”कलमकार कितना मीठा कितना कडुवा” श्री मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर‚कांकेर (छ.ग.)
श्री मनोज जायसवाल
पिता-श्री अभय राम जायसवाल
माता-स्व.श्रीमती वीणा जायसवाल
जीवन संगिनी– श्रीमती धनेश्वरी जायसवाल
सन्तति- पुत्र 1. डीकेश जायसवाल 2. फलक जायसवाल
(साहित्य कला संगीत जगत को समर्पित)

”कलमकार कितना मीठा कितना कडुवा’
आज की रोजमर्रा की व्यस्ततम जीवनचर्या बावजूद इसके आधुनिक जीवन में एक दूसरे से निरंतर तमाम सोशल मीडिया पटल से जुड़ाव जहां कभी कभी हमारा आत्मीय संबंध भी बन जाता है। मुख्यतः अपने साहित्य एवं कला जगत फील्ड में जिस रचनाकार की रचनाएं नियमित तौर पर प्रकाशित होती रहती है,उनके विचारों के पोस्ट प्रसारित होते हैं,जिस पर उस फील्ड के रचनाकार को कभी लगता है कि वे भौतिक रूप से भी मुखातिब हो सके।
ऐसा विचार भी कि मनोज जायसवाल जैसा कड़वा कड़वा लिखने वाला आदमी कितना कड़वा होगा। कड़वा ही होगा कि कुछ मीठा भी होगा। तो कला जगत की वह सिंगर जिनके सुर हमें उनके द्वारा प्रेषित यू-ट्यूब चौनल में जितना मीठा स्वर दिया जाता है,भौतिक मुलाकात पर उनकी आभा भी उतना ही प्रकाशमान जरूर होगी जिस कदर उनकी आवाज की गुंज से भौंरे भी मंच पर मंडराने लगते हैं।
कितना सहज सरल होगी वह गायिका तो खरी-खरी लिखने वाला लेखक भौतिक रूप से भी वैसा ही सिद्वांतवादी होगा। समान विधा फील्ड की प्रतिभा मुख्य रूप से लेखन में भौतिक रूप से भी बातचीत होती है तो उस वक्त चाहे वाट्सअप जैसे सोशल पटल क्यो न हो किसी आलेख या काव्य में मात्रात्मक त्रुटियो या भाव पक्ष आदि पर बातों बातों में ही विचारों का आदान प्रदान और सीख भी।
वैसे भी समान विधा लेखन या कला पक्ष के दो लोग जब भी मिले तो बातों का अंतहीन सिलसिला भी चलता है। न उस विधा तक अपितु वह स्नेह भी जैसे उनसे आज नहीं जब से जानते हैं। जरूरी भी है,कि समान विधा के हम एक दूसरे को जाने पहचाने। रचनाओं पर अपनी टिप्पणी भी चाहे वह निगेटिव हो या पाजीटिव। इन टिप्पणियों में आनंद आता है,बहसबाजी हो जाए तो आनंद और भी बढ़ जाता है। क्योंकि बहस उन विषयों पर किया जा रहा है,जिस पर हम बने हैं,ना कि व्यक्तिगत। समझना अपने आप को है।
निश्चित ही आपके कार्य क्षेत्र प्रोफेशन की तरह आपकी निजी जीवनचर्या में व्यवहार भी हो। अपनों के बीच जलेबी जैसा उलझ कर नहीं अपितु रसगुल्ले की तरह गुदगुदे मिठास के साथ। क्योंकि कई कला संगीत जगत के संचालक तो कई कलमकार ऐसे होते हैं कि उनका स्वयं का अहम भाव के चलते खुद अपना वजन कम कर रहे होते हैं,क्योंकि चकाचौंध मात्र तल्ख दिनों की है,धरातल में तो आपको उतरना ही पडेगा। फिर सांस्कृतिक मंच से जहां से आपकी प्रसिद्वि है,जरा पब्लिक की भीड में जाइये..आपको कितने लोग पहचानते हैं, आंकलन कीजियेगा।