साहित्यकार-परिचय
– डॉ. राखी कोर्राम(गुड़िया )
माता– पिता – श्रीमती छबीला मरकाम श्री बलीराम मरकाम
जन्म – 11 अगस्त 1979 रामपुर (जुनवानी)
शिक्षा – एम. ए.समाजशास्त्र । पोस्ट बी.एस.सी.नर्सिंग।-डॉक्टर ऑफ़ लिटरेचर (डी.लिट.)
प्रकाशन–काव्य संग्रह -गुड़िया, गुड़िया-2,गुड़िया -3 (4) – रंग प्रेम का
साझा काव्य संग्रह –
1 – नारी काव्य संहिता, 2 – रेखांकित काव्य संग्रह, 3 – कलम चलने दो भाग -09,10, 4- काव्य की पगडंडियों से गुजरते हुए |5 – सर्जना भाग -1 6 – सृजन से शिखर तक 7 – पंखुड़ियाँ 8 – इक्कीसवीं सदी के कलम कार 9 – कलम से पंन्नो तक 10 – काव्य संगम – नवसंवत्सर,
फागुन, रंग बरसे,राम,माँ समाचार पत्रपत्रिकाओं में प्रकाशन। कला साहित्य को समर्पित पोर्टल सशक्त हस्ताक्षर में नियमित प्रकाशन।
पुरस्कार / सम्मान – 1.वीरांगना अवन्तिबाई लोधी समता अवार्ड वर्ष (2020) 2.क्रांतिज्योति सावित्री बाई फुले राष्ट्रीय समता
अवार्ड वर्ष (2020) 3 -संत माता कर्मा महिलासशक्तिकरण अवार्ड वर्ष (2021) 4 – कर्तव्य दक्ष नारी शक्ति राष्ट्रीय अवार्डवर्ष (2021)
5 – संत मीराबाई अंतराष्ट्रीय अवार्ड वर्ष (2021) 6 -आदर्श नारी शक्ति अवार्ड वर्ष (2022) 7 – छत्तीसगढ़ रत्न सम्मान (2022)8 – शब्द शिल्पी सम्मान (2022) 9 – शब्द साधना सम्मान (2022) 10 – आदिवासी लोकनृत्य महोत्सव एवं प्रतिभा सम्मान 11 – कलमकार साहित्य
अलंकरण सम्मान (2023) 12 – समता साहित्य रत्न सम्मान (2023 ) 13 – कबीर सम्मान(नई दिल्ली)(2023 )
14 – मधुशाला काव्य गौरव सम्मान 15 – कलमकार साहित्य साधना सम्मान(2023) 16 – काव्य श्री हिंदुस्तान सम्मान (2023)
17 – अंतराष्ट्रीय साहित्यिक मित्र मंडल जबलपुर द्वारा सर्वश्रेष्ठ, श्रेष्ठ, एवं उत्तम सृजन सम्मान प्रति सप्ताह
विशेष सम्मान – कार्यालय कलेक्टर जिला उत्तर बस्तर कांकेर द्वारा महिला सशक्तिकरण प्रशस्ति पत्र वर्ष (2015) – कार्यालय कलेक्टर जिला उत्तर बस्तर कांकेर द्वारा कोरोना योद्धा प्रशस्ति पत्र वर्ष( 2021)
संप्रति – सामु.स्वा.केंद्र नरहरपुर जिला – कांकेर (छ. ग.) में स्टॉफ नर्स के पद पर कार्यरत |
सम्पर्क – अस्पताल परिसर सामु. स्वा. केंद्र नरहरपुर, जिला–कांकेर (छ. ग.) मोबाइल नम्बर – 9329339007
ईमेल –rakhikorram11@gmail. com
“कुछ अनकही बात “
फूल चमन में खिलता ,
खुशबू से महकाता है ।
पर कभी नहीं वो कहता है ,
काँटों के बीच वो रहता है ।।
झरना निर्झर बहता है ,
मन सब का हर लेता है ।
पर कभी नहीं वो कहता है ,
चट्टानों पर वो गिरता है ।।
नदी निरंतर बहती है ,
धरती का सींचन करती है ।
पर कभी नहीं वो कहती है ,
बाँधों में बाँध दी जाती है ।।
वृक्ष धरती पर खड़े रहते हैं ,
फूल फल और छाँव देते हैं ।
पर कभी नहीं वो कहते हैं ,
मनुष्य दृारा काट दिये जाते है।।
लहरा के पवन जब चलती है ,
तब सांस सभी की चलती है ।
पर कभी नहीं वो कहती है ,
नित जहर इस में घोली जाती है।।
पंछी चहचहाते हैं ,
भोर का आभास कराते हैं ,
नींद से हमें जगाते हैं ।
पर कभी नहीं वो कहते हैं ,
पिंजरे में कैद कर लिये जाते हैं ।।
प्रकृति की हर चीज़ ,
काम हमारे आती है ।
पर कभी नहीं वो कहती है ,
कितना दर्द वह सहती है ।।
मुफ्त में सब हम पाते हैं ,
मानवता पर इतराते हैं ।
पर कभी नहीं हम कहते हैं ,
प्रकृति की गोद में हम रहते हैं ।।