों ही जरूरी है, लेकिन समझदारी परमावश्यक है।” वास्तव में सुरजीत की ये पंक्तियाँ न केवल जीवन का सार है, वरन अनुभव का निचोड़ भी है। इसमें बहुत गहरा भाव है, जो सबके लिए ग्रहणीय है।
श्री सुरजीत, कृति में एक स्थान पर लिखते हैं- “जो उनके (डॉ.किशन के) व्यक्तित्व की सर्वाधिक अनुकरणीय चीज है, वह यह है कि गलत का साथ नहीं देते और सच्चाई का साथ नहीं छोड़ते। वे अपने कार्यों की समीक्षा खुद ही करते हैं। गलती होने पर स्वीकार कर उनका परिमार्जन भी करते हैं। निष्कर्ष तक वे बहुत आसानी से पहुँच जाते हैं।”
कृति के लेखक श्री सुरजीत ने यह भी लिखा है कि- “किशन जी कहते हैं कि साँसों का हिसाब-किताब लिखा जा चुका है। शायद यही वो प्रेरणा-बिन्दु है, जिसके चलते किशन जी की कलम कभी थकती नहीं, कभी रुकती नहीं। ऐसा लगता है कि मानो सारे दर्द का मरहम साहित्य साधना ही हो। फिर तो वक्त भी कम पड़ने लगते हैं।”
प्रस्तुत कृति में डॉ. किशन को प्राप्त सम्मानों एवं अलंकरणों का भी उल्लेख है। साथ ही उनके बारे में अनेक साहित्यकारों, विद्वानों, पुस्तकों के भूमिका-लेखकों तथा कुछ विख्यात हस्तियों ने पृथक से सन्देश के रूप में जो विचार व्यक्त किए हैं, उनका भी समावेश है। इनमें विख्यात साहित्यकार डॉ. जे. आर. सोनी, डॉ. सुधीर शर्मा, डॉ. आर. पी. टण्डन, डॉ. सी.वी. रमन यूनिवर्सिटी बिलासपुर के पूर्व कुलपति श्री शैलेष पाण्डेय, एडवोकेट श्री विजय मिश्रा, वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. (श्रीमती) शिरोमणि माथुर, डॉ. श्यामा कुर्रे, श्री संतोष श्रीवास्तव ‘सम’, डॉ. मीरा आर्ची चौहान, श्री जुगेश बंजारे ‘धीरज’ इत्यादि प्रमुख हैं।
कृति लेखक सुरजीत ने डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति के प्रशासनिक अधिकारी के रूप में उनकी भूमिकाओं को भी रेखांकित किया है। इसके अलावा छत्तीसगढ़ कलमकार मंच के संस्थापक तथा प्रथम प्रदेशाध्यक्ष के रूप में उनकी उल्लेखनीय सेवाओं और भूमिकाओं पर भी प्रकाश डाला है। सुरजीत लिखते हैं – “डॉ. किशन के जीवन- दर्शन का मुझ पर काफी प्रभाव पड़ा। मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा। वस्तुतः वे दर्द के दरिया में जितने डूबते गए हैं, उतने ही सशक्त और ओजस्वी होते गए हैं।”
‘डॉ. किशन के कृतित्व- एक झलक’ उपशीर्षक के अन्तर्गत श्री सुरजीत ने लिखा है – “वे बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न साहित्यकार हैं। वे पद्य और गद्य की विभिन्न विधाओं में लेखनी चलाते हैं। कविता, गीत, गजल, बाल कविता, हास्य-व्यंग्य, लघुकथा, कहानी तथा उपन्यास इत्यादि विधाओं में सृजन करते हैं। वह हिन्दी के साथ ही साथ मातृबोली छत्तीसगढ़ी में भी लिखते हैं। उनका साहित्यिक कैनवास बहुत व्यापक है, जिसमें विविध रंग समाहित हैं। ‘साहित्य वाचस्पति सम्मान’ जैसे दुर्लभतम सम्मान उनके कृतित्व और बहुरंगी लेखन के साक्षी हैं। वास्तव में कृतित्व ही व्यक्तित्व का आईना है।”
श्री सुरजीत ने डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति की उस समय तक प्रकाशित 25 पुस्तकों का सिलसिलेवार उल्लेख कर परिचयात्मक विवरण प्रस्तुत किया है। पद्य और गद्य की विभिन्न विधाओं की इन पुस्तकों का विवरण इस प्रकार प्रस्तुत किए हैं-
A. काव्य-संग्रह : 1. तस्वीर बदल रही है, 2. माटी का दीया, 3. आधी दुनिया, 4. सतरंगी बस्तर, 5. उड़ रहा गाँव, 6. पत्थर के फूल, 7. बेहतर दुनिया के लिए, 8. बराबरी का सफर, 9. परछाई के रंग. 10. तइहा ल बइहा लेगे (छत्तीसगढ़ी), 11. नवा रद्दा (छत्तीसगढ़ी)
B. हास्य व्यंग्य-संग्रह : 1. मुस्कान का दर्द, 2 चुल्लू भर पानी ।
C. बाल कविता-संग्रह : 1. पंखों वाला घोड़ा ।
D. गजल-संग्रह : 1. आईना ।
E. लघु कथा-संग्रह : 1. मन की आँखें, 2. मृगतृष्णा, 3. सबक ।
F. कहानी-संग्रह : 1. चुटकी भर सिन्दूर, 2. मेला, 3. जमीं के सितारे, 4. सौदा, 5. पूनम का चाँद ।
G. उपन्यास : 1. अदा, 2. दुर्दशा ।
H. साझा-संग्रह : 1. कुर्सी ( हिन्दी ), 2. सोनहा बिहान (छत्तीसगढ़ी)
इसके अलावा प्रकाशनाधीन कृतियों का भी उल्लेख है, जो अग्रलिखित है- 1.रंग-बिरंगी पेंसिलें (बाल कविता-संग्रह), 2. दस्तक (लघुकथा-संग्रह), 3. मुट्ठी भर तिनके (काव्य-संग्रह), 4. ग्राम्य-पथ (कहानी-संग्रह), कृति लेखक के अनुसार इसके अलावा भी दर्जन भर और पुस्तकें कतार में हैं।
समीक्षा लेखक के स्वयं के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से सम्बन्धित पुस्तक की समीक्षा होने से मैंने अपनी ओर से कुछ नहीं जोड़ा है। पुस्तक में जो है, जैसा है, मैंने बस वैसा ही लेख किया है। अन्त में, इतना जरूर कहूंगा कि श्री सुरजीत एक आज्ञाकारी, परिश्रमी, लगनशील, ईमानदार और साहसी व्यक्तित्व के धनी कलमकार हैं। वे हालात को बेहतर समझते हैं। श्री सुरजीत को मेरा ढेर सारा स्नेह और आशीष हैं। वे जीवन में सपरिवार खुशहाल, सफल और सुखी रहें। उन्हें सत्गुरु की कृपा प्राप्त हों।
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति