”महात्मा बुद्व”श्री तिलक तनौदी ‘स्वच्छंद’ वरिष्ठ साहित्यकार तनौद‚जांजगीर चाम्पा(छ.ग.)

तिलक तनौदी ‘स्वच्छंद’
पिता-श्री छत्तराम महिपाल
माता- श्रीमती छतबाई महिपाल
जीवन संगिनी– श्रीमती अंजू महिपाल
सन्तति-
2. प्रकाशित पत्रिका:-राष्ट्रीय हिंदी साहित्य अंचल मंच के मासिक पत्रिका (बिहार),किरण दूत(रायगढ़), कोलफील्ड मिरर (कलकत्ता), काव्य कलश वार्षिक पत्रिका(छत्तीसगढ़), विवेक एक्सप्रेस (मुंबई),मालवा हेराल्ड (उज्जैन,मध्यप्रदेश), साइंस वाणी पत्रिका(रायपुर)।
पिन :- 496001

बुद्ध पूर्णिमा विशेष…..
पाना मात्र ही उपलब्धि नहीं होता, खोना भी बड़ी उपलब्धि है।
सम्बोधि के बाद लोगों ने तथागत बुद्ध से पूछा – आपको इतने लंबे समय के ध्यान से क्या मिला?
बुद्ध बोले- कुछ भी नहीं।
लोगों ने कहा- आप बताना नहीं चाहते इस लिए छुपा रहे हो
बुद्ध ने कहा- नहीं, सच में मुझे कुछ नहीं मिला।
मैंने इस ध्यान साधना से बहुत कुछ खोया
घृणा खोया, लोभ खोया, मोह खोया,इर्ष्या खोया, द्वेष खोया,क्रोध खोया, अहंकार खोया, तृष्णा खोया, लालसा खोया, बुरे विचार खोए,काम-वासना खोया,नकारात्मक भाव खोया। ठीक उसी प्रकार जैसे गंदगी को खोने के बाद वस्त्र स्वच्छ सुंदर हो जाता है वैसे ही मैं आज मैं हो गया हूँ।
लोगों को बुद्ध की बुद्धिमता का स्तर ज्ञात हो गया। ज्ञान और स्वयं का अनुभव है व्यक्ति को उत्कृष्ट बनाता है यह बात बुद्ध से ही सीखने को मिलता है।
आप किसी की बातों में मत आओ, विवेक लगा तर्क की कसौटी में कसो और स्वयं व मानव हित हो तभी मानो
बुद्ध कहते हैं- मैं मुक्ति दाता नहीं ,मार्ग दाता हूँ।
मेरा मार्ग मध्यम मार्ग है।
न शरीर को सुखाओ न उसके वासना को चारा दो, मध्य में रहो।
बुद्ध का मार्ग मानव कल्याण का मार्ग है। उस पर चलना नहीं चलना आप पर निर्भर करता है।