”बाबा के नाम पाखण्डगिरी”श्री मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर कांकेर छ.ग.
श्री मनोज जायसवाल
पिता-श्री अभय राम जायसवाल
माता-स्व.श्रीमती वीणा जायसवाल
जीवन संगिनी– श्रीमती धनेश्वरी जायसवाल
सन्तति- पुत्र 1. डीकेश जायसवाल 2. फलक जायसवाल
(साहित्य कला संगीत जगत को समर्पित)
”बाबा के नाम पाखण्डगिरी”
वैज्ञानिक युग में जीते हुए भी किस कदर समाज में दिनों दिन पाखण्ड का खेल चल रहा है,यह गावों,नगरों में देखा जा सकता है,जहां बडी-बडी बीमारियों को महज कुछ मिनट में दूर किये जाने का दंभ देते बाबाओं को देखा जा सकता है। तरस तो तब आता है,जब पाखंड के नाम इनके द्वारा किये जाने वाले ईलाज पर टिप्पणी किये जाने के बाद भी ये इतने बेशर्मी पर उतर आते हैं कि किसी की सुनना ही नहीं चाहते। वे लोग जिन्हें वेद‚शास्त्र तक को नहीं जानते दूसरों को उपदेश देते अपनी स्वार्थ सिद्धि में लगे हैं‚से दूर रहना चाहिए।
कोई पानी में फूक मारकर,तो कोई कई-कई तरीकों से ईलाज करने का दंभ भरता है। इनकी असल जिंदगी में जाने पर पता चलता है कि ऐसे कई बाबा जो खुद अपनी शिक्षा पूरी नहीं कर सके और अपनी आजीविका की खातिर भगवान के नाम पर लोगों को ठगते रहे।
समाज में इनकी शरण लेने वालों में वो अंतिम व्यक्ति अमूमन होता है,जो अपनी गरीबी के चलते मंहगी ईलाज कराने में सक्षम नहीं होता। हो ना हो उनका दुःख दर्द ये बाबा दूर कर दे करके वह इनकी शरण में जाता है।
कभी इत्तफाक इनका दर्द किसी के लिए दूर करने वाला लगे, वो व्यक्ति कभी दूसरों को बता दे कि उनका दुःख दर्द उक्त बाबा के पास जाने से दूर हुआ! फिर क्या इस प्रकार से ये बाबा की प्रसिद्वि फैलती जाती है और फिर वो अंतहीन दौर चलता है,जहां लोगों का दुःख दर्द दूर हो ना हो पर बाबा महान के साथ आर्थिक रूप से जरूर आसमान में उडने लगता है।
अतीत में रात में निकल कर और अपना तो प्रतिदिन महानदी पार कर घर जाना होता है। अब भले ही कम हो गया हो पर उसी रास्ते में भूत पकड़ने की बातें आज भी होती है, और हम हैं कि भूत देखने बेताब हैं हमें दिखायी ही नहीं देता।सुनसान बियांबान जंगलों पर व्यक्ति अकेला जा रहा होता है तो डर जरूर होता है।
देश के कई कोनों में कहीं मंदिर के पास तो कहीं ऐसे ही सेंटर बना कर भूत भगाने की दुकानदारी भी चल पड़ी है। इस व्यवसाय में कोई ताबिज बेच रहा होता है तो कोई अंगुठी। यानि शायद इनकी नजरों में मेडिकल साईंस झूठा है। जहां भी भूत पिशाच की बातें होती है वहां एक उतारने वाला भी होता है। पर एक बात आश्चर्य कि यदि भूत है तो यह महिलाओं को ही क्यों पकड़ता है?
उन सेंटरों में महिलाओं को बाल खुला कर झुपते,चिल्लाते,डांस करते और अशलील गालियां भी देते देखा जाता है। पुरूष को भूत पकड़ा और वह यह क्रियाकलाप कर रहा ऐसा दिखायी नहीं देता। सुदूर गावों में तंत्र सिद्वी के नाम पर अर्धरात्रि नदियों के किनारे जाकर पूजा करने और भूतों तथा प्रेतात्माओं को वश में करने की बातें सुनी जाती है।
कई लोग नागमणी होने का दावा करते हैं। पिछले दिनों ही सोशल मीडिया वाट्सएप पर नागमणी का विडियो वायरल हुूआ था। नाग के मणी के संबंध में फिल्में भी बनी। ईच्छाधारी नाग बनने के एक नहीं कई किस्से आज भी सुने जाते हैं, लेकिन धीरे धीरे अंततः बात अंधविश्वास जाकर टिक जाती है। कोई नहीं बताता कि उसने नाग का मणी देखा है और फोटो खींचा है।
खंडहरों में प्रेतात्मा होने, रात्रि में आवाज आने और उन्हें कोई बली नहीं देने पर अनर्थ होने जैसे कईयों किस्से आज भी सुने जाते हैं लेकिन यह सब मात्र अंधविशवासी वहम होता है। एक बात और है कि सुदूर अंचलों में गावों मे निम्नमध्यमवर्गीय परिवार की महिलाओं को ही भूत क्यों पकड़ लेता होगा,शहर में रह रहे लोगों को क्यों नहीं। भूत छुड़ाने के नाम पर सारा तामझाम और गंडे ताबिज यह एक भ्रम के नाम माना जाता है।
आश्चर्य कि अच्छे पढ़ेलिखे लोग जब ऐसे कार्यों पर संलिप्त होते हैं तो यह सोचनीय हो जाता है। आज के युग में ऐसे चीजों पर पूरा भरोसा करना कोरी मिथ्या सिवाय कुछ नहीं है। क्षेत्र के डुमरपानी क्षेत्र में पिछले दिनों एक घर में नाग के साथ रहने का क्या हुआ? छ.ग. के पूर्वी क्षेत्र के एक गांव में लड़की द्वारा नाग से शादी रचाये जाने का क्या हुआ? यह सब घटना मीडिया की सुर्खियां बनी। धमतरी क्षेत्र के लंडेर गांव में आज से कुछेक वर्ष पहले भी भगवान का अवतार बता कर दिनों रात भींड़भाड़ रहा और अपने लातों घूंसो से महिलाओं के बांझपन तथा अन्य परेशाानियों को गारंटी के साथ दूर करने वाले बाबा कहां है?
रायपुर जगदलपूर मार्ग पर इमली मोड़ की प्रेतात्मा कहां गई? घटनाएं जहां भी हुई है, तल्ख दिनों तक ही रहता है, फिर वह ऐसे लुप्त हो जाता है कि लोग वह जगह भी भूल जाते हैं। अंधविश्वास छोंड़े, अपनी शिक्षा का प्रयोग करते अपने दिमाग से काम लें।