आलेख राज्य

”स्वर्ण मचोली की महारानी बहादुर कलारिन” श्री सुन्दर लाल डंडसेना शिक्षक साहित्यकार बाराडोली,सरायपाली छत्तीसगढ़

साहित्यकार परिचय-

श्री सुन्दर लाल डडसेना ‘मधुर’

जन्म- 13 मई 1989

माता-पिता श्री जलधर डंडसेना

शिक्षा-एम.ए.(हिन्दी,अर्थशास्त्र,इतिहास)पीजीडीसीए,डीएड

प्रकाशन- साहित्य सेवा(विवरण)- पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ,कविताएं व लेख प्रकाशित,
साझा संकलन- मातृभूमि,पहल एक नई सोच,कलाम,आर्यावर्त,नया गगन,साहित्य सरोवर लाडो,जननायक,सरस्वती, कविता के संगम पर,चमकते कलमकार भाग2,वृक्ष लगाओ वृक्ष बचाओ,शब्द सारथी,चलते चलते,साहित्य लहर,रंग दे बसंती में कवितायें संकलित।

सम्मान- छ.ग.एक्सप्रेस चाम्पा द्वारा- साहित्य गौरव सम्मान,
डी.एड.प्रशिक्षण केंद्र पिथौरा द्वारा प्रकाशित पत्रिका पहल-एक नई सोचष् में उपसंपादक का दायित्व व सम्मान अखिल भारतीय काव्य संसद द्वारा दो बार प्रथम पुरस्कार व एक बार द्वितीय पुरस्कार प्राप्त। साहित्य समृद्धि मंच बिहार से साहित्य सृजक सम्मान 2 बार। साहित्य मंच गाडरवारा(म.प्र.) द्वारा अटल साहित्य सम्मान।.काव्य गौरव सम्मान 2 बार। .हिन्दी साहित्य सम्मान। मीन साहित्य सम्मान।.जनचेतना राष्ट्र मणि सम्मान। काव्य संसद सम्मान। प्रहल्लाद अनुराग सम्मान।

सम्प्रति- सहा. शिक्षक(एल.बी)

सम्पर्क-  बाराडोली(बालसमुंद),पो.-पाटसेन्द्री
तह.-सरायपाली,जिला-महासमुंद(छ. ग.) पिन- 493558
मोब.- 8103535652
9644035652
ईमेल- sldmadhur13@gmail.com

 

 

 

”स्वर्ण मचोली की महारानी बहादुर कलारिन”

सृष्टि निर्माण से लेकर मानव सभ्यता के विकास तक नारी का विशेष योगदान है।नारी ने जीवन के महत्वपूर्ण चरणों-माँ,बेटी,बहन और पत्नी के रूप में पूर्ण स्नेह,निष्ठा,समर्पण,दया,प्रेम, त्याग,विश्वास,ममता,वात्सल्य देकर आत्मोत्सर्ग के द्वारा अपनी अमिट छाप छोड़ते हुए स्वर्णिम इतिहास रचा है।

मातृत्व प्रेम की अनेक घटनाएँ हैं,जिसमें माँ अपनी संतान के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग कर देती हैं।इतिहास में अनेक अविस्मरणीय घटनाएँ देखने को मिलती हैं जिसमें माताऍं अपने संतान के लिए तो अपने प्राणों का उत्सर्ग की हैं,किंतु यह दुर्लभ है की कोई माँ औरों के संतान (पुत्रियों के संरक्षण) के लिए अपने पुत्र का बलिदान कर दे।ऐसी ही एक माता स्वर्ण मचोली की महारानी माता बहादुर कलारिन का नाम एक देवी की तरह लिया जाता है।

वे कलार समाज के साथ पुरे छत्तीसगढ़ की आराध्य देवी के रूप में आध्यात्मिक इतिहास का हिस्सा हैं,साथ ही छत्तीसगढ़ के इतिहास में उनका नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित है।छत्तीसगढ़ की लोकगाथाओं में माता के किस्से सुनने को मिलते हैं।कलार समाज में जन्मी सौंदर्य,गुण,वीरता,साहस,धैर्य पर नारी सम्मान भाव से भरपूर पुत्र वात्सल्य में अपना आत्मोत्सर्ग कर देने वाली माता बहादुर कलारिन आज पूरे भारत में एक देवी के रूप में पूजी जाती हैं।

