”विकास के साथ कृषि रकबा भी घट रहा”श्री मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर कांकेर(छ.ग.)

श्री मनोज जायसवाल
पिता-श्री अभय राम जायसवाल
माता-स्व.श्रीमती वीणा जायसवाल
जीवन संगिनी– श्रीमती धनेश्वरी जायसवाल
सन्तति- पुत्र 1. डीकेश जायसवाल 2. फलक जायसवाल
(साहित्य कला संगीत जगत को समर्पित)

”विकास के साथ कृषि रकबा भी घट रहा”
बारिश की बेरूखी,असमय बारिश से सबसे ज्यादा यदि प्रभावित होते हैं, तो वो किसान है। इस वर्ष भी मानसुन के आगमन से ही इसकी बेरूखी साफ दिखायी दे रही है,जहां मौसम विभाग के अनुसार मानें तो इस महीने के प्रथम सप्ताह में आना तय था, लेकिन पखवाडा बीत रहा मानसून के जोश जज्बे का पता नहीं है। जिसके चलते कुछ नीचे जा चुका पारा पुनः बढता जा रहा है। लोग गर्मी, उमस से परेशान है। इस बार का उच्च तापमान बताने की जरूरत नहीं है। नव छत्तीसगढ राज्य बनने के बाद फ्लैट संस्कृति ने कांक्रीट का जंगल खडा कर दिया, जो बचा रकबा है वहां कालोनाईजरों की नजर है। हर नगर में कालोनी विकसित हो रही है। समय–समय पर छत्तीसगढ के समाचार पत्रों की आंचलिक सुर्खियां ”रेरा” के बगैर अनुमति अवैध कालोनी विकसित किए जाने की खबरों से रंगी रहती है‚जो बेहद चिंतनीय है।
समुचित वाटर संग्रहण (वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम) नहीं होने के चलते भुमिगत जल स्त्रोत लगातार नीचे जाने के चलते अब सामान्य गहराईयों में पानी की उपलब्धता खत्म सी हो रही है। जिसका सीधा असर किसानों के साथ पेयजल के लिए भी मारामारी हो रही है। छत्तीसगढ में कई क्षेत्र सुखाग्रस्त(ड्राई एरिया) है,जिसके चलते वहां के वाशिंदे किसान तो फसल नहीं ले पाते, दूसरी ओर स्वच्छ पेयजल के लिए भी जद्दोजहद करनी पडती है।
विकास के नाम पर फलेट संस्कृति के साथ तमाम हाईटेंशन एवं बडी बिजली लाईनें जिसके खंभे भी खेती के रकबे को कम किये जाने के जिम्मेदार है। औद्योगिक क्षेत्रों में कई खाली पडी जमीने औद्योगिक इकाईयों के प्रदुषण के चलते बंजर हो गए हैं।
किसान के नाम पर दर्द बयां करने वाले अगर बिना खेत में उतरे किसानों पर बयानबाजीयत कर रहे हैं तो कभी रहनुमा बन कर उन्हें वोट बैंक मान रहे हैं। दिल के अंदर खाद् चीजों की रेट न बढे कह कर उपरी तौर पर समर्थन करने वाले ये वही हैं जो मल्टीप्लेक्स सिनेमा के इंटरवल से बाहर आते ही महज पापकार्न आलू के चिप्स, टोमेटो कैचप से सराबोर होकर इतने मंहगे होने के बावजूद कोई बात नहीं करते
खाद्य चीजें महज अन्य उत्पाद जैसे बना कर बेची जाने वाली चीजें है, शायद ये मान लेते होंगे। अब बाजार में जब डुप्लीकेट खाद्य चीजें आती है तब पता चलता है कि किसान का कौन सा है? कितना भी आधुनिकता के लबादे ओढ लें किसान उत्पादित खादय जीवन का आधार है।
धरना प्रदर्शन, चुनाव के वक्त किसान सम्माननीय हो जाते हैं और बाकी समय? घट रही कृषि रकबा सबके लिए चिंतनीय है।कृषि रकबा घटने का कारण ही मंहगाई है।