(मनोज जायसवाल)
क्या कारण है कि धार्मिक, आध्यात्मिक संगठन बहूत हद तक सफल है,लेकिन सामाजिक संगठनों की स्थिति निर्वाचन के प्रथम अधिवेशन में ही गुटबाजी,असंतोष झेलते जान पड़ती है। असंतोष का कारण लोगों के बीच यही है कि सियासी या सामाजिक सत्ता में वो सिर्फ और सिर्फ अपना वर्चस्व ले। जो कि किसी भी तरह संभव नहीं है। निर्वाचन चाहे सामाजिक सत्ता का रहे या सियासी आम जनता,समाजजन अंतिम व्यक्ति सबकी भागीदारी सुनिश्चित होने से जीत दर्ज होती है।
मुंह फाड़ चिल्लाने वाले लोग
सत्ता लोलूप वे जिन्होंने कभी पसीना नहीं बहाया! ना खुद के लिए अपितु अपने लोगों के लिए,वो ही उस जगह अपनों को बिठाने अमादा है,जिससे वह समाज में मुंह फाड़ कर चिल्ला सके। क्योंकि ये ऐसे ही नस्ल के लोग होते हैं,जिनमें बौद्धिक क्षमता विचार मंथन की क्षमता क्षीण होती है,जिसके चलते ही ये अपनी आवाज बुलंद करते देखे जा सकते हैं। जिनमें बौद्धिक क्षमताएं हैं, वो इस प्रकार के कृत्यों का सहारा नहीं लेते। वे अपनी बौद्धिक क्षमताओं से ही बना रहना चाहते हैं।
जिन्हें समाजजनों ने नकार दिया
समाज में ये चिल्लाने वाले लोग उन पुरानी सत्ता के उन लोगों को बिठाने का प्रयास करते हैं,जिन्हें आम समाजजनों ने उनके कार्यों कृत्यों को देखते उनके विरूद्व मतदान कर नकार दिया था। किसी भी समाज में जब सत्ता का परिवर्तन होगा,लेकिन उसके कार्यकारिणी वही पुराने लोग होंगे तो परिवर्तन का कोई मायने नहीं होगा। कार्यकारिणी की सभा में मुंह फाड़ आवाज कर तो कभी गाली गलौच करने से अच्छा होगा कि अपनी मुंह बंद कर गंभीरता से एक दूसरे की बातों को सुनकर अपनी बातें रखी जा सकती है। ये गले फाड़कर चिल्लाने वाले लोगों को भी लोग जानते हैं,जिनके लिए वही उनकी पहचान है।
विरोध में काम किया वो आगे
जिन्होंने सामाजिक सत्ता के लिए लुक छिप कर विरोध में काम किया। लोगों को भड़काते रहे। दोनों पक्ष से अपने संबंध कायम रहे के भाव को सोचकर कभी मुखर नहीं रहे ऐसे वो बरसाती मेंढक दिखायी देते हैं,जो बारिश के आने पर आवाजें सुनायी देती है। लेकिन जिन्होंने दिल से काम किया। जिन्होंने अपनी बदनामी यानि विपक्ष का परवाह नहीं किया। ये वो लोग हैं,जो निश्चित रूप से गंभीरता से विचार करते अपने में चुप होते हैं कि उनकी मेहनत भी लोगों ने देखा है। उनके साथ जो गलत होगा वह आम लोग समाजजन ही एक दिन जवाब देंगे।
पद की लालसा कैसी?
क्या लोगों का आत्म स्वाभिमान इतना खत्म हो चला है? कि उनकी कुछ गरिमा ही नहीं रही? क्या उनके सम्मान के लिए अदद किसी भी समाज के पदाधिकारी बन जाने पर ही उसका सम्मान कायम रहेगा? समाज के पदाधिकारी नहीं है तो उनके खुद का कोई सम्मान नही है? यह खुद के लिए आत्म विश्लेषण मंथन का विषय है। पद की लालसा में खुद के और अपनों के नामों की लिस्ट लेकर चलने से कुछ नहीं हो सकता। मिल भी जाए तो एक न एक दिन आपको पदमुक्त होना है। आपका सम्मान तो आपकी प्रतिभा में ही निहीत है। किसी पद की लालसा को छोड़ कर अपने आपको बनाए रखें सम्मान चलकर आएंगी।
निर्वाचित प्रतिनिधि के साथ…
वो निर्वाचित प्रतिनिधि जिनके सामने जाने से कतराते रहे। जिनकी ओर कभी मुड़कर नहीं देखा। जिनके पीठ पीछे हमेशा बुराई में संलिप्त रहे। आदत आज भी नहीं गयी। पद की लालसा में उसे अपने घर बुलाने का प्रयास करते हैं, वो सभा जो किसी सम्मान का नहीं है,वहां उन्हें डायरी,पेन,गुलदस्ते,फुलों के हार और ना जाने खुश करने अपनी चाटुकारिता के माध्यम आकृष्ट करने का प्रयास करते हैं,जिससे आने वाले समय में कोई पद मिल सके। तमाम बेशर्मी छोड़ कर अपने को बनाने में लगा दें अपनी प्रतिभा को जिस क्षेत्र में है बनाए रखें तो आज नहीं तो कल आपके पास आएगा। लेकिन आपमें उतनी धैये कहां और विश्वास कहां?