(मनोज जायसवाल)
-विजातीय मॉं-पिता,दूसरी बहन के कृत्यों की सजा भी भुगत रही लडकिया।
– समाज में इस समस्या को समझने और सुलझाने वालों की कमी।
किस कदर समाज में किसी के द्वारा की गयी सजा दूसरे को भुगतने के लिए मजबूर होना पड़ता है। खासकर जीवन के महती वैवाहिक संबंधों को स्थापित करने के लिए रिश्ते तय किये जाते हैं, तो लडकी के रिश्तों पर पहले पहल ध्यान नैतिक मुल्यों के साथ चारित्रिक बातों को तरजीह दिया जाता है।
समाज है, परिवार में कब किसके यहां कौन सी हादसे हों नहीं कहा जा सकता। इस तारतम्य यदि किसी परिवार में किसी की बहन का प्रेम संबंध के नाम अफवाह उड़ी हो या कोई लडकी यदि उक्त लडके के साथ संबंधों की खबर हो। जब उनकी बहन के लिए रिश्ते आते हैं, तो नये रिश्तेदारों को पता चलने पर पसंद आने के बावजूद महज उस कारणों का हवाला महसुस करते नकार देते हैं, जिसकी ना गलती ना ही कसूरवार होती।
इतना ही नहीं! आज भी जिन संतानों की मॉं किसी पुरूष की विजातीय दूसरी पत्नी की संतान हो यह पता चलते ही उस रिश्तों के नाम नहीं जाते। ये संतान जरूर संस्कारिक हों पर शायद वैवाहिक संबंधों में देरी की सजा ये निर्दोष भुगत रहे होते हैं। बेहद संस्कारिक होते इनका कसुर यह है कि ये विजातीय मॉं-पिता की संतान है। इसके चलते अभिभावकों को भी एक टीस होती है,क्योंकि उन्हें भी पता है कि जिनकी उच्च संस्कार के होते कोई नहीं नकारने वाला गुण हो उसे आज के तथाकथित संस्कारवादी लडकी की गहन तलाश करने वाले शायद जरूर नकार सकते हैं।
समाज के अंदर परिवार में अपने पुत्री के विवाह की चिंता अंदर ही अंदर माँ–पिता को किस तरह उनके मनोमतिष्क पटल को मथ रही होती है‚यह वे ही महसूस कर सकते है। जो समाज के होने वाले सामाजिक आयोजनों‚ पारिवारिक मिलन समारोह में शिरकत कर योग्य वर की तलाश में होते हैं। कई वर्षो तक योग्य लडके की तलाश में जब स्थिति लडकी के उम्रदराज की आती है तो वे आयोजन में ही जाना छोड कर किस्मत पर छोड दिया जाता है।
कई समाज में लडकियों की बढती उम्र और इसकी चिंता में उम्रदराज के झलकने से ना जाने कितने लडकियों की शादी ही नहीं हो पाती। कई दफा ऐसे अवसर आता है, कि जब उम्र ज्यादा ही बढ जाती हो तो अंत में शादी नहीं करने का ही निर्णय ले लिया जाता है।