आलेख राज्य

माँ बहादुर कलारिन स्वर्णिम अतीत के पन्ने अधुरे तो नहींॽ मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर कांकेर (छ.ग.)

(मनोज जायसवाल)
पूरे विश्व में सहस्त्रबाहु कलार समाज के अराध्य के रूप में पूजे जाते हैं। छत्तीसगढ के बस्तर क्षेत्र में माता बहादुर कलारिन को भी समाज के लोग अतीत से पूजते आ रहे हैं। लोक प्रचलित मान्यताओं में जो इतिहास लोगों के बीच कहासुनी प्रचलित है, वह इतिहास शायद कुछ और हो। माता का दर्जा है,तो निश्चित ही उनका योगदान होगा। विश्व प्रसिद्व बस्तर दशहरा पर बस्तर की माता दंतेश्वरी की पूजा पूर्व बहादुर कलारिन के आंगन से शराब लाकर अर्चना किया जाना कहीं ना कहीं स्वर्णिम अतीत बताने काफी है,जिसे सामने लाये जाने की आवश्यकता है।

दरअसल लोक जीवन में एक दूसरे से कही बातों को बताया जाता है। समाज में बीते अतीत में कई बार निर्वाचन हुआ लेकिन दौर में सामाजिक  प्रकरण निपटाये जाने  की व्यस्तता कहें या कुछ और कि  ऐतिहासिक विषयों पर जानने की ओर ध्यान नहीं गया। समाज सेवा के क्षेत्र में बौद्धिक वर्ग से लोगों का मूल समाज के साथ जुडाव ना होने या समाज द्वारा उपेक्षित किये जाने के चलते कहें या कुछ और लेकिन इतना तो तय है कि माता बहादुर कलारिन की पुर्ण गाथा आज भी हम नहीं जानते।

जिस प्रकार से समाज के लोकजीवन में प्रचलित कहानियों में जंगल में राजा से संपर्क और शराब जिसे छत्तीसगढ में दारू कहा जाता है, अनुमान लगाया जाता है कि शराब के साथ दवाई भी दी जाती रही हो। अपने पुत्र के कृत्य के चलते उसे कुंए में ढकेले जाने की बात भी एकाएक गले नहीं उतरती। पुत्र कभी कुपुत्र हो सकता है,पर माता कभी कुमाता नहीं हो सकती।

आस्था तर्क का विषय नहीं है,पर यदि इतिहास में ऐसा कुछ बताया जाता है कि उसे मन ना माने तो निश्चित रूप से ध्यान तर्क में जाता है। बहादुर कलारिन माता के प्रति लोगों की प्रेम,आस्था के विषय पर कोई समाजसेवी मंच पर बोलने की हिम्मत नहीं करता ना कोई लिखने की हिम्मत। क्योंकि हम तर्क पर कोई बात कहें तो  उनके खाते में दण्ड या समाज से विच्छेदित किये जाने की बातें सामने आ सकती है। पौराणिक उल्लेख की कमी भी इसका एक कारण है। हमारा भी लेखन का उद्धेश्य स्वर्णिम  अतीत के सच को सामने लाना है।

समाज के लोकजीवन में जैसी भी प्रचलित कहानी हो पर जरूर लोगों को बताये जाने के लिए विषय वस्तु होना नितांत आवश्यक है। जिस पर कार्य अभी तक नहीं हो सका है। छत्तीसगढ के सोरर में माता का  माची जिसे देखने लोग दूर–दूर से आते हैं‚और यहां आकर शांति का अनुभव करते हैं और उस स्वर्णिम अतीत में खो जाते हैं‚जिसकी पुर्ण विस्तार के साथ अनकही कहानी वाकिफ नहीं है।खासकर समाज के लोगों की जिज्ञासा तो आज भी बहुत कुछ जानने की तमन्ना रखते हैं‚ पर शायद हमारी कलम आने वाले समय में सामाजिक सरोकार में पेश कर सके। 

आज भी आम लोगों को पुर्ण जानकारी नहीं होने के विषयक माता के संदर्भ लगता है कि  माँ बहादुर कलारिन स्वर्णिम अतीत के पन्ने अधुरे तो नहींॽ

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