छत्तीसगढ़ राज्य के बालोद जिले से 26 किलोमीटर दूर चिरचारी व सोरर गाँव की सरहद में उनका स्मारक व मन्दिर स्थित है,जो कि छत्तीसगढ़ राज्य द्वारा संरक्षित है।छत्तीसगढ़ में कलचुरी शासन ख़त्म हो रही थी,कई गाँव के लोग अपने रहने खाने के व्यवस्था के साथ अपनी जगह बदलने में मजबूर थे।उन्हीं में से एक थे गौटिया सुबेलाल कलार जिनकी मदिरा की दुकान थी,हालाँकि राजाओं के शेषकाल अब भी बचे हुए थे,सुबेलाल गौटिया की बनाई शराब दूर-दूर से लोग लेने व पीने आते थे,सुबेलाल के छोटे भाई की बेटी कलावती ही उनके पास मात्र परिवार के नाम पर थी और कलावती के पास चाचा सुबेलाल को छोड़ कोई नहीं था।सुबेलाल के साथ मदिरा दुकान में कलावती सहयोग करती यौवन में कदम रखा तो कलावती पर कई मनचलों की नजरें रहती।कलावती इनसे दो हाथ करने में नहीं घबराती थी,जवाब देना अपनी आबरू के समक्ष अड़े रहना तो जैसे बखूबी आता था।

 

सुबेलाल ने कलावती को खेल-खिलौनों से दूर रखते हुए लाठी,कटार और तलवार चलाना सिखाने लगा।कलावती को सुबेलाल सौन्दर्य के आलावा वह शौर्य कला में भी पारंगत करना चाहता था।आँखें मृगनयनी के सामान थे,क्रोध में चेहरा चंडी के समान हो जाता था।एक झलक पाने के लिए कई राजा और राजकुमार वेश बदलकर शराब खरीदने सुबेलाल की दुकान में आते थे,लेकिन कलावती के स्वाभिमानी व्यवहार से वापस लौट जाते थे।सुबेलाल की मृत्यु के बाद मदिरा की दुकान चलाती कलावती को बहुत सारे राजाओं के प्रेम प्रस्ताव आये व कुछ समय बाद वे एक राजा के अथाह प्रेम में पड़ गयी,जिनसे उन्हें एक पुत्र छछान छाडूदेव भी हुआ।राजा ने कलावती से छल किये व कलावती को अकेला छोड़ गया।जीवन के इस स्थिति में अब कलावती अपने पुत्र के साथ जीवन निर्वाह करने लगी,पर कलावती के बेटे को छल की बात खटकने लगी,वह इसी खटास के साथ बड़ा होने लगा,खटास कब परिवर्तित हुई किसी को खबर तक नहीं हुई।

 

कलावती के बेटे ने राजाओं के बेटियों से शादी करके उन्हें छोड़ देता,उसने कई राजाओ की बेटियों के साथ शादी करके बदले के भाव में उन्हें छोड़ देता।कलावती को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने अपने बेटे को मारने की योजना बनाई,क्योंकि उनके बेटे की इस आदत से कई और महिलाओं के सम्मान को ठेस पहुँचती।सभी तरफ अपने ही बेटे को पानी ना देने का आदेश दिया,पानी ना मिलने पर अधमरे हालत में जब वह कुएँ के पास पहुँचा तो कलावती जी ने उसे धकेलकर खुद भी कुएँ में कूद गयी।आज कलावती को माता बहादुर कलारिन के नाम से जानते है,कलावती वो स्त्री थी जिन्होंने पूरी जिंदगी संघर्ष में निकाली, सौंदर्य,शौर्य कला में पारंगत होने के बाद भी उनके जीवन में प्रेम ने छल के साथ प्रवेश किया,जिसका सबसे ज्यादा असर उनके बेटे पर हुआ,अंत में उन्होंने अपनी जिंदगी अपने बेटे के साथ खत्म कर ली।

