”स्त्री! अपितु पुरूष लेखकों पर भी कुदृष्टि” मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर कांकेर छत्तीसगढ
(मनोज जायसवाल)
आज भी किसी साहित्यकार लेखिका नारी के लिए आम ग्रामीण परिवेश की रोजमर्रा समाज में कानाफुंसी कम नहीं है। इस परिवेश में किसी विधुषी स्त्री कैसे लोगों को समझा सकती है,जहां बात करें तो वे समझे भी ना! कई महिलाएं तो अभी-अभी सोशल पटल में मुखर हो रही है। सशक्त हस्ताक्षर के माध्यम हम खडे हुए और आज उनकी रचनाएं आम रूप से प्रत्येक सोशल ग्रुपों के माध्यम हाथों तक है,बावजूद इसके अल्प ज्ञानी कानाफुसी से परहेज नहीं कर रहे हां यह कम जरूर हुई है।
लेकिन तमाम इन बातों के तारतम्य किसी भी लेखिका स्त्री को अपनी मुखरता से पीछे कभी नहीं हटना है। नारीवादी विचारों से युक्त नारीवादी मजहबों की आलोचना के लिए अपनी पहचान बनाने वाली पूर्वी पाकिस्तान में जन्म अब बांग्लादेशी मूल की लेखिका तसलीमा नसरीन को कितने विरोध का सामना करना पड़ा,लेकिन वह अपनी कलम के लिए समर्पित रही। इतना ही नहीं जितना उन्हें उपेक्षित किया गया,आंदोलन किया गया उतना ही वे और मुखर होकर कलम चलाती रही।
कुछ ना सही पर ज्वलंत सम सामयिक विषयों पर अपनी कलम से मुखर रहे। याद रहे कलम के विरोधी तत्व ना किसी स्त्री लेखिका के प्रति अपितु पुरूष लेखकों के लिए भी उनकी कुदृष्टि होती है,लेकिन इनसे दूर चलना है। लेखन की राह में कई रोड़े हैं, यह रोड़े पहले पहल पूर्ण शांति से अपने ही उपहास के बतौर निभाते हैं। साहित्यिक समाज में आपका सम्मान कईयों को बर्दाश्त नहीं होता। खासकर उन्हें जो स्वयं कलम चलाने असमर्थ हैं,जिनके पास वो प्रतिभा ही नही,जिसे दबाने की खातिर कभी किसी पर अनर्गल तो कभी चारित्रिक आरोप लगाने से भी बाज नहीं आते। क्योंकि उन्हें पता है,चारित्रिक आरोप ऐसा शस्त्र है,जिसके चलते किसी का भी जज्बा प्रभावित हो सकता है।