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”लेखन-कला” श्री अनिल कुमार मौर्य ‘अनल’ शिक्षक साहित्यकार कांकेर छ.ग.

साहित्यकार परिचय-अनिल कुमार मौर्य ‘अनल’

जन्म- 22  मई 1980 जन्म स्थान,संजय नगर,कांकेर छत्तीसगढ

माता/पिता – फूलचंद माैर्य श्रीमती राेवती मौर्यपत्नी-श्रीमती दीप्ति मौर्य, पुत्र-संस्कार,पुत्री-जिज्ञासा मौर्य ।

शिक्षा- एमए(हिंदी) इतिहास एवं सन! 2019 में विश्व विद्यालय जगदलपुर द्वारा मास्टर आफ आर्ट की संस्कृत विषय में उपाधि, डी.एड. ।

सम्मान- साहित्य रत्न समता अवार्ड 2017, साहित्य श्री समता अवार्ड 2018 मौलाना आजाद शिक्षा रत्न अवार्ड 2018, प्राइड आफ छत्तीसगढ अवार्ड 2018, प्राइड आफ छत्तीसगढ अवार्ड, सहभागिता सम्मान।

प्रकाशन-कोलाहल काव्य संग्रह।

सम्प्रति- कांकेर जिले में शिक्षक के रूप में कार्यरत

सम्पर्क  – कांकेर माे. 8349439969

’’लेखन-कला’’हमारे दैनिक जीवन में लेखक और उसके लेखन का बड़ा महत्व है। लेखन एक कला है, जिसके माध्यम सेे हम अपनी बातों को दूसरे लोगों तक प्रसार करते हैं। सच लेखक न होता तो समाज को दशा और दिशा देता कौन ? सच व झूठ का मर्म बताता कौन ? बिना ज्ञान के विकास संभव न होता। अगर साहित्य समाज का दर्पण न होता तो आदि मानव, आदि ही रहता। मैं कहता हूं अगर लेखक न होता तो पाषाण काल से लेकर आधुनिक काल तक आज जितने भी चमत्कार हुए हैं, वह लेखक की कलम से ही संभंव हो सका है।

मैं पूछता हूं डॉक्टर, वकील, शिक्षक, राजनीतिज्ञ एवं इंजीनियर किसने बनाया? उत्तर मिलेगा लेखक की कलम ने। जैसे टकसाल में नोट व सिक्कों की छपाई की जाती है वैसे ही एक लेखक या साहित्यकार अपनी कल्पना की स्याही से व्यक्ति, समाज व राष्ट्र की उन्नति का मंत्र अपने आलेखों में छुपाकर रखता है जिसे हम अंगीकार करके अपने जीवन में आ रही कठिनाईयों को दूर करते हैं।

सच! बाबा साहब जैसे विद्वान न होते तो संविधान रचता कौन ? इसके अभाव में सभी रहते मौन! आज मानव जीवन में जितने भी बदलाव आए हैं वह सब शिक्षा के कारण ही संभंव हो सका है, वैसे भी शिक्षा को मानव का ‘‘तीसरा नेत्र‘‘ कहा गया है। एक लेखक और साहित्यकार होने के नाते मैं यही कहना उचित होगा कि जीवनपथ पर आगे बढ़कर यदि कुछ करना है तो अच्छी किताबें पढ़ो क्योंकि इससे अच्छा मित्र दूसरा कोई हो ही नहीं सकता कहते हैं।

ऐसा क्या कारण है कि अलग अलग बच्चों को परीक्षा में एक ही पर्चा दिया जाता है लेकिन उनके प्राप्तांकों में अंतर क्यों आता है ? इसके पीछे एक ही कारण हो सकता है लेखन शैली और शब्द भंडार का हमें जितना अधिक ज्ञान होगा हम उतना ही अधिक अपनी बातों को दूसरों तक सरलता से पहुंचा सकते हैं।

सार यह कि जिस प्रकार से बहुमंजिला इमारत बनाने वाला मजदूर यदि कंधे डाल दे तो निर्माण कार्य संभव नहीं हो सकेगा ठीक वैसे ही यदि एक लेखक या साहित्यकार अपनी लेखनी को विराम दे दे तो सम्पूर्ण विश्व का विकास संभव नहीं हो सकेगा।

अपनी इस लेख के माध्यम से मैं यही संदेश देना चाहता हूं कि यदि अपने व्यक्तित्व का विकास कर जीवनपथ पर आगे बढ़ना है तो किताबें पढ़ो क्योंकि एक विचारक कार्ल मार्क्स की इतनी सी बात कि दुनिया के मजदूरों एक हो जाओ! तुम्हारे पास खोने के लिए जंजीरों के अतिरिक्त और कु़छ भी नहीं! से रुसी क्रांति हो गई थी इसलिए अच्छी अच्छी किताबें पढ़ो और पहुंचो।

 

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