आलेख

”लीड खबर का आशय स्टैंडर्ड नहीं” मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर कांकेर (छ.ग.)

आज हिन्दी दिवस पर विशेष….

(मनोज जायसवाल)

-तमाम हिन्दी के मात्राओं की त्रुटियों के बावजूद लीड खबर के नाम सोशल पटल पर वायरल कर झूठी वाहवाही का प्रयास किया जा रहा है।

दौर अब वह नहीं रहा जहां सुबह आंचलिक अखबारी पेज का इंतजार किया जाए। चाय पीते पहले पहल जरूर अखबार की मुख्य बैनर पेज पर नजर डाली जाती है। अमूमन खबरों की हेड लाइन लोगों के समझने के लिए काफी है। सोशल मीडिया का दौर इतना त्वरित है कि खबरों के लिए इंतजार की बात नहीं रही। घटना दुर्घटना हादसे हो, या कोई प्रशासनिक खबर।

कार्य कर रहे पोर्टल तत्काल इन खबरों को सोशल माध्यम तक आज हर हाथों में पहुंचा रहे हैं। लोगों को जब सारी चीजें पहले पहल मिल रही हैं, तो तो पेज भरते लीड कहलाने वाली उन खबरों को पाठक वो गंभीरता से नहीं पढ़ रहा है, क्योंकि हेडलाईन से ही समझ चुका है कि उसके पास त्वरित आने वाले पोर्टल वाट्सअप से खबर मिली चुकी है।

एक समय वह था जब बारिश के दिनों में नदी नालों में तूफान की वजह तीन दिन पुरानी अखबार भी पढ़ी जाती थी। आंचलिक लीड खबरों के नाम पर भी छोटी जगहों पर जितनी वाहवाही बटोरने का प्रयास हो रहा होता है, कई दफा उन्हें खुद पता नहीं होता कि हिंदी की कितनी व्याकरणीय त्रुटि के बीच लेखन किया जा रहा है। किस प्रकार वह बिना विचार किए मन में जो बात आ रही है, उसे खबर बनाते आंचलिक लीड खबरों के नाम पेज भरा जा रहा है। जहां इस बात से खबर बनाने वाला गदगद है, कि वह आज लीड खबर लगाया है।

यह भी देखने आ रहा है कि सोशल पटल के चलते अब पाठन में लोगों की रूचि नहीं रही। अखबर नये के नये किसी कोने में पड़ा होता है। पाठक दूर की बात कई एजेंट या आंचलिक पत्रकार स्वयं अखबार आने पर अपनी लिखी खबरों को तरजीह देते पढ़ लेता है। जिस दिन उन्होंने खबर नहीं लिखा उस दिन युं ही झांक लेता है। अंदाजा लगाया जा सकता है कि पाठन के प्रति जब कई सुदूर के आंचलिक पत्रकार की ये उदासीनता हो तो लेखन में भला कैसे स्टैंडर्ड लाया जा सकता है।

जबकि उनके द्वारा लिखी गयी खबरों में आम बोलचाल और वह खबर भी बताया जाता है शब्दों से भरा होता है। कई बार उनकी कई शब्दावली देखें तो उन्हें कौन बताए कि उन शब्दों को साहित्य जगत के जानकार बिल्कुल पसंद नहीं करते। ऐसा गलती हो क्यों ना। लिखने वाले की एजुकेशन भी तो महत्व रखता है,जिसे कि आम लोगों के बीच जानी जाती है।

निश्चित रूप से एजुकेशन अल्पता के चलते कहीं किसी की शैली, तो किसी के शब्दों की चोरी हो रही होती है। हो क्यों ना! उनके मस्तिष्क पटल में विचार के तंतु जो कार्य नहीं किया करते या खुद जोर डालने से रहे। यही कारण है कि अल्प एजुकेशन से लेखन किये जाने के चलते लेखन में वह जीवंतता नहीं आ सकती। विचार चाहिए। स्टोरी तो छोड़िए मात्राओं के ज्ञान नहंी होने के चलते लेखन में अत्यावश्यक मात्राओं का प्रयोग नहीं किया जा रहा है। बावजूद इसके उनके अखबार के आंचलिक सुर्खियों में लगने पर सोशल पटल पर चेंप कर पूरे गर्व के साथ वायरल किया जा रहा है।

लीड बड़ी पेज भरने वाली खबरों का आशय यह नहीं है कि लेखन में स्टैंडर्ड है। बल्कि संक्षेप में उन सारी बातों पर लेखन जरूर स्टैंडर्ड है। जिसे आज साहित्यकार के साथ आम बुद्धिजीवी पाठक जानता है। गौर करने वाली बात कि मुख्य पेज के सिंगल कॉलम बड़े चाव से पढ़ी जाती है, बड़े विस्तार वाली खबर भले न पढ़े जाये।

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