(मनोज जायसवाल)
चाहे सामाजिक सत्ता हो या सियासी सत्ता! मौकापरस्तों की रवानी दोनों में दिखायी देता है। जो किसी एक पक्ष के हार की बद्दुआएं देता रहा, जो उक्त प्रत्याशी के हार के लिए आमजन के सामने नकारात्मक बातों को रखता रहा, कूट-कूट कर बुराईयां की। उस प्रत्याशी के निजी परिजनों के मध्य अनावश्यक भ्रांतियां फैलाने का कुत्सित प्रयास किया। जो प्रत्याशी के विरूद्व उन्हें पराजित किए जाने के नाम अनर्गल बयानबाजी की कभी-कभी तो ऐसे लोगों से मोबाईल में बातचीत किए जाने का साक्ष्य रिकार्डिंग में मौजूद होता है।
यही मौकापरस्त तथाकथित लोग किसी सामाजिक या सियासी सत्ता में जीत हासिल करने पर उनके हितैषी बनते नजर आते हैं। उनकी नकारात्मक बातें जो कभी रिकार्डिग भी मौजूद रहे पर उनकी समझदारी में यह कहकर चुप रहा जाता है कि छोड़िए ! उनकी मानसिकता तो जान ली गयी है,उनसे संबंध रखते सनद रहे। क्योंकि प्रत्याशी के प्रति नकारात्मक बातें करने वाले इन मौकापरस्त लोगों की कुण्डली प्रस्तुत करें तो प्रत्याशी ही नहीं बताने वाले के साथ संबंध भी आजीवन टूट जायेंगे।
मौकापरस्त जो हमेशा उस प्रत्याशी की हार के लिए बद्दुआएं दी। इनकी बेशर्मी देखिये कि ये किस तरह उसी प्रत्याशी के जीत के बाद प्रत्याशी से भी पहले मंच पर बुद्विजीवी के नाम विराजमान होकर बैठ जाते हैं। अपने स्वाभिमान को त्याग कर आए ये मौकापरस्त लोग शायद ऐसा सोचते होंगेे कि उन्हें लोग नहीं जानते।
जीत के बाद कभी-कभी तो सफल होने वाले प्रत्याशी ऐसे ही मौकापरस्त लोगों को सम्मान और मौका देते दिखायी देते है,जो अन्य लोगों के लिए जो किसी प्रत्याशी की जीत के लिए दिल से काम किया है,ठेस लगती है।ये मौका परस्त लोग मुंडवे लोटे की तरह है,जो जिधर लाभ मिला उधर देखकर लौट जाते हैं। प्रत्याशी अपनी जीत के बाद जो उनके इर्दगिर्द मौका पर फायदे के लिए मंडराने वाले को प्राथमिकता देते दिखायी देते हैं,जो उनकी हार के लिए लगातार काम किया। इसे देखकर समाज में असली मिन्नतें करने वाले लोगों का हौसला टूटता है।