माची के नीचे सोना दबा होने की किवदंती :
आसपास के लोगों का कहना है कि ” जिस जगह माची बनी हुई है,उसके नीचे करोड़ों रुपए का सोना दबा हुआ है,लेकिन इस दावे में कितनी सच्चाई है ये कोई नहीं जानता।स्थानीय लोग ये चाहते हैं कि जिन बातों को वो पीढ़ियों से सुनते आ रहे हैं उसमें कितनी सच्चाई है इस बात का पता सरकार को लगाना चाहिए।सरकार और पुरातत्वविदों को शोध करके इन बातों की सच्चाई को सामने लाना चाहिए,ताकि माता बहादुर कलारिन की वास्तविकता से जुड़े रहस्य लोगों के सामने आ सकें।”

नारी उत्थान के लिए करती थी काम
माॅं बहादुर कलारिन को लेकर कई सारी बातें प्रचलित हैं।ग्राम सोरर के लोगों से मुलाकात के अनुसार – माता बहादुर कलारिन के बारे में बहुत सी बातें आती हैं।पर हम ये सोचते हैं कि इसमें आज शोध करने की जरूरत है,क्योंकि वो नारी उत्थान के विषय में काम करने वाली एक महिला थी।जिन्होंने नारियों के सम्मान में अपने पुत्र को भी नहीं छोड़ा और उसे मौत के घाट उतार दिया।हालांकि छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा माता बहादुर कलारिन के नाम से राज्य अलंकरण की घोषणा भी की गई है।

 

लेकिन जिस जगह माची है,उसका संरक्षण कहीं ना कहीं उपेक्षित है।यहां पर जो मेला लगता है वह भी कुछ वर्षों से बंद है।आसपास के लोगों ने बताया कि मंदिर के देखरेख के लिए एक कर्मचारी की नियुक्ति की गई है।जो कभी-कभी यहां आता है और देखरेख करता है।लेकिन जब हम इसके पास जाते हैं तो यह प्रतीत होता है कि यह अपने भीतर सैकड़ों राज समेटे हुए हैं।आसपास के लोगों का कहना है कि जिस जगह माची बनी हुई है। उसके नीचे करोड़ों रुपयों का सोना दबा हुआ है,जब इसकी खुदाई होगी तभी मूल बात का पता लग पाएगा। साथ ही आसपास के लोगों का कहना है कि इसको लेकर सरकार को और शोध करना चाहिए। पुरातत्वविदियों को इस पर शोध करना चाहिए।तब माता बहादुर कलारिन की वास्तविकता और कई सारे राज सामने आएंगे।
माता बहादुर कलारिन को कलार समाज ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश में माँ का दर्जा दिया है।माता बहादुर कलारिन को मेरी निम्न पंक्तियों के साथ श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूं —

माता बहादुर कलारिन की शौर्य गाथा को करूँ प्रणाम।
भगवान सहस्त्राबाहु अर्जुन की वीरता का करूँ सम्मान।
सोरर गाँव की पावन धरा व महिष्मतिपुरी को प्रणाम।
सरहरगढ़ की माता बहादुर कलारिन पर करें अभिमान।

माता बहादुर कलारिन को ना कभी भूलेगा पूरा भारत वर्ष।
दुख पीड़ा को जीतकर जिसने सुख से दूसरों को किया हर्ष।
नारियों के सम्मान व उत्थान में पुत्र का किया आत्मोत्सर्ग।
माता की करुणा दया ममता को,स्वीकार करेगा दुनिया सहर्ष।

सुंदरता की प्रतिरूप विश्वमोहिनी बचपन की (कला) कलावती।
वात्सल्य मयी,रौद्रस्वरूप,कलार समाज को जिसने दिया गति।
स्वर्ण मचोली की महारानी,शालीन व मृदुव्यवहार की प्रतिरूप।
दीन दुखियों लाचार बेबस की सहयोगी,माता सा उनका स्वरूप।

छछान छाडु देव की माता,ममतामयी बहादुर कलारिन की गाथा।
छछान छाडुदेव,माता कलारिन व सहस्त्रार्जुन के आगे नमाऊँ माथा।

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