आलेख

‘एक नहीं खुद भुगतोगे सात पीढ़ी’ मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर कांकेर छ.ग.

(मनोज जायसवाल)
अपने अहम अपनी ताकत और प्रभाव के चलते हमेशा यह ख्याल रखना कि तुम्हारे चलते किसी का भी आशियाना न टूटे। भौतिक रूप से तो और भी सोचना भी नहीं। खुद को सुरक्षित रख कर दूसरों के परिवार आशियाने टूटने, किसी के सिंदुर उजड़ने पर यदि तुम जो खुशियां और शांति अनुभव कर रहे होगे वह एक नहीं सात जन्म तक तुम्हें अशांत करने वाला है।

तुम्हारा प्रभाव और किसी का घर परिवार तोड़ने में तुम्हारे गलत व्यवहार से यदि सहायक रहा तो प्रत्यक्ष रूप से मानसिक अशांति से पहले पहल प्रभाव खुद को दिखायी देगा।

जिसका घर परिवार टूटा कहीं न कहीं उनके दृारा कभी दूसरों के घर परिवार तोड़ने में अमूमन सहायक होने का यह सबुत भी है,जिसे खुद चिंतन का अनुभव करें। चाहे महिला हो या पुरूष। इन बातों का हमेशा ध्यान रखा जावे। अपनी धन-संपदा के बदौलत किसी को पालने और पालनहार बन कर ये जो फूलों के हार पहन कर गार्डन गार्डन हो रहे हो, अपने को श्रेष्ठता की सोचना भी मत। 

पाालनहार तो वह ईश्वर है,जो न सिर्फ मानवों का अपितु संसार के सभी जीव जंतुओं का ख्याल रखते हैं,जिसकी खातिर दुनियां में सभी जीव जंतु तृप्त होते हैं, और जीवन चल रहा है। तुम्हारी औकात ही नहीं है कि उस ईश्वरीय शक्ति के किसी एक कण में भी साबित हो जाओ। अपनी श्रेष्ठता साबित करते अपने मन से यह वहम दूर कर दो कि तुम किसी का पेट भर रहे हो, कई को पाल रहे हो।

हां, तुम माध्यम बन सकते हो। यह तुम अपने को यह समझते हो कि भगवान ने किसी के सहयोग के नाम सेवा करने के लिए माध्यम बनाया जिससे आपके हाथों दूसरों को देने के लिए ये पवित्र हाथ काम आ रहे हैं, तो ठीक है। लेकिन अपनी संपदा के नाम मन में अहम का वास रहा और मन में अपने में देने का थोथा विचार पाल रखे हैं, तो यह खुद की पीठ खुद थपथपाने से अधिक कुछ नहीं हैं। अपनी बेशर्मीयत त्याग कर अपने प्रभाव शक्ति का ऐसा निर्णय शब्द ही प्रयोग न करें जिससे किसी का घर परिवार टूटे किसी का आशियाना टूटे।

LEAVE A RESPONSE

error: Content is protected !!