श्री मनोज जायसवाल
पिता-श्री अभय राम जायसवाल
माता-स्व.श्रीमती वीणा जायसवाल
जीवन संगिनी– श्रीमती धनेश्वरी जायसवाल
सन्तति- पुत्र 1. डीकेश जायसवाल 2. फलक जायसवाल
(साहित्य कला संगीत जगत को समर्पित)

”पाखण्ड के नाम”
कभी निःसंतान दंपत्ति को संतान दिलाने, कभी घर में भूत प्रेत भगाने,कार्य में बाधा दूर करने,विवाह संबंधी समस्या दूर करने तो वो बीमारियॉं जो चिकित्सा विज्ञान के बगैर दूर नहीं की जा सकती, तमाम समस्याओं के निदान के लिए आम गरीब मध्यमवर्गीय लोग जो मॅंहगी चिकित्सा से ईलाज नहीं करा सकते वो बाबाओं के चक्कर में पड कर इस विश्वास में होते हैं कि बगैर ज्यादा परेशानी के उनका अपना ठीक हो जायेगा। लेकिन कई बार इनका ईलाज नहीं होता और ठगी का शिकार ज्यादा होते हैं। इनकी रोजमर्रा गरीबी में आटा गीला कहावत चरितार्थ करती है।
प्रतिदिन खबरिया टीवी चैनल में कभी कंबल वाले,मोबाईल वाले,पिटाई करने वाले तो कई तरह के तरीकों से ईलाज का दावा करने वाले बाबाओं की जानकारी दी जाती रही है,जहां खुद चैनल यह डिस्क्लेमर दिखाते हैं कि उनका चैनल ये सब का दावा नहीं करते।
जहां देखें वहां पाखंडी बाबाओं, तांत्रिकों के फेर में लोग पड़े रहते हैं। दोष हम उन पाखंडियों को देते हैं, जबकि मुख्य दोष तो वे आम अंध भक्तों का है जो किसी चमत्कार के फेर में पड़े रहते हैं। यह मान कर चलते हैं कि देवी मॉ या बाबा बिना उन्हें बिना हाथ पैर मारे सब कुछ दे सकती है। अब इन्हें कौन ये बतलाए कि कर्म के बगैर सब असंभव है। कौन ये समझाए कि वैज्ञानिक न्युटन के गति के नियम क्रिया के विपरीत प्रतिक्रिया नियम लागू होती है वो गलत नहीं है। कूट कूट कर हर प्रवचन या सत्संग में भी यह बात कही जाती है और भगवान कृष्ण ने भी गीता में कहा है कि कर्म ही ईश्वर है।
लेकिन आज कुछ लोग चाहते हैं कि कर्म ही न करना पड़े और किसी चमत्कार से सब कुछ हो जाए, जो कि संभव हर्गिज नहीं है। पाखंडी बाबाओं की पोल खुलने जगजाहिर होने के बावजूद अंधभक्तता इतनी है कि वे इसे झूठ साबित करने पर तुले रहते हैं। धर्मांतरण भी ऐसे ही चमत्कार की परिणिती है जहां सुदूर गांव के भोले भाले कम पढ़े लिखे लोगों के बीच तरह तरह के मंत्रोचारण एवं कथा पूजन का भ्रंश फैला कर उनके जीवन में चमत्कार होने की बात रटाया जाता है जिसका ही प्रतिफल होता है कि इसके अतिरिक्त कोई उनके अच्छाई के लिए भी बात करे तो वह इसे स्वीकार करने कतई सहमत नहीं रहता।
एक यही क्षेत्र था कि ईश्वर की भक्ति के लिए ईश्वर तक जाने के लिए कोई दलाल की जरूरत नहीं पड़ती लेकिन यह सब देखें तो कई प्रकार के ऐसे लोगों के फेर में पड़े हैं जो सीधे ईश्वर से साक्षात मिलाने का दावा कर रहे हैं। सुदूर गावों में तो कई ओझा गुनिया तथा कई गावों में तथाकथित देवी बने पुरूषरूपी महिला को तल्ख कारणों से पूजे जा रहे हैं।
साधारण सी कहीं किसी को सर्दी खांसी ज्वर आ रहा है तो इन मोबाईल धारी पाखंडी बाबाओं और तथाकथित देवी रूपी अम्माओं को फोन कर रहे होते हैं जहां ठीक हो जाएगा कह कर झूठी आश्वासन देने के बाद लोग बेफिक्र हो जाते हैं साईकोलाजीकल प्रभाव पडता है और वो सोचता है कि यह उस शक्ति के ही कारामात है।
दिनोंदिन लोग ठगी के शिकार हो रहे हैं। एक मित्र ने अपनी कहानी बताया कि एक बार दुर्ग जिले के पिकरीपार गांव में तीन साधुनूमा लोग आए थे। जिसमें से एक चुपचाप रहता था। जहां बड़े आवभगत किया करते थे। यह माना जाता था कि वे बात नहीं करते। जब एक बार उनकी जाने की बारी आई तो समीपस्थ ग्राम में उन्हें गांजा पीते बातचीत करते पैसे का हिसाब करते लोगों ने देखा तो उनकी खूब पिटाई की गई।
अपना काम छोड़ कर ऐनकेन इस प्रकार चमत्कार के फेर में नहीं पड़ना चाहिए। आश्चर्य तब लगता है जब इसमें पढ़े लिखे लोगों की सहभागिता देखने मिलती है जो स्वयं जगह जगह मंचों में अंधश्रद्वा मिटाने की भाषण बाजी करते देखे जाते हैं।