(मनोज जायसवाल)
पांच साल के लिए सौंपी गयी सामाजिक सत्ता की उल्टी गिनती तो उस दिन से शुरू हो जाती है, जिस दिन से कामकाज ही शुरू नहीं किए वरन सत्ता ग्रहण किए थे।लोगों को तवज्जो देने की बात का वादा किए थे, वह खुद के व्यवहार में आए बदलाव से पता चल जाता है। जिन लोगों ने सामाजिक सत्ता परिवर्तन के नाम अपना बहुमूल्य मत दिया, परिवर्तन खुद के व्यवहार में कर दिया?
उत्तरोत्तर समाज के विकास में योगदान पर बड़ी हसरत पाले लोगों को आधुनिक समाज की ओर नहीं अपितु वही अतीत में एक ढर्रे की ओर ले चलने के नाम काम पर जोर देने लगे। लोगों को अपना विचार कर्तव्य बखुबी याद है। वे तो अपने साथियों से कहते हैं,उठिये,दौडिये आवाजें दीजिए जो बड़ी ताकत है, पर ताकत विचारों में लगाइये। इस जागरूकता काल में जो सब समझते हैं।
ऐसी क्या मजबूरी थी,या किस बात का घमंड था कि तुम्हारे स्मृति पटल से वह सब खत्म से हो गये जो अंतिम व्यक्ति तक सरोकार की बात कहा करते थे? सत्ता जाने का इतना भी डर कैसे कि उन लोगों को तवज्जो देने लगे जो आपके हां में हां मिला सके? जबकि कटू सत्य सनद हो कि इस जागरूकता के काल में आने वाले समय में अब परिवर्तन हर पांच वर्षो में होना तय है। तब इस बात की गारंटी इस बात से बढ जाती है कि सत्ताधीश जब अपनों को उपेक्षित करने लगे,उनके सामने लोगों के बीच सम्मान में अंतर आने लगे! आपकी वाहवाही कभी नहीं करेंगे।
उल्टी गिनती के तौर वो तो आने वाले पांच साल के इंतजार में विचार कर चुके हैं, कि उन्हें क्या करना है। सत्ता सामाजिक हो या सियासी कैसे उन लोग जो सत्ता जाने के बाद कभी उठ भी नहीं सके हैं, बताने की जरूरत नहीं है। अपनी मनमर्जी चलाना तभी सार्थक हो सकता है,जब खुद में बौद्विक क्षमता हो। वरन अपने कोई किसी आका की बदौलत भी किसी विषय में निर्णय के शीर्ष पर नहीं पहूंचा जा सकता।
प्रत्येक समाज परिवर्तन पर जोर देता आ रहा है। अच्छा कार्य रहे तो सत्ता के संगठन में परिवर्तन की बात भी नहीं लेकिन आने वाले पांच वर्षों में आपका नेतृत्व किस तरह का हो यह स्वयं में विचारणीय है। आपका नेतृत्व में दम नहीं है तो आने वाले वर्षों में आपके विरोधी की लाईन में खडे हो जाएंगे जिसे अपना समझते थे। तब उस वक्त समझाईश,सलाह,प्रलोभन नहीं दिया जा सकता। उनका जवाब मुंह पर सामने होगा।