आलेख राज्य साहित्य कला जगत की खबरें

”राम के आदर्शाे के साथ बस्तर में लोकजीवन”मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर,कांकेर (छ.ग.)

-सम्पूर्ण बस्तर में आगंतुकों का पैर धुला कर किया जाता है‚स्वागत।
(मनोज जायसवाल)
कौशिल्या का मायका, राम का ननिहाल होने के चलते छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरोहर और यहां की संस्कृति के साथ ही लोक जीवन में छाप भी पूरी तरह ‘राममय’  है। बेहद सीधे साधे सहज, सरल जीवन बिताने वाला छत्तीसगढ़िया मानस हमेशा अपने अतिथियों का विशेष ख्याल रखता आया है। हमारे ही देश के अन्य प्रदेशों के आने वाले अतिथियों की तो बात ही दीगर बस्तर आने वाले विदेशी सैलानी यहां की संस्कृतियों के कायल होते हैं। सैलानियों को प्रणाम के साथ स्वागत किया जाता है‚जो विश्व पटल पर एक बडा संदेश है।

प्रणाम स्वागत की परंपराएं विशिष्टता लिए होती है।  ‘त्रेता युग’ की संस्कृति कहें या परंपरा कि बस्तर में आने वाले आगंतुकों का प्रत्येक घरों में उनके चरणों को लकड़ी के पीढे पर रखकर स्वच्छ जल से धुला कर प्रेम से आदर के साथ ‘आसन’ में बिठाया जाता है। बस्तर क्षेत्र में घरों में आने वाले मेहमानों को पैर धुलाकर स्वागत किये जाने की गौरवशाली पुरानी परंपरा आज भी वैज्ञानिक आधार के आधार पर भी निभायी जा रही है। बाहर से आगंतुकों के पैरों में होने वाले ‘कीटाणु’ को दूर किये जाने सहित मानसिक तनाव भी पैर की धुलाई से दूर हो जाता है।

जिस आत्मीयता के साथ स्वागत किया जाता है‚उसी आत्मीयता के साथ वे अपने यहां बनायी गयी खाद्य वस्तुओं को भी ग्रहण करने आमंत्रित करते हैं। यहां के मेले मंडई पर स्थानीय रूप से आने वाले संबंधियों को कुछ ना कुछ पैसे राशि दिया जाता है‚जो भी इनकी पुरातन चली आ रही  संस्कृति परंपरा का ही हिस्सा है। खानपान में मदृय पान उन्हें ही दिया जाता है‚जो सेवन करते हैं।  इसके साथ ही बस्तर में कई वृहत आयोजनों में आगंतुक वीआईपी तथा विदेशी सैलानियों को भी आगमन पर बस्तर में डोम आदिवासी संस्कृति के प्रतीक गौर सींग मुकूट पहना कर भी स्वागत किया जाता रहा है।

 

ऐसी असीम स्नेह की परंपरा शायद ही अन्य जगहों पर मिले। खानपान की विशिष्टताओं में पेड के पत्तों से बनाये गये दोनिया पत्तल से खाद्ध चीजें दी जाती है। ऐसी बात नहीं कि यहां मांसाहारियों की बहुतायत अपितु शुद्ध शाकाहारी वाले जनमानस भी दिखायी देंगे। पूरी ईमानदारी से प्रकृति की देन को स्वीकारते पूजा अर्चना के साथ दिन की शुरूआत करने वाला जनमानस राम के आदर्शों को मानता आया है। रामायण के किष्किंधा कांड में जिस तरह सुग्रीव से राम की मित्रता कराने हनुमान महाराज आगे आते हैं।

सुग्रीव दृारा यह  कहे जाने पर कि मैं कैसे इतने बड़े राजा से मित्रता कर सकता हूं? तब बताते हैं कि आपके कौन से कम है? राम पत्नी की खातिर वन-वन फिर रहे हैं आप भी तो अपने भाई के डर से गुफा में छुपे हैं। आप भी किष्किंधा के राजा है वे भी अवधपूर के राजा है। यह सब गुण मिल समान होने की बात हनुमान महाराज द्वारा बताये इस कारण बताये जाने पर कि बड़े छोटे की बात नहीं है।

 

छत्तीसगढ़ में भी बड़े-छोटे की भावना को दूर रख कर तब से महाप्रसाद,गंगाजल जैसे संबंध निभाये जाते रहे हैं। बड़े छोटे की भावना तो यहां के लोकजीवन समाज में प्रेम के अन्य बंधनों पर भी नहीं है, लेकिन आधुनिकता हावी होने के चलते आज वर्तमान मार्डन स्टेप पर आ गए है।

हालांकि अपनी परंपराओं को सहेजने समाज लगा हुआ है, पर ऊपर उठे लोग पालन से रहे समाज का अंतिम सिरे का व्यक्ति वो नियम निभा रहा होता है। छत्तीसगढ़ के लोक जीवन में जितनी भी आधुनिकता घुसे पर आज भी राम के आदर्शों को मानते अस्तित्व को स्वीकारते निभाये जाते हैं रस्मोपरंपराएं।

LEAVE A RESPONSE

error: Content is protected !!