”अतीत के लोकप्रिय विज्ञापन”श्री मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर कांकेर(छ.ग.)

श्री मनोज जायसवाल
पिता-श्री अभय राम जायसवाल
माता-स्व.श्रीमती वीणा जायसवाल
जीवन संगिनी– श्रीमती धनेश्वरी जायसवाल
सन्तति- पुत्र 1. डीकेश जायसवाल 2. फलक जायसवाल
(साहित्य कला संगीत जगत को समर्पित)

”अतीत के लोकप्रिय विज्ञापन”
टेलीविजन के इतिहास में कला जगत में विज्ञापनों की दुनियां भी अद्भुत रही है। कई विज्ञापनों ने मानव जीवन में मधुर मिठास घोली है, जिसकी मीठी यादें आज भी कायम है। 1987 के दशक के जिस दौर में रामायण जैसे धारावाहिक का प्रसारण हो रहा था,तब के विज्ञापनों की तस्वीर धुंधली जरूर हो गई लेकिन नये दौर की विज्ञापनों में कभी नहीं भूली है। जो उत्पाद बंद हो गए उनके विज्ञापन भी कई लोगों को याद है।
अमूल दूध का पारंपरिक विज्ञापन जो अरसे बाद दूरदर्शन पर दिखायी दिया कोई विज्ञापन देखे ना देखे पर इसके विज्ञापन आते ही तत्काल चैनल नहीं बदले जाते। इसी दौर में गर्मी के दिनों में अपने उत्पाद सहित टीवी विज्ञापनों में धूम मचाने वाली रसना का विज्ञापन भला लोग कैसे भूल सकते हैं? जहां छोटी बच्ची आई लव यु रसना को देख हमारे नन्हें मुन्ने भी बोलते थे आई लव यु रसना!
लोग इस विज्ञापन की बाल कलाकार तरूणी सचदेव को आई लव यु रसना कहते विभोर हो जाते और उत्पाद भी अमूमन घरों में ठंडक के नाम इस्तेमाल किये जाते थे। इसके साथ काफी बाइट,गोल्ड विनर,शक्ति मसाला के साथ उन्होंने कई विज्ञापनों में काम किया। तो क्या आप पांचवीं पास से तेज हैं में भी कंटेस्टेंट बन कर दिखायी दी।
यह तो कईयों पेय का दौर है जहां पहले जैसे वे पेय भूला सी जैसे दिए। उसी दौर में गंगा साबुन का विज्ञापन भी प्रसिद्व हुआ जहां इस साबुन को गंगा जल की मात्रा होने का प्रसारित किया गया और लोग गंगा साबुन से खुब नहाया करते थे, हो भी क्यों ना ! इस दौर में बुलंदी पर रहे लोगों के लोकप्रिय अभिनेता गोविंदा इस विज्ञापन में आते थे। यह साबुन भी आने वाले दौर में बंद सा हो गया।
फिर निरमा वाशिंग पाउडर का विज्ञापन भी लोगों के बीच खुब लुभाया और हर वक्त टीवी पर आने वाले इस विज्ञापन के चलते घरों घरों में इस डिटर्जेंट का प्रचलन हुआ। बाद में कईयों डिटर्जेंट पाउडर आये पर इनकी बात जुदा थी। कारण आम प्रचलन में था। हालांकि धीरे धीरे अन्य उत्पादों ने भी बाजार में अपना नाम स्थापित किया।
निरमा की प्रसिद्वता इस बात से लगाया जा सकता है कि दुकानों में कोई भी डिटर्जेंट मांगने की जगह निरमा मंगा जाता। आज के दौर में ही कुछ कम हुआ है पर निरमा का उपयोग आज भी जारी है। ठीक इसी प्रकार टूथ पेस्ट क्षेत्र में कोलगेट का साम्राज्य है। गांवों में आज भी सुदूर अंचलों में कोलगेट के नाम पर जो दूकानदार किसी भी ब्राण्ड का टूथपेस्ट दे दे उसे कोलगेट मान लिया जाता है।
मानसिकता ऐसी हो गई है कि वो टूथपेस्ट घिस रहा है वो कोलगेट है। कोलगेट ब्राण्ड के बारे में उन्हें नहीं पता। लेकिन आज के दौर में अब वह दिन नहीं रहा जिन्हें कोलगेट पसंद है वह ब्राण्ड के नाम से कोलगेट लेता है और वही करता है। विज्ञापनों की काफी लंबी श्रृंखला है। आज के दौर में भी डिटर्जेंट क्षेत्र में घड़ी लोकप्रिय हो गया है। कारण यह भी है कि सदी के महानायक इसमें एड करते हैं। लोगों को यह बोल काफी लुभाता है जिसमें कहा जाता है सर! मेरे पास भी घड़ी है।