”फुहडता का ना हो प्रदर्शन” श्री मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर‚कांकेर (छ.ग.)
श्री मनोज जायसवाल
पिता-श्री अभय राम जायसवाल
माता-स्व.श्रीमती वीणा जायसवाल
जीवन संगिनी– श्रीमती धनेश्वरी जायसवाल
सन्तति- पुत्र 1. डीकेश जायसवाल 2. फलक जायसवाल
(साहित्य कला संगीत जगत को समर्पित)

छत्तीसगढ़ की प्रथम सांस्कृतिक विरासत लोक कला मंच नाचा में प्रस्तुत किए जाने वाले कामेडी में मजा आता है वो आज कल टीवी चैनलों में प्रस्तुत कला भी फीका नजर आने लगता है। लेकिन आए दिन इन नाचा सांस्कृतिक छत्तीसगढी आयोजनों में प्रस्तुति देने वाले कई जोकर द्विअर्थी संवादों का प्रयोग कर रहे हैं, जिसके चलते महिला पुरूष परिवार सहित देख रहे लोग इनसे दूरी बना रहे हैं। आजकल रिकार्डिंग डॉंस का चलन है,जहां भी पूरी मर्यादा बनाए रखने की जरूरत है।
अतीत देखी जाय तो छत्तीसगढ़ी नाचा संस्कृति के प्रस्तुतीकरण में ऐसे कई कामेडी होते हैं जो न सिर्फ मिनटों में अपितु प्रस्तुतीकरण पूरी रात हंसने हंसाने में गुजर जाती है। नाचा में महिला का रूप धारण करने वाला पुरूष ही होता है और सयाने बुढ़ें का रोल करने वाला भी इसी मंच का एक जवान शख्स ही होता है। कई मंचों में तो पिता पुत्री तक अभिनय करते देखे जा सकते हैं।
आने वाले मेले मंडईयों के सीजन में नाचा का प्रारंभ हो जाएगा। भले ही आज बड़े बढ़े लोक कला मंच बन गये हों। इंटरटेनमेंट के दौर में चौनलों में हंसी फव्वारों की बौछार हो रही हो पर छत्तीसगढ़ के सुदूूर अंचलों में आज भी नाचा को बड़े चाव से देखा जाता है।
छत्तीसगढ़ के खासकर पूर्व से ही सांस्कृतिक राजधानी रही दुर्ग जिले के आसपास के गांव सहित बस्तर के कांकेर अंचल में भी नाचा पार्टियों की कमी नहीं है। जो अपनी कला से गम में डुबे इंसा को भी हंसा दे।वह भी बिना किसी अशलीलता परोसे। आज हम जहां भी हंसी के जगहों पर जाते हैं वहां खुलकर द्विअर्थी संवाद के चलते हंसने मजबूर होना पड़ता है पर नाचा संस्कृति में संवाद ऐसे गढ़े जाते हैं कि इसे सबके साथ देखा जा सकता है।
छत्तीसगढ़ी के लोकनाट्य विद्या के कई रूप हैं जहां नाचा में जोकर भी एक अहम किरदार होता है जो एक एक अकेला अपने मित्र के साथ हंसाने काफी होता है वहीं सुआ,ददरिया,राउत नाचा होली पर डंडा नाच तथा अन्य कई इसके रूप हैं। छत्तीसगढ़ी लोक नाट्य को बचाए रखना भी जरूरी है। राजधानी रायपुर में इसके प्रतियोगिता भी आयोजित किए जाते रहे हैं।
वर्तमान में गांव-गांव रिकार्डिंग डॉंस प्रतियोगिताएं हो रही है, कई दफा यहां भी अश्लीलता नजर आती है। आयोजनों में इसके साथ कुछ जगहों पर तीन या पांच दिनी लोकनाट्य स्पर्धा भी आयोजित किए जाते रहे हैं। आईये अपनी सांस्कृतिक विरासत को बनाये रखने हम भी अपनी जवाबदारी का निर्वहन करें।